कार्ल मार्क्स ने वैज्ञानिक समाजवाद के विचार को किया था विकसित, माने जाते हैं ‘मजदूरों के मसीहा’

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‘विश्व के मजदूरों एक हो जाओ’ यह नारा हमने बहुत बार पढ़ा और 1 मई को हर वर्ष ‘मजदूर दिवस’ के दिन खूब सुना जाता है। इस नारे का पहली बार प्रयोग कार्ल मार्क्स ने किया था। उन्होंने दुनियाभर के मजदूरों को मुक्ति की राह दिखाईं। मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों ने दुनिया के मजदूरों को काफी प्रभावित किया और उनको अपने अधिकारों प्रति जागरूक बनाया। उनके विचारों ने मानव जाति के इतिहास को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। कार्ल के विचारों के कारण ही रूस में वर्ष 1917 की क्रांति हुई थी। 5 मई को ‘मजदूरों के मसीहा’ कार्ल मार्क्स का जन्म हुआ था। ऐसे में कार्ल मार्क्स की 205वीं बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में…

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पूंजीवाद का विरोध और सर्वहारा वर्ग का किया समर्थन

कार्ल मार्क्स के विचार बहुत व्यापक और बहुआयामी व क्रांतिकारी हैं। उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद के विचार को विकसित किया, इसके तीन प्रमुख घटक थे – द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद, राजनैतिक अर्थशास्त्र और वर्ग संघर्ष का सिद्धांत। उन्होंने वर्ग-विहीन समाज की संकल्पना भी दी। जिसके तहत उन्होंने नस्लवाद और जाति विरोधी आंदोलन को भी प्रेरित किया। मानव मुक्ति का वैज्ञानिक दर्शन और विचारधारा देने वाले विश्व सर्वहारा के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स ही थे।

मार्क्स की जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स से पहली मुलाकात वर्ष 1844 में फ्रांस में हुई और वे उनके परम मित्र बन गए। दोनों सर्वहारा वर्ग के शोषण और पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में अन्तर्निहित अराजकता एवं अन्तविरोधों को उजागर करते हुए यह बताया कि किस तरह पूंजीपति द्वारा कमाया जाने वाला अतिरिक्त मूल्य मजदूरों के शोषण से आता है। उन्होंने राजनीति, साहित्य-कला-संस्कृति, सौन्दर्यशास्त्र, विधिशास्त्र, नीतिशास्त्र सभी क्षेत्रों में चिन्तन एवं विश्लेषण की द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी पद्धति को स्थापित करके वैज्ञानिक समाजवाद के विचार को समृद्ध किया।

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सर्वहारा क्रांति के बुनियादी नियमों की मीमांसा प्रस्तुत की

मार्क्स और एंगेल्स ने अपने समय की पूंजीवादी क्रांतियों, सर्वहारा संघर्षों और उपनिवेशों में जारी प्रतिरोध संघर्षों एवं राष्ट्रीय मुक्तियुद्धों का सार-संकलन किया, मज़दूर आंदोलन को सिर्फ सुधारों तक सीमित रखकर मूल लक्ष्य से भटकाने के अवसरवादियों के प्रयासों को विफल कर दिया। पूंजीवादी बुद्धिजीवियों और अवसरवादियों की एकजुटता का मुकाबला करते हुए राज्य और क्रांति के बारे में मूल मार्क्सवादी स्थापनाओं को निरूपित किया और सर्वहारा वर्ग के दर्शन को समृद्ध करने के साथ ही उसे रणनीति एवं रणकौशलों की एक विचारधारा भी प्रदान की। उन्होंने सर्वहारा क्रांति के बुनियादी नियमों की मीमांसा प्रस्तुत कीं।

ऐसा करते हुए मार्क्स-एंगेल्स ने सर्वहारा वर्ग को संगठित करने के प्रयास लगातार जारी रखे और पहले इंटरनेशनल के गठन में नेतृत्वकारी भूमिका निभायी। सर्वहारा वर्ग द्वारा राज्यसत्ता पर कब्ज़ा करने के पहले महाकाव्यात्मक प्रयास का समाहार करते हुए कार्ल मार्क्स ने पहली बार पूंजीवादी राज्य और उसके स्थान पर स्थापित होने वाले सर्वहारा अधिनायकत्व के आधारभूत सिद्धान्त विकसित किये। मार्क्स की मृत्यु के बाद एंगेल्स ने उनके अधूरे सैद्धान्तिक कामों को पूरा किया, सर्वहारा विचारधारा की हिफाज़त की और अवदानों का वस्तुपरक ऐतिहासिक मूल्यांकन करते हुए उसे ‘मार्क्सवाद’ का नाम दिया।

ऐतिहासिक भौतिकवाद का आधार कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र

ऐतिहासिक भौतिकवाद ‘कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र’ का आधार है। उन्होंने इसमें बताया है कि किसी तरह मानवजाति का पूरा इतिहास सामाजिक विकास के विभिन्न स्तरों पर शोषकों और शोषितों, शासकों और शासितों के बीच वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है।

कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय और शिक्षा

  • कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को जर्मनी के ट्रीव्ज में हुआ था। वे यहूदी धर्म से थे। उनके पिता स्थानीय अदालत में एक वकील और पब्लिक नोटरी थे।
  • वर्ष  1824 में प्रशा के एक सरकारी फरमान के अनुसार सारे यहूदियों को ईसाई बनना अनिवार्य कर दिया गया। छोटी उम्र से ही कार्ल मार्क्स तीव्र बुद्धिवाला था।
  • कार्ल मार्क्स 16 वर्ष की उम्र में बोन विश्वविद्यालय में दाखिल हुए और वर्ष 1836 में कानून की पढ़ाई करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय चले गये।
  • वर्ष 1841 में मार्क्स ने अपनी डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली।
  • उन्होंने अपने बचपन की मित्र जेनी वोन वेस्टफालेन से विवाह कर लिया।
  • कार्ल मार्क्स वर्ष 1850 में इंग्लैंड में बस गए। उनका निधन 14 मार्च, 1883 को हुआ।

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