राजस्थान : क्या तीसरा मोर्चा इस बार भी सिर्फ चुनावी शिगूफा बनकर रह जाएगा?

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राजस्थान में 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए, कई राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है। जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस द्वारा सालों से यहां राज किया जा रहा है वहीं इस बार सियासी हवा में ‘तीसरा मोर्चा’ नाम भी काफी झूल रहा है।

तीसरे मोर्चे में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), भारत वाहिनी पार्टी (बीवीपी), आम आदमी पार्टी (एएपी) और राष्ट्रीय लोकतंत्रिक पार्टी (आरएलपी) शामिल हैं। इनके अलावा, राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा (आरएलएम) के पूर्व प्रधान मंत्री एचडी देवेगौड़ा के बैनर के तले अक्टूबर में सात राजनीतिक दलों का एक समूह बनाया गया था, जिसमें जनता दल (सेक्युलर), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई), कम्युनिस्ट भारतीय पार्टी (मार्क्स), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्स-लेनिन), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (यूनाइटेड), राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी शामिल है।

आरएलएम ने घोषणा की थी कि वह सभी 200 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों को मैदान में लाएगा, हालांकि फ्रंट ने आधिकारिक तौर पर यह खुलासा नहीं किया है कि वह कितनी सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। बीजेपी के पूर्व नेता और विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने इस साल अपनी खुद की भारत वाहिनी पार्टी लॉन्च की थी, उन्होंने लॉन्च के समय कहा था कि लोग “कांग्रेस और बीजेपी से तंग आ चुके हैं, और अब विकल्पों की जरूरत है”।

निर्दलीय विधायक और जाट नेता हनुमान बेनीवाल, जिन्होंने इस महीने आरएलपी का गठन किया था, ने कहा कि उनकी पार्टी राजस्थान में तीसरे मोर्चा सरकार के लिए भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में काम करेगी।

लेकिन इन सब बातों के बाद भी सवाल यह बना हुआ है कि ज्यादातर क्षेत्रीय दलों के आने के बाद भी यह ‘तीसरे’ विकल्प का शगूफा दो प्रमुख, राष्ट्रीय दलों को रोक पाने में कामयाब होगा या नहीं?

राज्य के राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ये “अन्य” पार्टियां निश्चित रूप से कुछ वोट तो ले लेंगी लेकिन तथ्य यह है कि राजस्थान में नींव बनाने के लिए क्षेत्रीय नेताओं को अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा।

राजस्थान के लोग सिस्टम में विश्वास करते हैं। जो भी दिल्ली में शासन करता है, देश चला रहा है, राज्य के लोग ऐसे ही सिस्टम से जुड़े रहना पसंद करते हैं। तीसरा मोर्चा सिस्टम की इस श्रेणी में फिट नहीं बैठता है।

कुछ क्षेत्रों में, इन पार्टियों की आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण मजबूती दिखाई दे रही हैं, जबकि कुछ अन्य इलाकों में जाति समीकरण / सोशल इंजीनियरिंग के कारण मजबूती झलक रही है। ऐसे कुछ ही क्षेत्र हैं जहां इनके कुछ राजनेता लोकप्रिय हैं और उनके नेतृत्व के कारण वोटों को प्रभावित किया जा सकता है।

बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किल बनने वालों में से विधायक घनश्याम तिवारी (संगानेर निर्वाचन क्षेत्र), गीता वर्मा (सिकराई) और किसना राम नाई (श्रीडुंगरगढ़) जैसे नेता शामिल हैं, जो 2013 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं लेकिन अब वे बागी हो चुके हैं।

वहीं कोटपुटली से राम स्वरुप कसाना (पूर्व कांग्रेस विधायक), नीम का थाना के पूर्व कांग्रेस विधायक रमेश चंद खंडेलवाल, भैरों सिंह शेखावत सरकार में मंत्री रहे शशि दत्ता, मसूदा से कय्यूम खान, पूर्व कांग्रेस नेता स्पर्धा चौधरी, जो फुलेरा निर्वाचन क्षेत्र से टिकट मांग रही थी, ये सभी नेता आरएलपी में शामिल हो गए हैं और 62 अन्य लोगों के साथ चुनाव लड़ रहे हैं।

आप भी जुलाई में दो अलग-अलग लिस्ट के साथ आई थी और कहा था कि लोग “भाजपा और कांग्रेस के लिए एक मजबूत विकल्प चाहते हैं, और आप ही उस विकल्प को साबित करेंगे”। पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

नेशनल पीपुल्स पार्टी के एकमात्र विधायक नवीन पिलानियां बीते 13 नवंबर को बीएसपी में शामिल हो गए और तीसरे मोर्चे की मजबूत सरकार बनाने के लिए सभी नई पार्टियों को अपील की। बीएसपी ने 197 सीटों पर उम्मीदवारों को उतारा है।

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