भारत के यूएन सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने का पूरा समर्थन करेंगे: रूस

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भारत, रूस और चीन (आरआईसी) के विदेश मंत्रियों के बीच जारी आभासी बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सदस्यता की मांग भी उठी। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि बैठक में संयुक्त राष्ट्र में संभावित सुधारों और भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की बात भी सामने आई। उन्होंने इस पर कहा कि हमें लगता है कि भारत इसका पूर्णकालिक सदस्य बनने का हकदार है और हम भारत की दावेदारी का पूरा समर्थन करेंगे। लावरोव ने इस दौरान डॉक्टर कोटनिस का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि डॉक्टर कोटनिस उन पांच भारतीय डॉक्टरों में शामिल थे, जो दूसरे चीन-जापान युद्ध के दौरान वर्ष 1938 में चिकित्सा सहायता देने के लिए गए थे।

उम्मीद है भारत और चीन के बीच स्थिति शांतिपूर्ण बनी रहेगी

सीमा पर भारत और चीन के बीच चल रहे विवाद पर रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि भारत और चीन को बाहर से कोई मदद चाहिए। किसी को उनकी मदद करने की आवश्यकता नहीं है, खासकर जब यह देश के मुद्दों पर आता है। वे अपने विवाद को खुद के दम पर सुलझा सकते हैं। तीन देशों के विदेश मंत्रियों की इस बैठक में रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि हमें उम्मीद है कि स्थिति शांतिपूर्ण बनी रहेगी और दोनों देश विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।

उन्होंने आगे कहा कि नई दिल्ली और बीजिंग ने शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। दोनों देशों ने रक्षा अधिकारियों, विदेश मंत्रियों के स्तर पर बैठकें शुरू कीं और दोनों पक्षों में से किसी ने भी ऐसा कोई बयान नहीं दिया, जिससे यह संकेत मिले कि उनमें से कोई भी गैर-कूटनीतिक तरीके से विवाद का समाधान चाहता है।

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दुनिया की प्रमुख आवाजों को अनुकरणीय होना चाहिए: जयशंकर

भारत, रूस और चीन के विदेश मंत्रियों की इस वर्चुअल मीटिंग में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, ‘दुनिया की प्रमुख आवाजों को हर तरह से अनुकरणीय होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करना, साझेदारों के वैध हित को पहचानना, बहुपक्षवाद का समर्थन करना और अच्छाई को बढ़ावा देना ही एक टिकाऊ विश्व व्यवस्था का निर्माण करने का रास्ता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह विशेष बैठक हमारे लंबे समय से चल रहे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों में विश्वास को दोहराती है, लेकिन आज चुनौती अवधारणाओं और मानदंडों की नहीं बल्कि समान रूप से इस पर अभ्यास की हैं।’

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