अयोध्या जमीन विवाद पर बीजेपी किस असमंजस में है?

Views : 3792  |  0 minutes read
Supreme-Court-Ayodhya

अयोध्या जमीन विवाद न सुलझना शायद बीजेपी की बड़ी समस्या बनती जा रही है। मोदी सरकार पर इसको लेकर लगातार दबाव बढ़ ही रहा है। खासकर विश्व हिन्दू परिषद और संघ परिवार का कहना है कि सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए जल्द से जल्द कार्यवाही करे।

खुद मोहन भागवत ने भी सरकार को कहा है कि वे जल्द से जल्द राम मंदिर निर्माण लोकसभा चुनाव से पहले शुरू कर दे। इसके लिए सरकार चाहे कानून बनाए या अध्यादेश ले आए। साधु संतों के अलावा संघ परिवार का भी दबाव इसीलिए देखने को मिल रहा है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने सभी से मंदिर निर्माण का वादा किया था।

पिछले 4 सालों में बीजेपी सरकार इसको लेकर कुछ नहीं कर पाई और इसीलिए जनता में रोष दिखाई दे रहा है। यहां तक कि सरकार दोनों पक्षों के बीच किसी तरह का समझौता भी नहीं करवा सकी है।

Prime-Minister-Narendra-Modi-and-BJP-national-president-Amit-Shah
Prime-Minister-Narendra-Modi-and-BJP-national-president-Amit-Shah

सरकार का कार्यकाल खत्म होने को है और चुनाव सर पर है। ऐसे में मंदिर समर्थकों की बैचेनी ज्यादा बढ़ रही है। ऐसे में सरकार क्यों बैचेन है?

कानून की समझ रखने वाले बताते हैं कि जब कोई मुद्दा कोर्ट में चल रहा है तो उस पर कानून नहीं लाया जा सकता है। ऐसे में मोदी को खुलकर सामने आना पड़ा और कहना पड़ा कि सरकार कोर्ट की कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। लेकिन एक बार जब कोर्ट अपना फैसला सुना देती है तो सरकार इसको लेकर कार्यवाही कर सकती है।

नरेन्द्र मोदी के इस भाषण को लेकर काफी तरह की प्रतिक्रियाएं नजर आईं। कुंभ में भी लोगों के बीच विरोध नजर आ रहा है और वहां कहा जा रहा है कि “मंदिर नहीं तो वोट भी नहीं”

2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खेमें में 31 फ़ीसदी वोट आए थे जो कि कोई ज्यादा नहीं है और इसमें मामूली परिवर्तन बीजेपी के पसीने छुटा सकती है।

इन सबके बीच सरकार कोर्ट में एक अर्जी लगाती है जिमसें कोर्ट से गुजारिश की जाती है कि अधिग्रहित 67 एकड़ में विवादित जमीन के अलावा फालतू जमीन को राम जन्म भूमि न्यास को दी जाए।

ayodhya
ayodhya

मूल विवादित भूमि वो है जहां पर बाबरी मस्जिद खड़ी थी और 1992 में जिसे गिरा दिया गया था। नरसिम्वा सरकार ने कानून लाकर कोर्ट में चल रहे मामलों को खत्म कर दिया था और आस पास की 67 एकड़ पर अधिग्रहण किया गया था।

आस पास की 67 एकड़ जमीन को इसलिए रखा गया था ताकि पार्किंग और अन्य तीर्थ सुविधाएं बनाने में दिक्कत ना आए और हारे हुए पक्ष को भी जमीन दी जा सके और हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों को संतुष्ट किया जा सके।

आपको बता दें कि 67 एकड़ वो 42 एकड़ ज़मीन भी आती है जो 1991 में कल्याण सिंह सरकार ने एक रुपए सालाना की लीज़ पर राम जन्म भूमि न्यास को सौंप दी थी। बाक़ी ज़मीनें कई मंदिरों और व्यक्तियों की थी।

जून 1996 में न्यास ने सरकार से अतिरिक्त भूमि वापस करने के लिए कहा था लेकिन इस अनुरोध को उस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया जिमसें कहा गया था कि इलाहाबाद कोर्ट द्वारा विवादित क्षेत्र से संबंधित फैसले लेने के बाद ही ऐसा किया जा सकता है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर, 2010 को अपना फैसला सुनाया। इसने विवादित 2.77 एकड़ भूमि का बंटवारा किया जिसमें 6 दिसंबर 1992 तक बाबरी मस्जिद भी शामिल थी और इसके आसपास का क्षेत्र, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, यूपी, और रामलला विराजमान।

विश्व हिन्दू परिषद और संघ परिवार के लोग खुलकर मोदी का विरोध करते दिख रहे हैं। बाबरी मस्जिद ढ़ांचे के गिरने के बाद से ही बीजेपी इसके नाम पर वोट मांगती आई है और ऐसे में यह अपील दायर करके सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पाले में गेंद फेंकने का काम किया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया देखने लायक होगी।

COMMENT