कुछ इस तरह शाही अंदाज में होली खेलते थे मुगल बादशाह !

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होली को लेकर देश भर में उत्साह है। जिस तरह भारत में हर त्योहार मनाने के पीछे एक खास वजह होती है, ठीक वैसे ही होली को लेकर भी कई कहानियां जुड़ी हैं। सबसे प्रचलित मान्यता के मुताबिक हिरण्यकश्यप की बहन होलिका इस दिन आग में जलकर मर गई थी जिसके बाद होली मनाई जाने लगी।

दरअसल कहा ऐसा जाता है कि होलिका ने विष्णु के भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने की कोशिश की और आग में प्रहलाद को लेकर बैठ गई, होलिका जल गयी और प्रह्लाद बच गए। होलिका और प्रहलाद की किवदंती के अलावा हमारे इतिहास में होली को लेकर कई रोचक किस्से-कहानियां हैं। आइए जानते हैं।

प्रतीकात्मक फोटो

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि होली बसंत ऋतु में फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसी दिन से नए साल की शुरूआत भी होती है।

होली का नाम कुछ समय पहले ‘ होलिका’ या ‘होलका’ था लेकिन समय के साथ-साथ यह होली हो गया वहीं रंग खेलने वाले दिन को ‘धुलंडी’ कहा जाता है।

इतिहासकार बताते हैं कि होली आर्यों का त्योहार होता था और पूर्वी भारत में लोग बड़े उल्लास से मनाते थे। होली का उल्लेख नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे महान ग्रंथों में भी मिलता है।

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होली केवल हिंदुओं का ही त्योहार नहीं हैं बल्कि भारत के कई पुराने मुस्लिम कवियों ने अपनी कविताओं में होली का जिक्र किया है और होलिकोत्सव मनाने की बात कही है।

इतिहास में महान अकबर और उनकी रानी जोधाबाई के रंग खेलने के बारे में बताया गया है तो जहांगीर और नूरजहां को कई पुराने चित्रों में अपने महल में होली खेलते हुए बताया गया है।

शाहजहां ने अपने शासनकाल में होली खेलने का अंदाज ही बदल दिया, शाहजहां के समय मुग़लिया अंदाज़ में होली खेली जाती थी जिसे ‘ईद-ए-गुलाबी’ या ‘आब-ए-पाशी’ कहते थे। वहीं मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के समय में भी होली का जिक्र मिलता है जहां उनके दरबार के मंत्री होली वाले दिन उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।

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इसके अलावा होली और शास्त्रीय संगीत का भी एक अलग किस्म का रिश्ता है तभी होली की कल्पना ध्रुपद, धमार और ठुमरी के बिना आज भी नहीं की जा सकती है।

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