ज्योतिबा फुले : एक ऐसा क्रांतिकारी जिसने अंतिम सांस तक समाज के लिए संघर्ष किया

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देश को छुआछूत जैसी बीमारी से मुक्त करवाने वाले, समाज के वंचित लोगों के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले का आज पुण्यतिथि है। ज्योतिबा फुले का असली नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। आपका जन्म 11 अप्रैल, 1827 पुणे में हुआ था। माली परिवार में पैदा होने के कारण ये फुले नाम से जाने गए।

ज्योतिबा फुले का पूरा जीवन क्रांतिकारी गतिविधियों से भरा हुआ था। समाज में हजारों सालों से चली आ रही परंपराओं  और नियमों को उन्होंने डटकर चुनौती दी। महिलाओं के अधिकारों के लिए और दबे-कुचले तबके के लोगों के अधिकारों के लिए वो ब्रिटिश सरकार से कई बार भिड़ गए। आज उनकी पुण्यतिथि पर आइए रूबरू होते हैं उनकी जिंदगी के कुछ पहलुओं से।

– ज्‍योतिबा फुले की शुरूआती पढ़ाई मराठी स्कूल में हुई लेकिन समाज के लोगों ने उनके मराठी पढ़ने का विरोध किया जिसके बाद उनके पिता ने स्कूल से निकलवा लिया लेकिन ज्योतिबा शुरू से ही पढ़ना चाहते थे इसलिए आखिरकार उन्होंने 21 साल की उम्र में सातवीं क्‍लास की पढ़ाई पूरी की।

– ज्‍योतिबा फुले शुरू से ही स्‍त्री–पुरुष को बराबर मानते थे। वे कभी दोनों के बीच भेद-भाव के बारे में नहीं सोचते थे। क्या आप जानते हैं कि समाज में स्त्रियों की दशा सुधारने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए फुले ने ही 1854 में स्‍कूल खोला जो लड़कियों के लिए पहला स्कूल था।

– ज्‍यातिबा फुले ने दलितों के लिए बहुत संघर्ष किया। दलितों को सम्‍मान और हक दिलाने के लिए वो हर समय प्रयासरत रहे। अपनी जाति से बाहर निकाले जाने के बाद भी वो दलितों के लिए काम करते रहे।

– ज्‍योतिबा फुले की शादी के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने ब्राह्मण यानि कि पंडित के बिना की शादी की रस्म शुरू कर दी थी। इसके अलावा उन्‍होंने विधवा विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध किया।

– ज्‍योतिबा फुले एक अच्छे लेखक भी रहे। उन्होंने ‘गुलामगिरी’, ‘तृतीय रत्‍न’, ‘छत्रपति शिवाजी’, ‘राजा भोंसले का पखड़ा’, ‘किसान का कोड़ा’ जैसी कई किताबें लिखी जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी।

– महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले का 63 साल की उम्र में 28 नवंबर 1890 को पुणे में निधन हो गया।

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