चे ग्वेरा ने भारत दौरे पर पंडित नेहरू से किए थे दो अनुरोध, कई देशों की बदला दी थी सत्ता

Views : 6133  |  4 minutes read
Che-Guevara-Biography

जहां कहीं भी सामाजिक क्रांति का जिक्र होगा, वहां-वहां चे ग्वेरा का जिक्र आपको मिलेगा। ग्वेरा का चित्र बनी टीशर्ट पहने लोग सड़कों पर आज पूरी दुनिया में घूमते दिखाई देते हैं, उसके बारे में क्या आप जानते भी हैं? एक स्मार्ट और आकर्षक चेहरा तो हमने देखा होगा, लेकिन उसके पीछे के क्रांतिकारी दिमाग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मार्क्सवादी क्रांतिकारी चे ग्वेरा की आज 9 अक्टूबर को 56वीं डेथ एनिवर्सरी है। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

अर्जेंटीना के रोज़ारियों में हुआ ग्वेरा का जन्म

अर्नेस्तो ग्वेरा उर्फ चे ग्वेरा का जन्म 14 जून, 1929 को अर्जेंटीना के रोज़ारियो में हुआ था। 1948 की बात है, जब चे ने ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन उससे पहले अर्नेस्तो ग्वेरा ने वामपंथ के बारे में बचपन से पढ़ा और साहित्य से उनका जुड़ाव रहा। इन्हीं विचारों की वजह से चे को पहचाना जाता है। दो साल बाद ग्वेरा ने लैटिन अमेरिका में दो मोटर साइकिल ट्रैवल किए। बाइक पर ही वे पूरे लेटिन अमेरिका में घूमे। इसका असर ये हुआ कि उनके जेहन में क्रांतिकारी विचार और भी प्रबल हो गए व नए राजनीतिक विचारों का जन्म हुआ। उस वक्त चे ग्वेरा 23 साल के थे।

अर्नेस्टो ग्वेरा की मोटरसाइकिल डायरी

चे ग्वेरा एक बार मोटरसाइकिल पर 4500 किलोमीटर और दूसरे ट्रैवल में 8000 किलोमीटर घूमे। इस दौरान उन्हें एक बात पता चल चुकी थी कि समाज में फैली जिस गरीबी और उत्पीड़न को उन्होंने देखा, उसका इलाज सिर्फ सशस्त्र क्रांति और साम्यवाद से ही किया जा सकता था। उन्होंने देखा कि कैसे दक्षिण अमेरिका में पूंजीवाद ने लोगों की कमर तोड़ रखी थी। कैसे मरीजों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था। समाजवादियों को खत्म किया जा रहा था। खादानों में मजदूरों का शोषण किया जा रहा था। चे ग्वेरा ने अपने इस पूरे अनुभव को अपनी किताब मोटर साइकिल डायरीज में लिखा भी था।

ग्वाटेमाला आंदोलन और चे की भूमिका

वर्ष 1953 में अपनी डिग्री पूरी करने के लिए चे ग्वेरा ब्यूनस आयर्स पहुंचे। डॉ. बनकर ग्वेरा ने अर्जेंटीना छोड़ दिया। लेकिन वे कहां डॉक्टर बने रहते, क्रांतिकारी विचारों ने उनके अंदर बदलाव की चाहत तेज कर दीं। अमेरिका उस वक्त पूंजीवाद के आधार पर चल रहा था और चे ने क्रांति इसी के खिलाफ शुरू करनी चाहीं। वे अपने विचारों को समाज के किसी भाग में खोज रहे थे। जो वो चाहते थे, कुछ ऐसा ही संघर्ष उस वक्त पड़ोसी देश ग्वाटेमाला में चल रहा था। उन्होंने वहां जाने का फैसला किया और इसे करीब से देखने का फैसला किया।

थोड़ा सा ग्वाटेमाला के बारे में भी जान लेते हैं। अमेरिका के विपरीत वहां पर समाजवादी सरकार थी और उस वक्त के राष्ट्रपति जैकब अर्बेंज गुजमान भूमि सुधार कार्यक्रम चला रहे थे और बड़ी कंपनियों की कमर तोड़ रहे थे। इसी वक्त अमेरिका की बड़ी कंपनी यूनाइटेड फ्रंट भी गुजमान के धक्के चढ़ गई, जिसके पास ग्वाटेमाला की लाखों एकड़ जमीन थी। अमेरिका को इसकी वजह से काफी नुकसान झेलना पड़ रहा था। अमेरिका ने सीआईए के साथ मिलकर ग्वाटेमाला का तख्तापलट करवा दिया। ग्वेरा उस वक्त गुजमान का समर्थन कर रहे थे, लेकिन तख्तापलट के बाद पकड़े जाने के डर से वे मैक्सिको जा पहुंचे।

क्यूबा की क्रांति में चे का योगदान

गुजमान सरकार के गिरने के कारण चे ग्वेरा के जहन में अमेरिकी शासन के प्रति खिलाफत की भावना को और भी तेज कर दिया, लेकिन फिलहाल चे कुछ कर नहीं पा रहे थे। उन्होंने मैक्सिको के एक अस्पताल में नौकरी शुरू कर दीं। उसी दौरान चे की मुलाकात हुई फिडेल कास्त्रो से। यहां से शुरू हुआ एक नया युग। दरअसल, फिडेल कास्त्रो क्यूबा से निकाल दिए गए थे। उस वक्त क्यूबा में अमेरिकी समर्थित सरकार थी और इसी तानाशाही सरकार को हटाने के लिए चे ने आगे का रास्ता फिडेल कास्त्रो के साथ चुना। क्यूबा में उस वक्त बतिस्ता की सरकार थी।

फिडेल इसी सरकार के तख्तापलट के लिए संघर्ष कर रहे थे और चे ग्वेरा भी इसी काम में लग गए। इधर अमेरिकी सीआईए ने फिडेल कास्त्रो का विरोध और उसे हराने के लिए लोगों में हथियार बांटने शुरू कर दिए। ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिका ने क्यूबा में बहुता सा पैसा लगा रखा था, यहां उसका तेल जैसे बड़े धंधों में लगा हुआ था।

लोगों में बदलाव की भावना भरने का काम किया

अमेरिका के लिए उस वक्त क्यूबा वेश्यावृति, जुएं और तरह-तरह के ड्रग्स का अड्डा माना जाता था। चे ग्वेरा ने इसी सरकार को हटाने के लिए अपना जोर लगा दिया। स्थानीय लोग भी परेशान थे और धीरे-धीरे सत्ता बतिस्ता के हाथों से फिसल रही थी। फिडेल कास्त्रो के लोग वहां जीत रहे थे और चे की भूमिका भी इसमें बड़ी अहम रहीं। लोगों में बदलाव की भावना को भरने का काम चे ने किया।

बतिस्ता से सत्ता छीनने के उद्देश्य से कास्त्रो के ’26 जुलाई आंदोलन’ में शामिल होने के बाद ग्वेरा एक मुख्य क्रांतिकारी बन गए। सिर्फ 500 विद्रोहियों ने बतिस्ता सरकार का तख्तापलट कर दिया। अब बारी आई व्यवस्था की, फिडेल हमेशा से ही चे के विचारों से काफी प्रभावित थे, नतीजतन फिडेल ने क्यूबा में मार्क्सवादी व्यवस्था लागू कर दी। चे ग्वेरा ने क्यूबा की इस क्रांति पर भी किताब लिखीं।

बाद में नेशनल बैंक ऑफ क्यूबा के अध्यक्ष बने

क्यूबा की क्रांति में चे ग्वेरा एक मुख्य व्यक्ति बन गए और इसकी सफलता के बाद चे को नेशनल बैंक ऑफ क्यूबा के अध्यक्ष और उद्योग मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए चे ग्वेरा भूमि पुनर्वितरण और क्यूबा उद्योग के राष्ट्रीयकरण के लिए घरेलू योजनाओं को लागू करने में अपना जोर लगाते रहे। उन्होंने दुनियाभर में देश के लिए एक राजदूत के रूप में ट्रैवल किया। चे को एक सच्चा मार्क्सवादी माना जा सकता है, जो लोगों के लिए जिया और क्रांति भी सत्ता के लिए नहीं, बल्कि लोगों के लिए कीं।

नेहरू से समाजवाद फैलाने व चीनी खरीदने का किया अनुरोध

वर्ष 1959 की बात है जब चे ग्वेरा मंत्री के रूप में भारत आए और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात कीं। उन्होंने इस मुलाकात में पंडित नेहरू से समाजवाद फैलाने और क्यूबा से चीनी खरीदने का अनुरोध किया। चे ने पूरे लैटिन अमेरिका को बदलने का सपना देखा, जिसका मतलब था कि क्रांति की लहर को बाकी देशों में भी बहाना। चे और फिडेल ने इसके लिए कई राजनीतिक विद्रोहियों को मौत के घाट उतारा।

युवा अवस्था में ही हो गया क्रांतिकारी चे का अंत

जब चे ग्वेरा ने रूस की तरफ अपना हाथ बढ़ाया तब क्यूबा पर मिसाइल का संकट मंडरा रहा था। लेकिन बाद में रूस ने अमेरिका से ही हाथ मिला लिया। फिडेल उस दौरान रूस की तरह ध्यान दे रहे थे, वहीं चे चीन की ओर नजर किए हुए थे, इसी दौरान उनके बीच मतभेद देखने को मिले। चे ने फिर क्रांति के छह साल बाद मार्क्सवादी विचार को और लोगों तक फैलाने के लिए क्यूबा छोड़ दिया। वे वर्ष 1965 में कांगो पहुंचे और वहां की सशस्त्र विद्रोही सेनाओं को कांगो की केंद्र सरकार के खिलाफ तैयार करने का प्रयास किया। सात महीनों के भीतर उनका ये प्रयास फैल हो गया। फिडेल ने चे से वापस आने के बारे में भी कहा, लेकिन चे ने ये प्रस्ताव भी ठुकरा दिया।

वर्ष 1966 के अंत तक ग्वेरा ने अपना ध्यान बोलिविया और वहां की सरकार के खिलाफ एक क्रांतिकारी आंदोलन की ओर लगाया। हालांकि, ग्वेरा को एक साल से भी कम समय में 8 अक्टूबर को अमेरिका समर्थित बोलिवियन फोर्स द्वारा धर लिया गया और उन्हें अगले दिन 39 साल की उम्र में मार दिया गया।

आप अक्सर चे को लोगों की टी-शर्ट पर देखते हैं, जिसमें एक टोपी लगाया हुआ शख्स मुंह में सिगार रखे होता है। लेकिन जिस तरह चे ने जिंदगी को जिया और जो कुछ किया, उनके जाने के बाद भी लोगों के मन में सत्ता संघर्ष का विचार हमेशा प्रबल रहा।

महात्मा गांधी और चे ग्वेरा की तुलना

महात्मा गांधी और चे ग्वेरा के विचारों को अक्सर तोल कर देखा जाता रहा है। गांधी ने बदलाव के लिए आध्यात्म का सहारा लिया था वहीं चे ने इसके लिए हथियार उठाए। चे ग्वेरा आकर्षक और काफी सुंदर नजर आते थे, वहीं गांधी एक छोटा सा चश्मा लगाने वाले शख्स थे। चे ग्वेरा आजाद प्रेस जैसी चीज को मानने से इंकार करते दिखते हैं, वहीं गांधी ऐसे विचारों को बढ़ावा देते थे। विचारधारा का अंतर समझा जा सकता है।

गांधीवाद समाज में पनप रही बुरी विचारधाराओं को आध्यात्म से सुलझाने की कोशिश करता है, वहीं चेवाद समाज की विचारधारा को बदलने की प्रयास करता है। चे कभी भी खत्म नहीं हो सकता, उसके विचार तो नहीं। लोगों को हर तरह के इतिहास का पता होना चाहिए। चे अपने आप में इतिहास था, एक युग था।

Read: सरदार भगत सिंह ने अंग्रेजों की असेंबली में बम फेंककर मचा दिया था तहलका

COMMENT