चंद्रयान-2 की कल से शुरू होगी कठिन चुनौतियां, चंद्रमा की कक्षा में करेगा प्रवेश

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चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग से 29 दिनों बाद मंगलवार 20 अगस्त को सुबह 9.30 बजे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। चंद्रमा की कक्षा में यह 13 दिन तक चक्कर लगाएगा और चंद्रयान-2 सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर पहले से निर्धारित स्थान पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए यह एक ओर महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। बता दें कि चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केंद्र से रॉकेट GSLV MKIII-M1 के जरिए प्र‍क्षेपित किया गया था।

चंद्रयान—2 की लैंडिंग के समय ये होगी चुनौतियां

इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने बताया कि चंद्रयान-2 मंगलवार 20 अगस्त को सुबह साढ़े नौ बजे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। इस दौरान यान कड़ी अग्नि परीक्षा से गुजरेगा। चंद्रमा का वातावरण पृथ्वी जैसा नहीं है। इसलिए चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने पर यान को चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में पहुंचाने के लिए चंद्रयान की गति को कम करना पड़ेगा। इसके लिए चंद्रयान-2 के ऑनबोर्ड प्रपल्‍शन सिस्‍टम को थोड़ी देर के लिए फायर किया जाएगा। इस दौरान दिए गए कमांड एकदम सटीक और सही होने चाहिए, नहीं तो एक छोटी से चूक भी यान को अनियंत्रित व मिशन का असफल कर सकती है।

वहीं एस्ट्रोनॉमर योगेश जोशी ने बताया कि ‘पृथ्वी से दूर स्थित होने और यानों की सीमित ऊर्जा के कारण संचार के लिए उपयोग हो रहे रेडियो सिग्नल बहुत कमजोर हो जाते हैं। इन संकेतों के बैकग्राउंड में बहुत तीव्र शोर भी होता है। इन हालातों में संकेत सही से प्राप्त नहीं हो पाना भी चुनौती भरा होगा।’

यान की लैंडिंग के दौरान लैंडर जैसे ही चंद्रमा की सतह पर अपना प्रोपल्‍शन सिस्टम ऑन करेगा, उस समय वहां तेजी से धूल उड़ेगी। जो लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, जिससे पावर सप्लाई और सेंसर्स प्रभावित हो सकते हैं। चंद्रमा पर रात या दिन पृथ्वी के 14 रात या दिन के बराबर होता है। इस कारण से चंद्रमा की सतह का तापमान तेजी से परिवर्तित होता है। इससे लैंडर और रोवर की कार्य क्षमता बाधित हो सकती है।

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एक बार फिर शुरू होगी कक्षा में बदलाव की प्रक्रिया

इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रयान—2 के चंद्रमा की कक्षा में 20 अगस्त को प्रवेश के बाद 31 अगस्त तक वह चंद्रमा की कक्षा में परिक्रमा करता रहेगा। परिक्रमा के वक्त यान एक बार फिर अपनी कक्षा में बदलाव की प्रक्रिया से गुजरेगा। इसरो के अनुसार, यान को चांद की सबसे नजदीकी कक्षा तक पहुंचाने के लिए कक्षा में चार बदलाव किए जाएंगे। इस तरह तमाम बाधाओं को पार करते हुए यह 7 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा जिस हिस्‍से में अभी तक मानव निर्मित कोई यान नहीं उतरा है।

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