‘नो कास्ट, नो रिलिजन’ वाली पहली भारतीय महिला है स्नेहा, जंग जीतने में लगे 9 साल

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किसी भी मुल्क की तरक्की तभी संभव है जब देश के नागरिक जाति-धर्मों के नाम पर खुद को बांटने की बजाय इन सब से ऊपर उठकर राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें। अगर हमें सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ना है तो सबसे पहले जात-मज़हब के नाम पर खुद को बांटने का काम बंद करना होगा। ये अच्छे राष्ट्र का निर्माण होने में सबसे बड़े बाधक है। देश के सभी नागरिक एक-दूसरे का सम्मान करते हुए अपने जोश, शक्ति का इस्तेमाल देश के भले के लिए करें तो कोई भी राष्ट्र तेजी से तरक्की कर सकता है। आज का युवा इस तरह की नई सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। इसकी मिशाल बनी है चेन्नई की एक लड़की। हालांकि उनका संघर्ष लम्बा रहा। आइये जानते हैं क्या है पूरी कहानी…

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सामाजिक परिवर्तन की दिशा में स्नेहा का महत्वपूर्ण निर्णय

तमिलनाडु राज्य की रहने वाली स्नेहा देश की पहली ऐसी महिला बन गई है, जिनकी अब ना कोई जाति है और ना ही कोई धर्म है। तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के तिरूपत्तूर की रहने वाली स्नेहा ने खुद ‘नो कास्ट, नो रिलिजन’ प्रमाण-पत्र बनवाया है। यह सर्टिफिकेट बनवाने के लिए उनकी राह आसान नहीं रही। इसके लिए उन्हें 9 साल का लम्बा इंतजार करना पड़ा। हाल ही 5 फरवरी को स्नेहा को उनका ‘नो कास्ट, नो रिलिजन’ सर्टिफिकेट मिला है। इतने लम्बे इंतजार के बाद स्नेहा ने आखिर नो कास्ट, नो रिलिजन सर्टिफिकेट हासिल कर ही लिया है। तिरूपत्तूर की रहने वाली स्नेहा पेशे एडवोकेट है।

बिना जाति और धर्म के खुद की एक अलग पहचान बनाने की थी जिद

‘नो कास्ट, नो रिलिजन’ प्रमाण-पत्र हासिल करने बाद स्नेहा ने बताया कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि उससे भी ज्यादा मुझे बिना जाति और धर्म के खुद की एक अलग पहचान चाहिए थी। स्नेहा ने कहा कि मेरे सारे प्रमाण-पत्रों में कास्ट और रिलिजन के सभी कॉलम खाली हैं। इसमें मेरा जन्म सर्टिफिकेट समेत स्कूल के सभी प्रमाण-पत्र भी शामिल हैं। इन सभी में सिर्फ मुझे सिर्फ एक भारतीय बताया गया है।

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उन्होंने आगे कहा कि मुझे महसूस हुआ कि सभी एप्लिकेशन में सामुदायिक प्रमाण पत्र अनिवार्य था, इसीलिए मुझे एक आत्म-शपथ पत्र प्राप्त करना ही था। जिससे मैं सर्टिफिकेट्स में साबित कर सकूं कि मैं किसी जाति और धर्म से जुड़ी हुई नहीं हूं। स्नेहा ने कहा कि जब जाति और धर्म को मानने वालों के लिए प्रमाण-पत्र होते हैं तो हम जैसे लोगों के लिए क्यों नहीं। उल्लेखनीय है कि स्नेहा खुद ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बचपन से ही सभी सर्टिफिकेट में जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ते देते थे।

2010 में किया था सर्टिफिकेट के लिए आवेदन

पेशे से वकील स्नेहा ने साल 2010 में नो कास्ट, नो रिलिजन सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया था। करीब 9 साल का समय गुजरने के बाद 5 फरवरी, 2019 को बहुत ही मुश्किलों से उन्हें यह सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ है। यह खास प्रमाण-पत्र पाने के बाद अब स्नेहा देश की पहली ऐसी शख्स या महिला बन गई हैं जिनके पास यह सर्टिफिकेट है। स्नेहा ने बताया कि वे खुद ही नहीं बल्कि अपनी तीन बेटियों के फॉर्म में भी जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ा जा रहा है।

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हर तरफ हो रही तारीफ, साउथ एक्टर कमल हसन ने ट्विटर पर किया शेयर

लम्बे संघर्ष के बाद ‘नो कास्ट, नो रिलीजन’ सर्टिफिकेट हासिल कर चुकी स्नेहा की अब इस कदम के लिए हर तरफ प्रशंसा हो रही है। सेलिब्रिटीज के साथ ही आम लोग भी उनके इस निर्णय की तारीफ कर रहे हैं। साउथ फिल्म इंडस्ट्री के बड़े स्टार कमल हसन ने स्नेहा और उनके प्रमाण-पत्र की फोटो अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है।

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