भारत के 51 फीसदी प्राथमिक स्कूल अंधेरे में, यूनेस्को की रिपोर्ट में छठे पायदान पर देश

Views : 5330  |  0 minutes read
chaltapurza.com

हमारा देश आज़ादी के 70 साल बाद भी स्कूली शिक्षा में आधुनिक ज़रूरतों के हिसाब से माहौल तैयार नहीं कर पाया है। ख़ासकर सरकारी स्कूलों की स्थिति आज भी ख़राब है। किसी भी मुल्क की तरक्की में क्वालिटी एजुकेशन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला कारक होता है। अच्छी शिक्षा न केवल स्टूडेंट्स में विश्वास पैदा करती है बल्कि उन्हें कल के सुनहरे भविष्य के लिए भी तैयार करती हैं। देश के सरकारी स्कलों में क्वालिटी एजुकेशन बहुत दूर की बात है, यहां तो प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अंधेरे में शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने को मज़बूर हैं। हालिया रिपोर्ट कहती हैं कि यहां आधे से ज्यादा बच्चे अंधकार में शिक्षा ले रहे हैं। आइये जानते हैं क्या कहती है यूनेस्को की रिपोर्ट..

chaltapurza.com

51 फीसदी प्राथमिक स्कूलों में अभी तक बिजली कनेक्शन नहीं

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की हाल में जारी रिपोर्ट में भारत के 51 फीसदी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों के लिए बिजली का अभाव है। यूनेस्को ने हाल में विभिन्न देशों में वर्ष 2017 तक बिजली के अभाव में संचालित प्राथमिक विद्यालयों की एक सूची जारी की है। इस सूची में भारत छठे पायदान पर है। देश के 51 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में अभी तक बिजली कनेक्शन नहीं पहुंचे हैं। यूनेस्को की सूची में पहले स्थान पर सिएरा लियोन है यहां महज़ चार फीसदी प्राथमिक स्कूलों तक ही बिजली पहुंच सकी है। हमारे पड़ोसी मुल्क चीन ने इस मामले में बाज़ी मार ली हैं। वह इस सूची में अंतिम पायदान पर है। चीन के 100 फीसदी यानी सभी प्राथमिक स्कूलों में बिजली की पहुंच है। चीन से आज आबादी के मामले में हम बराबर खड़े हैं, वहीं शिक्षा के मामले में हम चीन की आधी भी बराबरी नहीं कर पाए हैं।

chaltapurza.com
प्राथमिक स्कूली शिक्षा के ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं

आज बिजली की पहुंच से दूर प्राथमिक स्कूलों का वैश्विक औसत 31 फीसदी के करीब है। प्राथमिक स्कूलों में पीने योग्य शुद्ध पानी की उपलब्धता का वैश्विक औसत 79 प्रतिशत है। वर्ष 2016 में विश्व के अन्य देशों में 46 फीसद से अधिक प्राथमिक स्कूल इंटरनेट की पहुंच से अभी तक दूर हैं। दुनिया के सभी देशों को मिलाकर आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ पुरुष शौचालय वाले प्राथमिक स्कूलों का वैश्विक औसत तकरीबन 82 फीसद ही है। जहां एक ओर वर्तमान ज़रूरतों के हिसाब से विकसित देशों ने अपने यहां शिक्षा प्रणाली में बदलाव किए हैं, वहीं दुनिया के कई ऐसे देश है वहां अभी तक मूलभूत सुविधाएं भी स्कूलों में नहीं पहुंच पाई हैं।

chaltapurza.com
संयुक्त राष्ट्र इस दिशा में बढ़ा रहा है कदम

संयुक्त राष्ट्र शिक्षा में इस अंधेरे को दूर करने के लिए प्रयासरत है। इसके साथ ही उसने कई देशों में ऐसे कार्यक्रम चला रखे हैं जो शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही आधुनिकता की ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास का चौथा लक्ष्य हर बच्चे को क्वालिटी एजुकेशन प्रदान करने के लिए प्राथमिक स्कूलों में शौचालय, पीने के लिए शुद्ध पानी, बिजली और इंटरनेट की हर जगह आसानी से पहुंच का है। संयुक्त राष्ट्र अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा है, लेकिन इस ओर हमारी सरकारों को ध्यान देना होगा और रीढ़ माने जाने वाली प्रारंभिक शिक्षा को विश्व स्तर की बनाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। इससे बच्चों को आधुनिक परिवेश के हिसाब से अच्छी शिक्षा मिलेगी, साथ ही देश की तरक्की भी तेजी से होगी।

Read More: स्वेदशी ‘तेजस’ है बेहद खतरनाक, जानिए क्यों हैं इस पर दुनिया फिदा!

COMMENT