योगगुरू से बिजनेसमैन बने रामदेव की कंपनी पतंजलि की अब हवा क्यों निकल रही है?

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योग गुरू से इंडिया के राइडिंग बिजनेस मैन बने रामदेव की कंपनी पतंजलि के बारे में हम सभी जानते ही हैं। फिलहाल पतंजलि के अच्छे दिन उतने अच्छे नहीं रहे। कंपनी के रेवेन्यू स्टेटस को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं जिसमें कहा जा रहा है कि पतंजलि के प्रोडक्ट्स की बिक्री मार्च 2018 को खत्म हुए वित्त वर्ष में काफी गिर चुकी है।

2017 की ही बात है जब रामदेव ने बयान दिया था कि मैं कंपनी के कारोबार को बढ़ाकर इसकी बिक्री को दोगुना कर दूंगा। इसी के साथ मल्टीनेशनल कंपनियों को कपालभाती करनी पड़ जाएगी। लेकिन कारोबार में जो कमी देखी जा रही है फिलहाल रामदेव को ही कपालभाती से गुजरना पड़ सकता है।

आंकड़ों की बात कर लेते हैं। साल 2016-17 की बात करें तो कंपनी की बिक्री 9030 करोड़ रही थी। अगले साल ये घटी और 2017-18 में 8135 करोड़ पर रूकी। पता चला कि 10 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। वहीं अप्रैल 2018 से लेकर दिसंबर 2018 तक कंपनी का कारोबार 4700 करोड़ का बताया जा रहा है। तीन साल पहले रामदेव स्वदेसी की हुंकार भर रहे थे लेकिन फिलहाल कंपनी का कारोबार ठंडा होता जा रहा है।

एनडीटीवी ने इसको लेकर खबर इकट्ठा की है। पतंजलि के मौजूदा और पूर्व कर्मी, सप्लायर्स, डिस्ट्रिब्यूटर्स, स्टोर मैनेजर्स से इस बारे में बात की गई। उनकी बातचीत को ध्यान में रखकर एनडीटीवी ने रिपोर्ट किया कि कंपनी ने कारोबार की जल्दबाजी में कई गलत कदम उठाए हैं। कंपनी ने अपनी गुणवत्ता पर ध्यान ही नहीं दिया।

क्वालिटी पर ध्यान नहीं दिया, डिस्ट्रीब्यूशन में भी समस्या

पतंजलि 2500 तरह के प्रोडक्ट बनाती है। ऐसे में कंपनी ने सिर्फ इसी पर ध्यान दिया कि ग्राहक को सभी तरह के प्रोडक्ट दिए जाएं लेकिन प्रोडक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन की जिम्मेदारी फिर पतंजलि ने थर्ड पार्टी पर छोड़ दी। अब जब थर्ड पार्टी पर सबकुछ छोड़ दिया है तो क्वालिटी तो इफेक्ट होगी ही। साल 2017 की बात है जब नेपाल की एक एजेंसी ने पतंजलि के प्रोडक्ट्स की जांच की और इसमें सामने आया कि उनमें जरूरत से ज्यादा सूक्ष्म जीव मौजूद हैं। इसके बाद कंपनी की साख डगमगा गई थी और बिक्री भी प्रभावित हुई।

आयुष मंत्रालय और खाद्य नियामक एफ़एसएसएआई इस पर किसी भी तरह का कमेंट करने से परहेज किया। पतंजलि के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आचार्य बालकृष्ण ने जरूर इस पर कुछ कहा। उन्होंने कहा कि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़िया है और उसको लेकर किसी भी तरह की समस्या नहीं है।

पतंजलि के ही आंकड़े और दावे बताते हैं कि उनके पूरे देशभर में 3500 डिस्ट्रिब्यूटर्स और 47000 रिटेल स्टोर हैं। बालकृष्ण ने पहले कहा था कि सप्लाई चैन में कंपनी को दिक्कतें आ रही हैं जिन्हें दूर कर लिया जाएगा।

विज्ञापन का लफड़ा

पैसे वक्त पर नहीं मिलने के कारण कई सप्लायर्स ने कंपनी से हाथ खींच लिया। इसके अलावा सप्लायर्स का कहना है कि मार्केट में पतंजलि के प्रोडक्ट की डिमांड घटी है इसीलिए वो अब सीमित स्टॉक ही रखते हैं। हिन्दुस्तान यूनिलीवर जैसी बड़ी कंपनियां भी आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स के साथ मैदान मे है जिससे कॉम्पिटीशन भी बढ़ा है।

पतंजलि ने विज्ञापन मार्केट में अपनी स्थिति को नीचा खींचा है। साल 2016 में जहां ये सबसे ज्यादा ऐड देने वाली तीन नंबर कंपनी थी। साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक ये दसवें स्थान से भी बाहर है।

नोटबंदी और जीएसटी से भी पड़ा फर्क

अब गलती सिर्फ यहां रामदेव की कंपनी की नहीं है। जीएसटी और नोटबंदी के इफेक्ट को भी समझने की जरूरत है। ऐसे तो रामदेव नरेन्द्र मोदी सरकार के मुखर समर्थक रहे हैं लेकिन कंपनी की वित्तीय रिपोर्ट कहती है और मानती भी है कि नोटबंदी और जीएसटी का मार्केट पर असर पड़ा और ग्राहकों में गिरावट आई।

इसके अलावा भी कई समस्याएं हैं। कंपनी दावा करती आई है कि वे अपने उत्पाद खुद बनाती है लेकिन ये दावा हमेशा से ही खतरे में रहा है। कंपनी के अधिकारी इसको लेकर किसी भी तरह के दावे को साफ नहीं पाते। वहीं प्रोडक्शन की बात करें तो कंपनी को अपनी फैक्ट्रियां डालने में समस्या और देरी हुई है। महाराष्ट्र में एक फूड प्लांट साल 2017 में बनना था जिसमें देरी के कारण ये 2020 तक खिंच गया। अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कंपनी सच में अपने प्रोडक्ट खुद बनाती है?

कई लोगों ने बताया है कि कंपनी में कर्मचारियों को सुबह ओम का जाप करवाया जाता है। इसके अलावा थोड़ा कुछ होते ही सैलरी तक काट ली जाती है। पतंजलि ने 25000 लोगों को जॉब देने की बात कही थी लेकिन अधिकारियों की मानें तो इसके कई पद अभी भी खाली पड़े हैं। पतंजलि के अधिकारी फिलहाल खुलकर कुछ भी नहीं बता रहे हैं।

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