फिल्मों को अलग अंदाज में पेश करना सई की खासियत थी

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बिना बैकग्राउंड म्यूजिक, पूरा फोकस कैरेक्टर पर और हल्की कॉमेडी से दर्शकों को बांधे रखना। कुछ ऐसा ही स्टाइल था सई परांजपे की मूवीज का। निर्देशक सई परांजपे का आज जन्म दिन है। ये फिल्मी दुनिया की एक ऐसी निर्देशक हैं, जिन्होंने बहुत ही अलग अंदाज में अपनी फिल्मों को दर्शकों के सामने पेश किया और जिन्हें दर्शकों ने दिल से पसंद भी किया। उनकी फिल्म मेकिंग का सबसे खास पहलू संवेदनशीलता है, जो शायद उनके व्यक्तित्व का ​एक हिस्सा है। सई का जन्म 19 मार्च 1938 को मुम्बई में हुआ था। लेखन में शुरू से ही दिलचस्पी रखने वाली सई ने मात्र आठ साल की उम्र में ही एक किताब लिख दी थी। सई के पिता जहां एक वॉटरकलर आर्टिस्ट थे वहीं उनकी मां एक्ट्रेस थी।

लिखने की शौकीन सई फिल्मी दुनिया में निर्देशक के तौर पर जगह बनाना चाहती थीं क्योंकि उन्हें कहानी कहना अच्छा लगता था। कॉमेडी फिल्म ‘चश्मे बद्दूर’ को दर्शकों का काफी प्यार मिला था। 1981 में आई यह फिल्म दिल्ली में रह रहे 3 बेराजगार नौजवानों की कहानी थी। इन तीनों नौजवानों को एक अदद नौकरी चाहिए होती है। नौकरी से ज्यादा उन्हें जरूरत एक प्रेमिका की होती है। हास्य का ताना-बाना इसी के इर्द-गिर्द बुना गया था। फिल्म में फारुख शेख, रवि वासवानी और राकेश बेदी ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

इसके अलावा सई ने ‘कथा’, ‘स्पर्श’ और ‘दिशा’ जैसी फिल्में भी बनाई हालांकि इन्हें इतनी सफलता नहीं मिली। लेकिन सई ने इंडस्ट्री को बताया कि इस तरह की फिल्में भी बनाई जा सकती हैं।

सई को उनकी फिल्मों के लिए कुल 3 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इसके अलावा दो बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। फिल्मों में योगदान के लिए 2006 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

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