दुनिया में सबसे महंगा होगा 2019 का चुनाव, पार्टियों के पैसों का झोल यहां समझो!

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अमेरिका स्थित विशेषज्ञ मिलन वैष्णव ने पीटीआई को बताया कि 2019 के चुनाव 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान खर्च किए गए $ 5 बिलियन से अधिक ही नहीं बल्कि 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनावों के दौरान खर्च किए गए पैसों को भी पीछे छोड़ सकता है। ऐसे में ये सवाल हम सभी के जहन में आ रहा होगा कि राजनीतिक पार्टियों के पास इतने बड़े लेवल पर पैसा आता कहां से है।

फंड इकट्ठा करने के लिए कौनसे तरीके राजनीतिक पार्टियां अपनाती हैं?

भारत में पार्टियां मोटे तौर पर दो सोर्स से फंड बनाती हैं पहला व्यक्तिगत डोनेशन और दूसरा कॉर्पोरेट फंडिंग।

कॉर्पोरेट फंडिंग

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार कॉर्पोरेट सेक्टर ने 2017 और 2018 के बीच राष्ट्रीय पार्टियों को 422 करोड़ रुपये का दान दिया। उस वित्तीय वर्ष में कुल दान का यह 89.82 प्रतिशत था। बताया जा रहा है कि अकेले भाजपा ने कॉर्पोरेट डोनेशन से 400 करोड़ रुपये इकट्ठा किए वहीं कांग्रेस को कॉर्पोरेट कंपनियों से 19 करोड़ रुपये मिले। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट चुनावी ट्रस्ट है जो कथित रूप से भारती एंटरप्राइजेज द्वारा चलाया जाता है और प्रचारित किया जाता है। ट्रस्ट ने भाजपा को सबसे ज्यादा डोनेशन दिया। इसने पार्टी को 154 करोड़ रुपये दिए। इसके बाद अब जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट द्वारा 12.5 करोड़ रुपये का दान दिया जाता है।

भाजपा के अन्य दानदाताओं में कैडिला एफ हेल्थकेयर 10 करोड़ रुपये, सिप्ला लिमिटेड 9 करोड़ रुपये, यूएसवी प्राइवेट लिमिटेड 9 करोड़ रुपये, माइक्रो लैब्स लिमिटेड 9 करोड़ रुपये, मैसर्स प्रगति ग्रुप्स 8.75 करोड़ रुपये, रेरा एंटरप्राइजेज शामिल हैं। इसके अलावा 8 करोड़ रुपये महावीर मेडिकेयर और 6 करोड़ रुपये एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स की तरफ से दिए गए हैं।

प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट कांग्रेस को दान करने में भी सबसे आगे है वो भी 10 करोड़ रुपये के साथ। उनके बाद 2 करोड़ रुपये में कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड और अब जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट, भारतीय समाजवादी रिपब्लिकन इलेक्टोरल ट्रस्ट, निमिया लिमिटेड और ट्रायम्फ इलेक्टोरल ट्रस्ट थे जिनमें से सभी ने एक-एक करोड़ रुपये का योगदान दिया।

कॉर्पोरेट फंडिंग में लूपहोल्स

हाल में, सरकार ने राजनीतिक दलों को वित्त पोषण करने वाले कॉर्पोरेट्स के लिए निर्धारित दो शर्तों को हटाने के लिए वित्त विधेयक में संशोधन किया।

• कॉर्पोरेट डोनेशन पर एक कंट्रोल जो पहले पिछले तीन वर्षों में कॉर्पोरेट के औसत शुद्ध लाभ का 7.5 प्रतिशत था इस संशोधन में उसे समाप्त कर दिया गया।

• फर्मों को अपने लाभ और हानि के बयानों पर अपने राजनीतिक योगदान की घोषणा करने वाले प्रावधान को समाप्त कर दिया गया यानि उन्हें किसी तरह की जानकारी देने की जरूरत नहीं होगी।

विशेषज्ञों को इन संशोधनों में काफी समस्या लगती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कॉर्पोरेट दान पर 7.5 प्रतिशत की कैप जो लगाई हुई थी वो अब हटा दी गई है। अब एक कंपनी राजनीतिक दलों को चलाने के लिए मौजूद हो सकती है और 100 प्रतिशत तक लाभ भी राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता है। यह पूंजीवाद है जो कि पूरी तरह से वैध और संस्थागत बन गया है।

व्यक्तिगत फंडिंग

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 में पार्टियों को किए गए कुल दान का लगभग 10 प्रतिशत व्यक्तिगत योगदानकर्ताओं से प्राप्त किया गया था। कम से कम 2,772 व्यक्तिगत दाताओं ने 47 करोड़ रुपये दान किए।

किन मोड पर ये डोनेशन दिए जाते हैं?

पारदर्शिता के लिए चुनाव आयोग की लंबे समय से मांग के कारण केंद्र राजनीतिक दलों द्वारा नकद में स्वीकृत दान को सीमित करने पर जोर दे रहा है। जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए चेक, इलेक्टोरल बॉन्ड और डिजिटल भुगतान के अन्य रूपों को लाया जा रहा है।

नकदी

2017 में केंद्रीय बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि राजनीतिक दल अब एक व्यक्ति से केवल 2,000 रुपये नकद प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, अनाम नकद दान की सीमा 20,000 रुपये से घटाकर 2,000 रुपये कर दी गई है।

आगे की जांच के लिए चुनाव आयोग ने यह भी सिफारिश की कि 2000 रुपये से अधिक दान देने वाले दानदाताओं का विवरण सार्वजनिक डोमेन में घोषित किया जाए। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नकद दान को सीमित करने के निर्णय से काले धन पर अंकुश लगाने में मदद नहीं मिलेगी।

मुख्य रूप से ब्लैक में प्राप्त बड़े डोनर्स का पैसा था जिसे विभिन्न नामों से 20,000 के नकद दान के रूप में दिखाया जा रहा था। अब यह प्रयास थोड़ा अधिक होगा कि उन्हें प्रत्येक 2,000 के दान में परिवर्तित किया जा सके। बदला तो जाएगा ही अब चूंकि पैसा अब चुनावी बॉन्ड में आएगा जो पूरी तरह से गुमनाम रूप से ही आएगा।

चुनावी ट्रस्ट

चुनावी ट्रस्ट प्रकृति में गैर-लाभकारी हैं और उनका उद्देश्य कॉर्पोरेट्स या व्यक्तियों द्वारा दिए गए धन को प्राप्त करना है और उन्हें राजनीतिक दल को हस्तांतरित करना है जो दान के लिए था। बिज़नेस टुडे के अनुसार प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट, जो कि देश का सबसे अमीर चुनावी ट्रस्ट है उसने वित्तीय वर्ष 2017-2018 में भाजपा को कुल 169 करोड़ रुपये की आय में से 144 करोड़ रुपये दान किए।

2013 में चुनावी ट्रस्टों को दान के रूप में धन में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए कहा गया था इस मामले में, केवल चेक, डिमांड ड्राफ्ट या खाता हस्तांतरण द्वारा स्वीकार किए जाते हैं। इसका असर ये हुआ कि कई ओर्गनाइजर्स ने अपने प्रोफिट को पोलिटिकल पार्टियों को फंड के रूप में देने के लिए चुनावी ट्रस्ट का सहारा लिया।

एडीआर की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए इंडिया टुडे ने बताया कि भाजपा को 251 करोड़ रुपये मिले या ऐसा कहा जा सकता है कि कुल 365 करोड़ रुपये का 70 प्रतिशत भाजपा के हिस्से में गया। पिछले साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी ने कुल खर्च का 131 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया था। रिपोर्ट में पाया गया कि कांग्रेस 71 करोड़ रुपये के कलेक्शन के साथ दूसरे स्थान पर रही और दो चुनावों में पार्टी ने 20 करोड़ का खर्च किया। चुनावी ट्रस्ट हालांकि जल्द ही अतीत की बात हो सकती है क्योंकि कॉरपोरेट अब चुनावी(इलेक्ट्रोरल) बोंड पर स्विच कर रहे हैं, जहां योगदानकर्ता की पहचान का खुलासा किए बिना दान किया जा सकता है।

चुनावी या इलेक्ट्रोरल बॉन्ड क्या हैं?

2017 के बजट में फण्ड में चुनावों के लिए अरूण जेटली द्वारा एक और बड़ी घोषणा की गई थी जिसमें मौजूद था चुनावी बॉन्ड। इसमें 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के बॉन्ड एक वाहक बॉन्ड की तरह हैं जो भारत में शामिल संगठनों और भारत के किसी भी नागरिक द्वारा खरीदे जा सकते हैं। दानकर्ता अपनी पसंद की पार्टी के लिए बोंड का योगदान कर सकते हैं, फिर इसे राजनीतिक दलों द्वारा एन्कोड किया जाएगा। चुनावी बोंड केवल भारतीय स्टेट बैंक की विशिष्ट शाखाओं पर उपलब्ध कराए गए हैं। ध्या देने वाली बात यह है कि सरकार का यह दावा था कि चुनावी बॉन्ड दाताओं की पहचान को गुप्त रखा जाएगा।

अरुण जेटली ने इस पर कहा कि इससे पारदर्शिता आएगी। इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीदार की बैलेंस शीट यह दर्शाएगी कि उसने एक इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा है। यह स्पष्ट है कि चूंकि उसने बॉन्ड खरीदा है, इसलिए वह इसे राजनीतिक में दान करेगा। पार्टी लेकिन कौन सी विशिष्ट राजनीतिक पार्टी है इसका पता नहीं लगाया जा सकेगा। हैरानी वाली बात तो यह है कि दाताओं के नाम RTI क्वेरी के माध्यम से भी पता नहीं किए जा सकते हैं।

मीडिया द्वारा की गई एक जांच में यह पता चला है कि चुनावी बॉन्ड में दानदाताओं और राजनीतिक दलों के बीच की कड़ी को ट्रैक करने के लिए उन पर छपे अल्फ़ान्यूमेरिक नंबर होते हैं। 1000 प्रत्येक के दो इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने के बाद एक प्रतिष्ठित फॉरेंसिक लैब में किए गए टेस्ट से पता चला कि एक छिपा हुआ सीरियल नंबर “अल्ट्रा वायलेट (यूवी) प्रकाश के तहत जांच करने पर प्रतिदीप्ति दिखाने वाले मूल दस्तावेज के दाहिने शीर्ष कोने पर दिखाई दे रहा था। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह विश्वास के विपरीत है कि चुनावी बॉंन्ड प्रणाली को अधिक पारदर्शी बना देगा। चुनावी बॉंन्ड जो भी पारदर्शिता है उसे समाप्त कर देगा। देने वाला गुमनाम है जो अपने आप में निराशाजनक है।

चुनावी बॉन्ड को मीडिया और विशेषज्ञों द्वारा कभी भी पसंद नहीं किया गा। इलेक्टोरल बॉन्ड पर गुप्त संख्या समस्या को कई गुना बढ़ा देती है। इससे साफ होता है कि राजनीतिक पार्टियां दानकर्ता की जानकारी पता कर सकती है और आम नागरिक नहीं कर सकता है।

विशेषज्ञों ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए भाजपा की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि पार्टी को मार्च 2018 में बेचे गए कुल 228 करोड़ रुपये के बॉन्ड में से 210 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड मिले। यह मार्च 2018 में किए गए कुल चुनावी बॉन्ड दान का 95 प्रतिशत है। यह एक संयोग नहीं है कि 2017-18 में, चुनावी बॉंन्ड के माध्यम से 95 प्रतिशत दान एक पार्टी सत्ताधारी बीजेपी के पास गया है।

राजनीतिक दल कितने अमीर हैं?

चुनाव सुधार निकाय एडीआर ने अप्रैल 2018 में एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि भाजपा भारत की सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी है।

वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान भाजपा ने 1,034 करोड़ रुपये की आय घोषित की जो पिछली आय से 463 करोड़ रुपये अधिक यानि अपनी पिछली सबमिशन से 81 प्रतिशत की वृद्धि इसमें देखी गई। इसी अवधि के दौरान पार्टी ने 710 करोड़ रुपये का व्यय दर्ज किया। वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान 2016-17 के दौरान कांग्रेस की आय 262 करोड़ रुपये से 14 प्रतिशत कम हुई। इस बीच पार्टी ने 322 करोड़ रुपये खर्च किए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सात राष्ट्रीय दलों भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई-एम, सीपीआई, बीएसपी और टीएमसी ने 1,559 करोड़ रुपये की आय और 1,228 करोड़ रुपये की संयुक्त आय घोषित की।

यह सब पैसा कहां खर्च होता है?

चुनाव आयोग इस बात पर एक कंट्रोल लगाता है कि व्यक्तिगत उम्मीदवार चुनाव के दौरान कितना खर्च कर सकते हैं। लोकसभा प्रत्याशी के लिए 50 लाख रुपये से 70 लाख रुपये के बीच है। वे जिस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उसके आधार पर यह राशि तय होती है। 2 लाख रुपये से लेकर 2.8 लाख रुपये विधानसभा चुनावों के लिए खर्च किए जा सकते हैं। लेकिन पार्टियां इन फंड्स को खर्च कहां करती हैं?

राजनीतिक दलों की खर्च करने की आदतों के संबंध में एडीआर के एक विश्लेषण के अनुसार पाया कि वित्त वर्ष 2016-17 में कुल 1,034.27 करोड़ रुपये का खर्च किया गया। भाजपा ने चुनाव / सामान्य प्रचार पर सबसे अधिक खर्च किया जिसकी राशि 606.64 करोड़ थी। इसके बाद प्रशासनिक लागत पर 69.78 करोड़ रु। इस बीच, कांग्रेस ने चुनावी खर्च पर 149.65 करोड़ और प्रशासनिक और सामान्य खर्च पर 115.65 करोड़ रुपये खर्च किए। एडीआर के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि 2017 की पहली छमाही में होने वाले पांच राज्य विधानसभा चुनावों से पहले 7 नेशनल और 16 क्षेत्रीय दलों द्वारा एकत्रित 1,503.21 करोड़ में से चुनाव अभियान पर 494.36 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इसमें से पार्टियों ने प्रचार पर 56 प्रतिशत और यात्रा पर 21 प्रतिशत खर्च किया। प्रचार और विज्ञापनों पर राष्ट्रीय दलों ने कुल मिलाकर 189.46 करोड़ रुपये खर्च किए।

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