सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जेल से शुरू हुआ था साहित्यिक करियर

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Sachchidananda Hiranand Vatsyayan 'agnay'

हिंदी के प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की 4 अप्रैल को 36वीं पुण्यतिथि है। वह हिंदी भाषा के क्रांतिकारी लेखक, कवि, उपन्यासकार, साहित्यिक आलोचक, पत्रकार और अनुवादक थे। उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य में नई कविता (नई कविता) और प्रयोगवादी आंदोलन के अग्रणी कवि माना जाता है। उन्होंने ‘सप्तक’ का संपादन किया और साप्ताहिक पत्र ‘दिनमान’ की शुरुआत कीं। अज्ञेय को वर्ष 1964 में ‘आँगन के पार द्वार’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 1978 में ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस खास अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ रोचक बातें…

सच्चिदानंद हीरानंद वात्‍स्‍यायन का जीवन परिचय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’ का जन्‍म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर (कसया) में हुआ था। उनके पिता का नाम हीरानंद शास्त्री था जो एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद थे। उनकी माँ व्यानतिदेवी थीं जो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं। अज्ञेय अपने 10 भाई-बहनों में चौथे थे। उनका आरंभिक बचपर लखनऊ (1911-1915) में गुजरा। पिता की नौकरी की वजह से वह भी उनके साथ कभी श्रीनगर और जम्मू (1915-1919), पटना (1920), नालंदा (1921) और ऊटाकामुंड और कोटागिरी (1921-1925) आदि स्थानों पर स्थानांतरित होते रहे।  इससे उनका देश की विभिन्न जीवन शैली और विभिन्न भारतीय भाषाओं और संस्कृतियों के संपर्क में आया।

उनके पिता, जो खुद संस्कृत के विद्वान थे, ने उन्हें हिंदी का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें कुछ बुनियादी अंग्रेजी सिखाई। उन्हें जम्मू में पंडित और मौलवी द्वारा संस्कृत और फ़ारसी सिखाई गई थी।उन्होंने वर्ष 1925 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास की और वह मद्रास चले गए। वहां मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया और वर्ष 1927 में गणित, भौतिकी और रसायन विज्ञान का अध्ययन किया। वर्ष 1929 में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। बाद उन्होंने अंग्रेजी में मास्टर के लिए ए​डमिशन लिया।

निजी जीवन

अज्ञेय ने वर्ष 1940 में संतोष मलिक से शादी की और 1945 में उन्हें तलाक दे दिया। बाद में उन्होंने 7 जुलाई 1956 को कपिला वात्स्यायन से शादी की। वे एक-दूजे से वर्ष 1969 में अलग हो गए।

आजादी में भाग लिया और जेल गए

इस दौरान वह क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) में शामिल हो गए और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। नवंबर 1930 में, समाजवादी क्रांतिकारी और एचएसआरए के नेता भगत सिंह को 1929 में जेल से भागने में मदद करने के प्रयास में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में सजा सुनाई गई थी। उन्होंने अगले चार साल लाहौर, दिल्ली और अमृतसर की जेल में बिताए।

जेल से शुरू किया साहित्यिक सफर

जेल में रहने के दौरान उन्होंने लघु कथाएं, कविताएं और अपने उपन्यास शेखर: एक जीवनी का पहला मसौदा लिखना शुरू किया। अज्ञेय ने वर्ष 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना में भर्ती हो गए और उन्हें एक अधिकारी के रूप में कोहिमा फ्रंट में भेज दिया गया। उन्होंने वर्ष 1946 में सेना की नौकरी छोड़ दी।

उन्होंने वर्ष 1943 में ‘तार-सप्तक’ का प्रकाशन करके हिंदी ​कविता में एक नया आंदोलन चलाया। उनके उपन्यास और कहानियां उच्च कोटि की हुआ करती थी। उन्होंने कई समाचार पत्रों का संपादन किया। वे प्रयोगवाद के प्रवर्तक और समर्थ साहित्‍यकार थे। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

साहित्यिक कृतियां

‘अज्ञेय’ ने अपने साहित्यिक कॅरियर में कई प्रसिद्ध रचनाएं की। जिनके लिए उन्हें कई राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। ‘अज्ञेय’ ने अपने साहित्यिक कॅरियर में कई प्रसिद्ध रचनाएं की। जिनके लिए उन्हें कई राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं।

निबन्‍ध-संग्रह

त्रिशंकु, आत्‍मनेपद, सब रंग और कुछ राग, लिखि कागद कोरे, अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली

उपन्‍यास‍

नदी के द्वीप, शेखन: एक जीवनी, अपने-अपने अजनबी

कविता संग्रह

भग्नदूत, चिंता, इत्यलम, आंगन के पार द्वार, हरी घास पर क्षण भर 1949, बावरा अहेरी 1954, इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये 1957, अरी ओ कस्र्णा प्रभामय 1959, आँगन के पार द्वार 1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक पर छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986), प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)।

कहानियां

विपथगा 1937, परम्परा 1944, कोठरीकी बात 1945, शरणार्थी 1948, जयदोल 1951; चुनी हुई रचनाओं के संग्रह: पूर्वा (1965), सुनहरे शैवाल (1965), अज्ञेय काव्य स्तबक (1995), सन्नाटे का छन्द, मरुस्थल।

निधन

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का 4 अप्रैल 1987 को देहांत हो गया।

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