क्यों कहते हैं कोसी को बिहार का शोक, इसके मार्ग परिवर्तन से लोगों में दहशत

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जहां देश में एक ओर बारिश का अभाव है वहीं दूसरी ओर कई राज्यों में बाढ़ के हालात हैं। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ के हालात हैं, ऐसे में ‘बिहार का शोक’ कही जाने वाली कोसी नदी भी उफान पर है। वैसे भी यह नदी अपनी जलधारा की दिशा बदलने में माहिर है। इस बार भी इसकी उफनती धारा के कारण लोग दहशत में हैं। ऐसा नहीं इस मामले में कोसी नदी बदनाम है। बिहार की अधिकांश नदियों का यही चरित्र है, लेकिन कोसी कुछ अधिक बदनाम इस कारण है कि वह दूसरी तमाम नदियों की तुलना में विस्तृत भूभाग में तेजी से धारा परिवर्तन करती है।

कोसी नदी का उद्गम

कोसी नदी का उद्गम हिमालय पर्वत से होता है और नेपाल में बह कर भारत में बिहार के भीम नगर से प्रवेश करती है। इसमें आने वाली बाढ़ से बिहार में बहुत जनधन की हानि होती है। इस कारण से इसे ‘बिहार का अभिशाप’ भी कहा जाता है। यह नदी अपने भौगोलिक स्वरूप में पिछले 250 वर्षों में 120 किमी का विस्तार कर चुकी है। हिमालय की ऊँची पहाड़ियों से तरह—तरह से अवसाद (बालू, कंकड़-पत्थर) अपने साथ लाती हुई यह नदी निरंतर अपने क्षेत्र फैलाती जा रही है।

ऐसे हुआ कोसी नदी का मार्ग परिवर्तन

कोसी नदी वर्ष 1731 में फारबिसगंज और पूर्णिया के नजदीक बहती थी और धीरे-धीरे पश्चिम की ओर खिसकते हुए वर्ष 1892 में मुरलीगंज के पास, 1922 में मधेपुरा के पास, 1936 में सहरसा और दरभंगा-मधुबनी जिला के समीप पहुंच गई। इस तरह से करीब सवा दो सौ साल में कोसी 110 किमी पश्चिम की ओर खिसक गई।

वर्ष 1959 से तटबंधों के बीच कैद कोसी पूरब की ओर वापस आने को व्याकुल दिखी और वर्ष 1984 में नवहट्टा के समीप तटबंध का टूटना इसी व्यग्रता का परिणाम रहा। इसके बाद से लगातार कोसी पूर्वी तटबंध पर आक्रामक रुख अख्तियार किए रही है। वर्ष 2008 में पूर्वी तटबंध पर पूर्वी इलाके में एक बड़े भूभाग में इसने उत्पात मचाया था।

मनमर्जी से बदलती है धारा

कोसी के विनाशक रूप से हर साल होने वाली बड़ी जनधन की क्षति को देखते हुए ही सही, कोसी को तटबंधों के बीच कैद कर दिया गया। 126 किलोमीटर पूर्वी तथा 122 किलोमीटर पश्चिमी तटबंध का निर्माण कराया गया। वर्ष 1959 में 56 फाटकों वाले 1149 मीटर लंबे बैराज का निर्माण कराया गया। बिहार के सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार जिलों के 22.69 लाख एकड़ क्षेत्रफल में करीब 2887 किमी लंबी नहरों का जाल बिछाया गया।

इन सबके पीछे मकसद था पानी के दबाव को रोकना तथा कोसी के पानी का सिंचाई के रूप में खेती के उपयोग में लेना। इन सब प्रयासों के बावजूद भी कोसी की धारा में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सका। अपनी प्रकृति के अनुसार वह धारा बदलती उन्मुक्त होने को हमेशा व्यग्र दिखी है।

पिछले तीन साल से पश्चिम की ओर रुख

वर्ष 2016 से कोसी एक बार फिर से पश्चिम की ओर रूख कर रही है। लगातार पश्चिमी तटबंध के कई बिंदुओं पर उसका दबाव बनता रहा। इस वर्ष जो उत्पात कोसी का पश्चिमी इलाके में दिख रहा है उससे तो स्पष्ट होने लगा है कि अब कोसी ने पश्चिम का रुख करना शुरू कर दिया है। हालांकि एक मुख्यधारा अभी भी पूर्वी तटबंध से सटी बह रही है।

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