भारत में पर्यावरण नष्ट हो रहा है और हमारे नेताओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता

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“भारत के चेन्नई शहर में 50 लाख लोगों के पास पानी नहीं है” शुक्रवार को न्यूयॉर्क टाइम्स में इस हैडिंग के साथ खबर छपी। एक अनुमान के मुताबिक बिहार में हीटवेव ने 150 से अधिक लोगों की जान ले ली है। दक्षिण अफ्रीकी अरबपति गुप्ता परिवार ने इस महीने एक मेगा-वेडिंग उत्तराखंड में आयोजित की। शादी तो हो गई लेकिन पीछे छोड़ गए 4000 किलो कचरा जिससे अब वहां का प्रशासन डील कर रहा है।

ये कुछ ऐसी घटनाए हैं जो पिछले कुछ हफ्तों में खबरों में रहीं। जाहिर है देश एक पर्यावरणीय संकट के बीच में है। फिर भी नेता लोग इस बारे में चुप्पी ही साधे रहते हैं।

भारतीय राजनीति में पर्यावरण मुश्किल से ही दिखाई देता है। हाल के आम चुनावों में पाकिस्तान से लेकर टैक्स तक पर खूब चर्चा की गई लेकिन जिस तरह की हवा में फिलहाल भारत सांस ले रहा है उस पर बहुत कम बात की गई। इसके अलावा हरा रंग देश से घट रहा है और तापमान लगातार बढ़ रहा है इस पर भी ध्यान ही नहीं दिया गया।

ये भारतीय राजनीति या सिस्टम का नेचर ही रहा है जिसमें रोजाना के मुद्दे पर्यावरणीय मुद्दों से ज्यादा ऊपर रहते हैं। नतीजतन विजयी भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाया गया नंबर एक मुद्दा पाकिस्तान पर हुआ हवाई हमला था। ऐसा इसीलिए था क्योंकि इस मुद्दे का इमोशनल इफेक्ट ज्यादा हुआ और ज्यादा लोग इस मुद्दे के साथ जुड़े।

जनता अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार को पुश करने में असफल रहती आई है। ऐसे में दूर की सोचना तो कहां से हो। यह हैरान करता है कि पर्यावरण संरक्षण की अधिक जटिल, दीर्घकालिक चुनौतियां कभी भी चुनावी राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करती।

लेकिन जमीन पर आंकड़े चिंताजनक हैं। कैंसर, तपेदिक, एड्स और मधुमेह की तुलना में प्रदूषण के कारण अधिक भारतीयों की मृत्यु होती है। केंद्र सरकार के थिंक टैंक NITI अयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 21 भारतीय शहरों में 2020 तक भूजल खत्म होन की कगार पर आ जाएगा।

2030 तक, 40% भारतीयों के पास पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते समुद्र के स्तर का मतलब हो सकता है अत्यधिक आबादी वाले तटीय क्षेत्र में बाढ़ और जानलेवा हीटवेव्स।

ऐसी जलवायु घटनाएं किसी भी देश के लिए विनाशकारी होंगी। भारत में, उच्च स्तर की गरीबी और अत्यधिक जनसंख्या घनत्व को देखते हुए ऐसी घटनाएं बड़े पैमाने पर अव्यवस्था को प्रभावित करेंगी और संघर्ष पैदा होगा। भारत के नेताओं को भविष्य को संरक्षित करने के लिए देश में वर्तमान में कठोर नीतिगत परिवर्तन करने में मदद करनी चाहिए।

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