कैसे बन रहा है पर्यावरण के लिए स्मार्टफोन घातक, पढ़ें पूरी खबर

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हाल में जारी एक शोध का दावा है कि वर्ष 2040 तक बढ़ते तकनीकी उपकरण हमारे पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगे। इस दावे को कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी ने अपनी एक रिसर्च में किया। रिसर्च में किए गए दावे के मुताबिक वर्ष 2020 तक स्मार्टफोन्स वे उपकरण होंगे जो पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाएंगे। यूनिवर्सिटी की यह रिसर्च जर्नल ऑफ क्लीनर प्रॉडक्शन में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध के मुताबिक यह बात साफ जाहिर होती है कि इंफोर्मेशन एवं कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी वर्ष 2040 तक पर्यावरण के लिए सबसे घातक बन जाएगी। मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के असोसिएट प्रोफेसर लॉफी बेलखिर ने शोध से जुड़े तथ्यों के बारे में कहा है कि अभी पर्यावरण प्रदूषण में इंफोर्मेशन एवं कम्यूनिकेशन तकनीक (आईसीटी) का योगदान 1.5 प्रतिशत ही है, परंतु यह धीरे—धीरे बढ़कर वर्ष 2040 तक ग्लोबल कार्बन फुटप्रिंट में आईसीटी का योगदान 14 प्रतिशत हो जाएगा जोकि दुनियाभर के यातायात क्षेत्र का करीब आधी भागीदारी होगी।

प्रो. लॉफी ने कहा कि जब भी कोई स्मार्टफोन उपयोगकर्ता टेक्स्ट मैसेज, कॉल, वीडियो अपलोड या डाउनलोड करता है तो यह सब एक डेटा सेंटर के कारण ही संभव हो पाता है। विश्वविद्यालय के इस शोध में वर्ष 2005 तक उपयोग में किए स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट, डेस्कटॉप और डेटा सेंटर्स तथा कम्यूनिकेशन डिवाइसेज को शामिल किया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि आज के समय में बिजली बहुत उपयोगी है।टेलिकम्यूनिकेशन्स नेटवर्क और डेटा सेंटर का संचालन भी बिजली से होता है। ऐसे में ज्यादातर डेटा सेंटर्स को जीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली ही ऊर्जा के रूप में प्रयुक्त होती है। यही कारण है कि यह ऊर्जा की खपत हमें नहीं दिखाई देती है। शोध में कहा गया है कि स्मार्टफोन्स को चलाने के लिए बहुत कम एनर्जी की आवश्यकता होती है। लेकिन इनके उत्पादन में 85 फीसदी तक प्रदूषण होता है। इस तरह से वर्ष 2020 तक स्मार्टफोन्स द्वारा होने वाली ऊर्जा की खपत कंप्यूटर और लैपटॉप से ज्यादा हो जाएगा।

ब्रिटेन में जहां 95 फीसदी परिवारों के पास स्मार्टफोन हैं। नेशनल स्टैटिसटिक्स रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में 18.9 मिलियन लोगों के पास स्मार्टफोन हैं। वहीं, भारत में करीब 300 मिलियन स्मार्टफोन मौजूद हैं। इनसे बड़ी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है।

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