किसी भी पार्टी से पारदर्शिता की उम्मीद करना बेकार? राजनीतिक दलों में डोनेशन का ये है हाल!

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देश में चुनावी माहौल के बीच भारतीय राजनीतिक दलों से पारदर्शिता की उम्मीद करना अब बेकार ही नज़र आती है। सार्वजनिक मंचों पर व्यवस्था में पारदर्शिता लाने का दावा करने वाली लगभग सभी पार्टियां इस मामले में झूठी साबित होती दिखती हैं। आमतौर पर राजनीतिक दल डोनेशन के लेन-देन पर एक-दूसरे पर सवाल उठाते भी रहे हैं। पार्टी की गतिविधियों को पारदर्शी बताने वाले राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर डोनेशन की जानकारी तक नहीं दे रहे हैं। यहां तक की कई पार्टियों ने तो अपनी आधिकारिक वेबसाइट से डोनेशन शब्द ही हटा लिया है। वहीं, कई दूसरे दल भी इस बात की जानकारी देने के लिए तैयार नहीं ​है कि किसने कितना डोनेशन दिया है। यहां तक कि कुछ पार्टियां बिना पैन कार्ड के भी डोनेशन ले रही हैं। ऐसे में आइये जानते हैं किस पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर डोनेशन को लेकर क्या जानकारी दी हुई है..

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कांग्रेस की वेबसाइट पर किसने-कितना डोनेशन दिया नहीं पता चलता

देश की सबसे पुरानी और कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस ने अपनी वेबसाइट पर डोनेशन लेने की तो पूरी जानकारी दे रखी है। लेकिन किसने और कब कितना डोनेशन दिया यह जानकारी पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं करवाई है। कांग्रेस ने डोनेशन लेने के लिए अपनी वेबसाइट पर सबसे पहले पैनकार्ड की अनिवार्यता बताई हुई है। इसके बाद पार्टी ने डोनेशन के लिए 250 रुपये से लेकर 500, 1000, 2500, 10000, 25000 और 50000 की संख्या लिखी है। यानी कोई भी डोनर वेबसाइट के जरिए ऑनलाइन या चेक के द्वारा इतनी रकम दान कर सकता है। डोनर का वेरीफिकेशन करने के लिए उसके मोबाइल नंबर पर एक वन टाइम पासवर्ड भेजा जाता है। कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी वेबसाइट पर चंदा लेने के लिए तमाम नियमों की जानकारी तो दे दी है, लेकिन किसने और कितना चंदा दिया है, ऐसी कोई सूचना वेबसाइट पर नहीं दी है।

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बीजेपी की नई वेबसाइट पर डोनेशन की ज्यादा जानकारी नहीं

विश्व की सबसे अधिक कार्यकर्ताओं वाली पार्टी बीजेपी की बात करे तो पता चलता है कि इस नई वेबसाइट पर डोनेशन को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है। हालांकि डोनेशन का विकल्प बीजेपी ने अपनी वेबसाइट पर दिया है। जिसमें डोनर अपना नाम और नंबर भरने के बाद अगले स्टेप ​जाता है वहां वह अपनी मर्जी से डोनेशन कर सकता है। दरअसल, मार्च माह की शुरूआत में बीजेपी की वेबसाइट हैकरों द्वारा हैक कर ली गई थी। इसके बाद वेबसाइट को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया था। हाल में इस वेबसाइट का नया लुक देखने को मिला है। जिसमें कई सूचनाएं नहीं दी गई है। पुरानी वेबसाइट में चंदा देने वालों के लिए एक अलग कॉलम दिखता था। साथ ही उसमें स्थायी मेंबरशिप, कोई विशेष पदाधिकारी और दूसरे पांच-छह तरीके से चंदा लेने के नियम भी बताए गए थे। इसके अलावा डोनेशन कितना हो सकता है इसकी जानकारी भी संख्या में होती थी।

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सपा-बसपा की वेबसाइट पर डोनेशन का कॉलम तक नहीं

सपा यानी समाजवादी पार्टी और बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी की वेबसाइट पर तो डोनेशन के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि इन दोनों दलों की वेबसाइट पर डोनेशन के लिए कॉलम तक नहीं है। इन दोनों पार्टियों की वेबसाइट पर लोग से डोनेशन कैसे लेना है, कौन अधिकतम कितना डोनेशन दे सकता है, यह तमाम जानकारी गायब है। इसके अलावा पार्टियों की वेबसाइट पर यह भी नहीं बताया गया है कि किसने पार्टी को कितना चंदा दिया है। पार्टी के पास अभी कितना फंड है, ये सब सूचनाएं छिपा ली गई हैं। इसी प्रकार बिहार में अपना दबदबा रखने वाली आरजेडी यानी राष्ट्रीय जनता दल की वेबसाइट पर डोनेशन का कॉलम नहीं दिया गया है। लोक-जन शक्ति पार्टी की वेबसाइट पर डोनेशन तो मांगा जा रहा है, मगर ये दे कौन रहा है, कैसे दे रहा है और अभी तक पार्टी को कुल कितना चंदा मिला है, ये तमाम जानकारियां नहीं दी गई है।

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टीएमसी की वेबसाइट पर कॉरपोरेट सेक्टर से डोनेशन पर बैन

ममता बनर्जी की टीएमसी यानी तृणमूल कांग्रेस की वेबसाइट पर डोनेशन देने वालों को यह बताया गया है कि वे किस तरह से डोनेशन दे सकते हैं। वेबसाइट पर यह अंकित है कि नियमानुसार, कॉरपोरेट सेक्टर से डोनेशन नहीं लिया जा सकता। बताया गया है कि कंपनी एक्ट-2013 के तहत कॉरपोरेट जगत के चंदे पर कई तरह के प्रतिबंद लगाए हुए हैं। टीएमसी की वेबसाइट पर यह भी लिखा है कि डोनर नियमों को ध्यान में रखकर ही डोनेशन दे सकता है।

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जेडीयू यानी जनता दल यूनाईटेड और जेडी (सी) यानी जनता दल सेक्यूलर इन दोनों पार्टियों की वेबसाइट पर भी चंदे को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है। एनसीपी यानी नेशलिस्ट कांग्रेस पार्टी की वेबसाइट पर भी दान करने की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई गई है। एनसीपी की वेबसाइट पर डोनेशन के लिए केवल एक सूचना दिखती है कि डोनेशन देने वाले के पास पैनकार्ड होना अनिवार्य है। इस प्रकार भारत के तमाम राजनीतिक दलों से पारदर्शिता की उम्मीद करना वेबकूफ़ी ही नज़र आती है। इन सभी दलों की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।

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