जैसे जैसे हम बड़े होते हैं हमारे हिस्से जिम्मेदारियां भी आने लगती हैं। यह जिम्मेदारियां कई तरह की हो सकती हैं। लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि लोग इन जिम्मेदारियों से भागने की कोशिश करते हैं।
दरअसल जिम्मेदारी मतलब किसी काम को करने की गारंटी। यानी आप हैं तो फिर किसी और की जरूरत नहीं। लेकिन आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में यही उम्मीद की जाती है कि सब अपना अपना काम खुद करें या उनकी जैसी भी परिस्थिति हो वह उससे अपने स्तर पर ही निपटें। किसी से इस बात की उम्मीद ना करें कि वह हमारी मदद करेगा। ऐसा जब बाहर वाले सोचते हैं तो हम अपने दिल को तसल्ली दे सकते हैं लेकिन यही बात जब आपके करीबी लोग करते हैं तो यकीनन दिल दुखता है।
आप अपने करीबी से उम्मीद करते हैं कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाएगा लेकिन वर्तमान में यह कम दिखाई देता है। करीबी लोग भी अपनी जिम्मेदारियों से नज़रें चुराते नज़र आते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे इसे बेवजह का सिरदर्द मानते हैं। हालांकि जब वे अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं तो यह भूल जाते हैं कि उन्हें भी कभी ना कभी अपने लोगों की मदद की जरूरत पड़ सकती है। दरअसल जिम्मेदारी को लोग बोझ की तरह मानते हैं और जब ऐसा होता है तो किसी भी तरह की जिम्मेदारी हो वह बोरियत भरी लगने लगती है। उसे निभाना किसी आफत से कम नहीं लगता।
दूसरी ओर यदि जिम्मेदारी को खुशी से लिया जाता है तो ना सिर्फ हम उसे बेहतर तरीके से निभा पाते हैं बल्कि हमारा काम भी बखूबी होता है। जब आप दिल से अपने काम को करते हैं तो वह आपको जो खुशी देता है, वह कोई और नहीं दे सकता। आप बड़े हैं तो खुद को बड़ा समझकर जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर लें, जब आप ऐसा करेंगे तो आप दूसरों के लिए उदाहरण होंगे और कहीं ना कहीं लोगों की खुशियों का भी कारण बनेंगे।
जिम्मेदारी भी उसी को मिलती है जो इसे निभाने के लायक होता है, तो अगली बार जब भी आपके हिस्से कोई जिम्मेदारी आए तो खुद को लकी मानिए क्योंकि आप किसी के चेहरे की मुस्कान बनने वाले हैं…।