JNU मामले में कैसे BJP ने गलत जानकारी का इस्तेमाल अपने राजनैतिक फायदे के लिए किया?

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह राज्य में निजी यूनिवर्सिटीज को कंट्रोल करने वाले अध्यादेश को मंजूरी दी। कई सरकारी जाँचों और कंट्रोल के अलावा यूनिवर्सिटीज को अब यह वचन देना होगा कि उनके कैंपस में किसी भी तरह की “राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ” नहीं होंगी।

अभी तक साफ नहीं हुआ है कि इतनी जल्दबाजी में अध्यादेश को क्यों मंजूरी दी गई। अध्यादेश पर चर्चा के बाद बिल पारित क्यों नहीं हो सकता था। एंटीनेशनल एक्टीविटी की परिभाषा क्या होती है? जब भारतीय जनता पार्टी से ये सवाल पूछा गया तो उन्होंने इसका जवाब देने से मना कर दिया।

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने स्वीकार किया कि फरवरी 2016 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुई एक घटना को दोबारा होने से रोकने के लिए इस तरह के उपाय आवश्यक हैं। उस घटना में विश्वविद्यालय के छात्रों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था क्योंकि कथित तौर पर उन्होंने “देशविरोधी” नारे लगाए थे।

इसके बाद वही हुआ जो हम सभी ने देखा। प्राइम टाइम चैनलों ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया और ये दिखाने की कोशिश में लग गए कि देश की संस्थाओं और बुद्धिजीवियों के बीच एक ऐसी गिरोह काम कर रही है जो देश विरोधी है और देश का नुकसान चाहते हैं। इसी बीच “टुकड़े टुकड़े गैंग” और “ब्रेक इंडिया गैंग” जैसे नामों का अविष्कार हुआ। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों को लेकर ऐसे नारे गढ़े गए थे।

सरकार पहले से ही “देश-विरोधी” या जो कोई भी भारत माता की जय नहीं बोल रहा था, उसके खिलाफ विरोध दर्ज कर रही थी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की घटना और उसके बाद शुरू हुए सार्वजनिक उन्माद ने यूनिवर्सिटीज के लिए एक अलग ही माहौल बना दिया।

“टुकडे टुकडे गैंग” जैसी थ्योरी को गढ़कर इसका इस्तेमाल सरकार कई तरह की कार्यवाही को सही ठहराने में कर रही है। जिसमें एक वामपंथी लेखक, एक दलित प्रदर्शनकारी, एक छात्र तक शामिल है। जेएनयू के मामले को जनता के बीच इस तरह से गढ़ा गया कि कई लोगों को अभी भी पता नहीं है कि आरोप अभी तक साबित नहीं हो पाए।

फेक न्यूज

9 फरवरी 2016 की रात छात्रों का एक ग्रुप 2013 में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की मौत को चिह्नित करने के लिए कैंपस में इकट्ठा हुआ। इसके तुरंत बाद, टेलीविजन चैनलों ने वीडियो क्लिप प्रसारित किया जिसमें छात्र नारे लगा रहे थे और सरकार ने उन्हें देशद्रोह माना।

कन्हैया कुमार जो उस समय जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ के अध्यक्ष थे उन्हें गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा उनके दो साथी छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को भी गिरफ्तार किया गया। एक हफ्ते के बाद पता चला कि जिन वीडियो के आधार पर कन्हैया और उसके साथियों को गिरफ्तार किया गया था वो फर्जी थे, डोक्टर्ड थे। ज़ी न्यूज़ ने भी वीडियो फैलाया था। वहां के एक प्रोड्यूसर ने ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि उसकी “अंतरात्मा ने विद्रोह करना शुरू कर दिया था”

जैसा कि मीडिया वॉचडॉग द हूट ने लिख था कि टाइम्स नाउ और ज़ी न्यूज़ जैसे टेलीविज़न चैनल “फ्यूलिंग स्टेट एक्शन” के लिए दोषी थे। यानि उन्होंने सरकार की कार्यवाही को हवा देने की कोशिश की। घटना स्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों को आरोप पत्र दाखिल करने का कोई कारण नजर नहीं आया। वीडियो सामने आने के बाद ही उन्होंने ऐसा किया और न्यूज एंकर्स ने इस मुद्दे का मीडिया ट्रायल किया।

मीडिया ख़ास तौर पर उमर ख़ालिद के पीछे रहा। उदाहरण के तौर पर समाचार एक्स ने दावा किया था कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की ओर से अलर्ट था और खालिद जैश-ए-मोहम्मद की तरफ था। इंटेलिजेंस ब्यूरो ने इस खबर को मनगढ़ंत बताया। लेकिन एक बार खबर सामने आने के बाद होना क्या था मीडिया ट्रायल हुआ और खबर कई हफ्तों तक सुर्खियों में रही।

तीन साल से भी ज्यादा वक्त हो गया है सभी तीन छात्र जमानत पर बाहर हैं। इस जनवरी की ही बात है। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली सरकार की मंजूरी के बिना 1,200 पन्नों की एक चार्ज शीट दायर की। पुलिस ने एविडेंस के तौर पर 13 वीडियो क्लिप इसमें शामिल किए थे। केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला से उनकी प्रामाणिकता की भी रिपोर्ट साथ में लगाई गई। आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा इस मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी देना अभी बाकी है।

फिर आया “अर्बन नक्सल”

माना जाता है कि “टुकडे, टुकडे गैंग” को टेलीविजन एंकर अरनब गोस्वामी के बाद जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी मामले के दो साल बाद बनाया गया। अर्नब गोस्वामी ने उमर खालिद, कन्हैया, सिमी और पाकिस्तान के बीच पता नहीं कौनसा मगर सीधे संबंध की बात की। इसी कड़ी में अर्नब ने 2018 न्यू इयर डे पर हुई पुणे हिंसा को भी इसमें जोड़ दिया।

पुणे ज़िले में भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह का आयोजन था। इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था। दलित नेता ब्रिटिश सेना की इस जीत का जश्न मनाते हैं। महार समुदाय को उस वक्त अछूत समझा जाता था। और महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की ओर से लड़े थे। इसी की सालगिरह के लिए दलित समूह इसका जश्न मनाने इकट्ठा हुए थे।

इसके बाद अर्नब गोस्वामी ने अपने टीवी प्रोग्राम में “टुकडे, टुकडे गैंग” के “पर्दाफाश” की कहानी रखी। और कहा कि कई राजनैतिक ताकतें इनके पीछे है जो विरोध को बढ़ रहे हैं। इनमें से एक नाम था जिग्नेश मेवाणी का। जिग्नेश मेवाणी दलित नेता हैं जिन्होंने हिंसा से ठीक पहले दिन एक पब्लिक मीटिंग रखी थी।

इसके बाद के महीनों में सरकार की कार्यवाही मीडिया ट्रायल से काफी मिलती जुलती रही। मार्च में जब दलित संगठनों ने एक जनवरी की हिंसा को भड़काने वाले हिंदुत्व नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की तो महाराष्ट्र पुलिस ने लगभग 4,000 दलितों को ही तलाशी के लिए धर लिया।

सुरक्षा प्रतिष्ठान में नई सहमति यह थी कि भीमा कोरेगांव हिंसा को दलित कार्यकर्ताओं ने उकसाया था जिन्होंने 31 दिसंबर के कार्यक्रम में भाषण दिया था। अप्रैल 2018 से पुणे पुलिस ने ऐसे कार्यकर्ताओं पर छापेमारी शुरू की। अगस्त 2018 तक कार्यकर्ताओं, वकीलों, कवियों और शिक्षाविदों को गिरफ्तार किया गया।

अब मीडिया ऑफिसों ने लोगों को एक और नई टर्म दे दी थी “अर्बन नक्सल”. 2017 में फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री का लेख एक दक्षिण पंथी पत्रिका स्वराज्य में छपा था जिसे बाद में टेलीविज़न चैनलों द्वारा उठाया गया। अर्बन नक्सल जैसी टर्म ने इस बात पर जोर दिया कि देश में ही कई दुश्मन बैठे हैं ताकि वे अपनी एंटी नेशनल एक्टीविटीज को अंजाम दे सकें।

पुलवामा और देशभक्ति

ऐसा माहौल तैयार किया गया जिसमें जिन लोगों ने सरकार और सेना पर सवाल खड़े किए उन्हें भाजपा द्वारा राष्ट्र-विरोधी माना गया। फरवरी में पुलवामा से गुजर रहे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर हमला हुआ जिसमें 40 जवान मारे गए। देश भर में कई जगह भीड़ कश्मीरी लोगों पर हमले करने लगी। अब जो ये भीड़ तैयार हुई है ये “एंटी नेशनल्स” को सोशल मीडिया पर ट्रोल ही नहीं करती ये उन तक पहुंचती है उन्हें मारती है, उन्हें जॉब से निकालती है, यूनिवर्सिटी से बाहर फेंकती है और गिरफ्तार करती है।

बीजेपी

देश-विरोधी या टुकडे-टुकड़े गैंग का शिकार एक तरह का विकृत विज्ञान बन गया जिसने इस साल भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में भी अपनी जगह बनाई। कभी चाय वाले प्रधानमंत्री अब चौकीदार बन चुके थे जो बाहरी दुश्मनों से देश की रक्षा करेगा। इसी के साथ देश में मौजूद “एंटीनेशनल्स” को भी टारगेट किया गया। इसी कड़ी में सिटिजन शिप बिल आता है।

सत्ता में आने के तुरंत बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने अगले कुछ वर्षों के लिए पार्टी का एजेंडा रखा। इसमें “छद्म धर्मनिरपेक्ष / लिबरल कार्टेल” का “विघटन” शामिल था। राम माधव ने कहा था कि उस कार्टेल्स के अवशेष को देश के शैक्षणिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक परिदृश्य से हटाने की आवश्यकता है।

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