लीजेंड शास्त्रीय गायिका गंगूबाई हंगल को बचपन में जातीय टिप्पणियों का करना पड़ा था सामना

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भारतीय गायन शैली ‘ख्याल’ की प्रख्यात गायिका गंगूबाई हंगल की आज 21 जुलाई को 14वीं डेथ एनिवर्सरी है। हंगल अपनी गंभीर और दमदार आवाज के लिए के लिए ख़ास पहचान रखती थी। वे किराना घराने से संबंध रखती थी। उनकी गायिकी की कई खास बेमिसाल बातों में से एक यह थी कि वे हर राग को धीरे-धीरे खोलती थीं, बिल्कुल जैसे सुबह की हर किरण पर एक-एक पंखुड़ी खुल रही हो। गंगूबाई ने पांच दशक से ज्यादा समय तक संगीत की सेवा की और इस दौरान उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया। गंगूबाई हंगल को कला के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1971 में ‘पद्म भूषण’और वर्ष 2002 में ‘पद्म विभूषण’ अवॉर्ड से सम्मानित किया था। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे कुछ अनसुनी बातें…

गंगूबाई हंगल का जीवन परिचय

शास्त्रीय गायिका गंगूबाई हंगल का जन्म 5 मार्च, 1913 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले स्थित शुक्रवारादापेते गांव में हुआ था। वे देवदासी परंपरा वाले केवट परिवार में जन्मी थी। गंगूबाई हंगल का मूल नाम गांधारी था। उनकी माता अंबाबाई कर्नाटिक संगीत में माहिर थी और उनसे ही उन्हें संगीत की आरंभिक शिक्षा मिलीं। उन्हें निम्न जाति में जन्मी होने के कारण सामाजिक अपमान और उपेक्षा सहनी पड़ी थी।

उनको बचपन में कई बार जा​तीय टिप्पणी का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने गायिकी शुरू करने के दौरान लोगों से ‘गानेवाली’ जैसे शब्दों को सुना। गंगूबाई ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि किस तरह लोग उन्हें गानेवाली कह कर ताने मारा करते थे, कैसे उन्होंने जातीय और लिंग बाधाओं को पार किया और किराना उस्ताद सवाई गंधर्व से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम ली।

जीवनभर गुरु-शिष्य परंपरा को कायम रखा

गंगूबाई हंगल ने अपने नेतृत्व में परंपरागत गुरु-शिष्य परंपरा को आजीवन जिंदा रखा था। उनमें संगीत के प्रति जन्मजात लगाव था। अपनी बेटी में संगीत की प्रतिभा को देखकर गंगूबाई की संगीतज्ञ मां ने कर्नाटक संगीत के प्रति अपने लगाव को दूर रख दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी बेटी संगीत क्षेत्र के एच कृष्णाचार्य जैसे दिग्गज और किराना उस्ताद सवाई गंधर्व से सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखे।

गंगूबाई को भैरव, असावरी, तोड़ी, भीमपलासी, पूरिया, धनश्री, मारवा, केदार और चंद्रकौंस रागों की गायकी के लिए सबसे अधिक वाहवाही मिली।

कई नामी सम्मानों से नवाज़ी गई गंगूबाई

गंगूबाई हंगल को संगीत कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष 1962 में कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार ​से नवाज़ा गया। वर्ष 1971 में भारत सरकार ने उन्हें तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म भूषण’ से और वर्ष 2002 में दूसरे सर्वोच्च नागरिक अवॉर्ड ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया। गंगूबाई को वर्ष 1973 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और वर्ष 1996 में संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया। शास्त्रीय संगीत में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें जीवन में अनेकों सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म अवॉर्ड, तानसेन पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रमुख हैं।

97 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

भारतीय क्लासिकल म्यूजिक को ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाली गायिका गंगूबाई हंगल का निधन 21 जुलाई, 2009 को हुबली में 97 वर्ष की उम्र में हुआ।

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