पुनर्जागरण के जनक राजा राममोहन राय ने बीस वर्ष की उम्र में कर लिया था पूरे देश का भ्रमण

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भारत में ‘पुनर्जागरण के जनक’ व ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय की आज 27 सितंबर को 190वीं पुण्यतिथि है। राय को ‘राजा’ की उपाधि मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के द्वारा दी गई थी। राजा राम ने भारत में सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी और इस पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा दिया। उनके समाज सुधार के क्षेत्र में किए गए कार्यों की आज भी प्रशंसा की जाती है। इस अवसर पर जानिए नवीन भारत के निर्माण में अपना अहम योगदान देने वाले व महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय के जीवन के बारे में…

अंग्रेजों से काफी प्रभावित थे राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल प्रेसीडेंसी के हुगली जिले के राधानगर में हुआ था। उनके पिता का नाम रमाकांत और माता का नाम तारिणी देवी था। वह बचपन से ही पढ़ने में होशियार थे। उन्होंने 15 वर्ष की उम्र में ही बंगाली, संस्कृत, अरबी, अंग्रेजी तथा फारसी भाषाओं में विद्वता हासिल कर ली। उन्होंने 1803 में फारसी भाषा में ‘तूहफात-उल-मुवाहिदिन’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने एकेश्वरवाद पर बल दिया।

वह मूर्ति पूजा के विरोधी थे। राय अंग्रेजों से काफी प्रभावित थे। उन्होंने बीस वर्ष की उम्र में पूरे देश का भ्रमण किया। इस दौरान उन्होंने विभिन्न प्रकार की जानकारी हासिल की। उन्होंने वर्ष 1809 से 1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी में नौकरी की। बाद में वह समाज सुधार में लग गए।

भाभी को सती होते देखा तो इसके विरोध में आवाज उठाई

राय ने सती प्रथा के खिलाफ कड़ा विरोध किया। वर्ष 1816 में उनके भाई की मृत्यु हुई। जब उनके भाई के चिता के साथ उनकी भाभी को जबरदस्ती बैठा दिया तो इस घटना ने उनके दिल को झकझोर दिया। राजा राममोहन ने सती प्रथा के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज कर दी। उन्होंने इस सामाजिक कुरीति पर प्रतिबंध के लिए गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक की मदद ली और वर्ष 1829 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर इसे प्रतिबंधित करवाया।

इसके अलावा उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त बाल विवाह, बलिप्रथा, भेदभाव, छुआछूत, मूर्तिपूजा, बहु विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और उन पर प्रतिबंध लगाने के लिए ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया। राजा राममोहन राय ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने वर्ष 1817 में डेविड हेयर के सहयोग से ‘हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना की। वर्ष 1825 में उन्होंने ‘वेदांत कॉलेज’ की भी स्थापना की। उन्होंने वर्ष 1815 में ‘आत्मीय सभा’ की स्थापना की।

राजा राममोहन राय को भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता का जनक भी कहा जाता है। वह ऐसे पहले भारतीय थे, जिन्होंने समाचार पत्रों की स्थापना, संपादन तथा प्रकाशन का कार्य किया। उन्होंने करियर की शुरुआत में ‘ब्रह्ममैनिकल मैग्जीन’, ‘संवाद कौमुदी’ में का भी संपादन किया था।

ब्रह्म समाज की स्थापना

राजा राममोहन राय ने तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक एवं सामाजिक आंडम्बरों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अपने विचारों के प्रसार के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना 20 अगस्त, 1828 को कलकत्ता में की। इस संस्था के प्रमुख उद्देश्यों में हिंदू समाज से बुराइयों को दूर करना, ईसाई धर्म के भारत में बढ़ते प्रभाव को रोकना और सभी धर्मों में आपसी एकता स्थापित करना था। वह वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे।

उन्हें तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर द्वितीय ने उन्हें ‘राजा’ की उपाधि से विभूषित किया था। वह भारत की आजादी चाहते थे। कहा जाता है कि उन्होंने 1816 में पहली बार अंग्रेजी भाषा में हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल किया। वह वर्ष 1830 में मुगल शासक के दूत बनकर ब्रिटेन भी गए।

राजा राममोहन राय का निधन

आधुनिक भारत के निर्माता राजा राममोहन राय का 27 सितम्बर, 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में निधन हो गया।

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