जायरा, तुमने अभी लड़ाई लड़ी ही कहां थी जो मैदान छोड़ कर जा रही हो !

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दंगल में पहलवान गीता फोगट के बचपन का रोल निभाने वाली एक्ट्रेस जायरा वसीम ने कल सोशल मीडिया पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट लिखी जिसमें उन्होंने बॉलीवुड छोड़ने का ऐलान किया। जायरा ने मोटे-मोटे तौर पर कहा है कि एक्ट्रेस बनने की वजह से वो अपने इस्लाम धर्म से दूर होती जा रही हैं और धर्म इस्लाम की बताई हुई राह पर चलने में वो एक बार नहीं बल्कि 100 बार असफल रहीं हैं।

जायरा की इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर लोग दो धड़ों में बंट गए, एक वो जो आजादी की बात करते हैं तो दूसरे धर्म के नाम पर एक अच्छी कलाकार के जाने से खफा थे। जायरा का बॉलीवुड छोड़ देना उनका निजी फैसला है, और इस पर सवाल उठाने का किसी को हक नहीं है, वो जब चाहे, जहां चाहे अपनी चॉइस के बारे में बता सकती है, और ना ही मुद्दा किसी धर्म विशेष को कट्टरपंथी साबित करने का है।

हम सभी जानते हैं कि एक कलाकार समाज का हिस्सा होता है, वह अपनी फिल्मों से समाज के कई विषयों को सामने लाता है, फिर चाहे उसका मजहब कुछ भी हो, ऐसे में इस मुद्दे को हम धर्म का टैग हटाकर समझें तो हमारे लिए बेहतर होगा।

जायरा जो कि महज 18 साल की है, उनकी अभी ठीक से फिल्मों में एंट्री भी नहीं हुई थी और वो अब इसे छोड़ रही है। काम बड़ा या धर्म इसका फैसला करने में जायरा नाकाम रही या कट्टरपंथियों का दबाव इतना था कि उन्हें कुछ समझ नहीं आया, इस बारे में जायरा ही खुलकर बता सकती है।

अब 18 साल की एक लड़की के मन में ये द्वंद किसने पैदा किया, इसका जवाब कट्टरपंथियों से मांगिए ना कि किसी धर्म विशेष की किताबों में खोजिए।

क्या जायरा उन कट्टरपंथियों से नहीं लड़ सकती जो तुम्हे धमकियां देते थे, क्या धर्म के ठेकेदारों को वो जवाब नहीं दे सकती,

हर धर्म में कोई ना कोई रिजडिटी है, धर्म के प्रति आस्था, अकीदत, ईमान ये सब काम से आड़े कैसे आने लग जाते हैं ये हमे सोचना होगा।

इसके इतर कुछ समय पहले जायरा की फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार आई, जिसमें वो समाज, घर की हर बंधन से लड़ती है, उनके किरदार से ना जाने कितनी ही लड़कियां ऐसे ही सपने पूरे करने की ललक लिए बैठी होंगी, एक कलाकार के पीछे रोज कितनी ही जायरा वसीम जन्म लेती है, उन सब के बारे में हम कब सोचेंगे।

और रही बात सेक्युलरिज़्म, आजादी इन सब की तो किसी भी तरह से सेक्युलरिज़्म कैसे भी कट्टरपंथ को सहला नहीं सकता है। ऐसा सेक्युलरिज़्म राजनीति को फब सकता है, लेकिन समाज के लिए बहुत घातक हो सकता है।

आखिर में अगर जायरा अपने करियर को लेकर कम्फर्टेबल नहीं हैं तो वो आसानी से अपनी मर्जी से कोई नया करियर तलाश ढूंढ़ सकती है।

(ये लिखने वाले के व्यक्तिगत विचार हैं, चलता पुर्जा की सहमति या असहमति का यहां कोई प्रश्न नहीं है।) 

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