-50 डिग्री में एक साल तक रहकर देश के पहले पोलरमैन बनें साइंटिस्ट मोहन देसाई

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भारत के प्रतिभाशाली युवाओं ने आईटी, मेडिकल, बिजनेस के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी खुद को साबित कर दिखाया है। आज दुनियाभर में भारतीय प्रतिभाओं का डंका बंज रहा है। भारतीय साइंटिस्ट भी खुद को साबित करने में कहीं पीछे नहीं हैं। दुनिया का सबसे ठंडा महाद्वीप अंटार्कटिका में भारत के मैत्री भारतीय स्टेशन में माइनस 50 डिग्री से​ल्सियस से भी कम तापमान में देश के वैज्ञानिक और प्रोफेसर्स रिसर्च कर रहे हैं। हाल में भारत के एक युवा साइंटिस्ट ने देश के पहले पोलरमैन बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। गुजरात के महसाणा निवासी युवा साइंटिस्ट मोहन देसाई ने यह कारनामा 100 किमी की गति से चलने वाली हवाओं के बीच कर दिखाया है। उन्होंने माइनस 50 डिग्री में एक साल तक रहकर यह रिकॉर्ड बनाया है।

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एक साल तक रिसर्च कर पोलरमैन की उपाधि हासिल की

मोहन देसाई भारत सरकार के भू-विज्ञान विभाग के राष्ट्रीय अंटार्कटिका और समुद्री अनुसंधान केन्द्र गोवा में टेक्निकल सायंटिफिक विंग में काम करते हैं। उन्हें यहीं से अंटार्कटिका जाने का मौका मिला। अंटार्कटिका जाने से पहले उन्हें बदरीनाथ में माउंटेनिंग की शिक्षा मिली। इसके बाद दिल्ली के एम्स में उनका मेडिकल, साइको टेस्ट हुआ। इसमें सफल रहने के बाद इन्हें साउथ अफ्रीका के केपटाउन में चार दिन रोका गया। वहां से ये 24 सदस्यों की स्पेशल फ्लाइट से 3000 किमी दूर अंटार्कटिका महाद्वीप पर पहुंचे। अंटार्कटिका में बर्फ का ही रनवे होता है। महेसाणा के पार्श्वनाथ सोसायटी में रहने वाले मोहन भाई जोधा भाई देसाई ने यहां एक साल रहकर रिसर्च किया। इससे उन्हें पोलरमैन की उपाधि मिली।

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बर्फ में खनिज तेल का किया रिसर्च, 6 जनरेटर से होता था तापमान कंट्रोल

अंटार्कटिका में अपने एक साल के रिसर्च अनुभव बताते हुए मोहन देसाई ने कहा वहां भारत के मैत्री स्टेशन में एक साथ दो साल की खुराक स्टोर की जाती है। माइनस 50 डिग्री में मानव नहीं रह सकता। साथ ही बर्फ टूटने का भय लगातार बना रहता है। केपटाउन से दक्षिणी ध्रुव में ईंधन आता है, उससे 6 जनरेटर एक्टिव रखकर टेम्परेचर मेंटेन रखने की कोशिश की जाती है।

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उन्होंने बताया कि अंटार्कटिका में भारतीय अभियान दल की टीम जिसमें मौसम, शिपिंग, मेडिकल, इसरो फौज आदि विंग के साइंटिफिक 24 सदस्यों की टीम बर्फ में ड्रिलिंग कर खनिज का पता लगाती है। मोहन देसाई ने बताया कि बर्फ गहराई में कितनी पुरानी है, उसके सेम्पल से वहां के तापमान को ध्यान में रखकर गोवा की लेब में लाकर उस पर रिसर्च किया जाता है। उन्हें टेक्निकल विंग में शिपिंग कंटेनर को लोडिंग-अनलोडिंग की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे देसाई ने बखूबी निभाया था।

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