घरों के भीतर बढ़ती गैसें कहीं आपको न बना दे मंदबुद्धि, पढ़ें यह शोध

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आज के समय में बढ़ते वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव से तो हर कोई वाकिफ है। जैसे इसके कारण तापमान के बढ़ने से बीमारियों का प्रकोप बढ़ा और तूफानों में तेजी आई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मानव के मानसिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है? हाल में यूएसए में हुए एक शोध से इस बात का खुलासा हुआ है।

हाल में अमेरिका की कोलोराडो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर द्वारा किए एक शोध में इस बात की जानकारी मिलती है। इस अध्ययन के मुताबिक पर्यावरण में बढ़ती कार्बन डाईऑक्साइड से बीमारियों के साथ मानव की सोचने-समझने की क्षमता भी धीरे-धीरे कम हो रही है। वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ाने के लिए हमारे द्वारा की गतिविधियों ही जिम्मेदार है।

बाहरी वातावरण के मुकाबले कमरे में CO2 का स्तर ज्यादा

अध्ययन में कहा गया है कि CO2 के प्रभाव से व्यक्ति को किसी भी चीज पर फोकस करने में कठिनाई होती है। यह भी माना गया है कि बाहरी वातावरण के मुकाबले घर के अंदर ये हानिकारक गैस ज्यादा मात्र में मौजूद रहती है। जिसे वेंटिलेशन के जरिए भी कम नहीं किया जा सकता। जिस जगह जितने ज्यादा लोग होते हैं, वहां उतनी ही ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड पाई जाती है, जैसे- स्कूल, ऑफिस और अस्पतालों में ज्यादा लोग होते हैं और ज्यादा मात्रा में यह गैस होती है।

सही फैसले लेने की क्षमता में आ रही है गिरावट

इससे पहले वर्ष 2016 में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया था कि जब कमरों में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर 945 पार्ट्स प्रति मिलियन तक पहुंचता है तो वहां मौजूद लोगों की सोचने-समझने की क्षमता 15 फीसदी तक कम हो जाती है। 1400 पार्ट्स प्रति मिलियन के स्तर पर यह क्षमता 50 फीसदी तक खत्म हो जाती है। अध्ययन में कहा गया है कि मानव खुद कार्बन डाईऑक्साइड उत्पन्न करने वाली मशीन हैं। शोधकर्ताओं ने यह दावा भी किया है कि यदि ये हानिकारक गैसें इसी तरह बढ़ती रहीं तो इस सदी के अंत तक मानव में सही फैसले लेने की क्षमता लगभग आधी हो जाएगी।

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