जॉन कैनेडी : एक ऐसा राष्ट्रपति जिसकी मौत पर कोई यकीन करने को तैयार नहीं था

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अमरीका के अब तक हुए 45 राष्ट्रपति में से चार की उनके कार्यकाल के बीच ही हत्या कर दी गई जिनमें एक नाम जॉन फ़िट्ज़गेराल्ड यानि ‘जैक’ कैनेडी भी था। अमरीका के इतिहास में आज तक किसी को इतनी शोहरत और इज्जत नहीं मिली, जितना जॉन एफ कैनेडी को लोगों ने पसंद किया। इनका कार्यकाल दो साल, दस महीने और दो दिन का रहा। कैनेडी उस दौर में आए जब अमरीका और सोवियत रूस के बीच पूंजीवाद और समाजवाद की जंग चल रही थी। शीत युद्ध के इस समय में विचारधाराओं ने राजनीतिक लड़ाई का रूप धारण कर लिया था।

कैनेडी बेहद ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि अमरीका के लोगों पर उनका जादू आज तक कायम है। आज यानि 22 नवंबर को 46 साल के कैनेडी जब अपनी पत्नी के साथ चुनाव प्रचार के लिए डलास एयरपोर्ट पहुंचे तो वहां ताबड़तोड़ फायरिंग के शिकार हो गए, एक गोली उनके सिर के पार चली गई जिससे उनको बचाने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई।

आज कैनेडी की पुण्यतिथि पर जानते हैं कैनेडी की जिंदगी से जुड़े कुछ ऐसे पहलू जिनके बारे में हर कोई जानना चाहता है।

कैनेडी और रोमांस

कैनेडी दिखने में काफी स्मार्ट थे और उस दौर में जहां हर कोई उनका फैन था वहीं महिलाओं में वे काफी पसंद किए जाते थे। इसके अलावा महिलाओं को लेकर भी उनमें एक अजीब तरह का आकर्षण था।

कैनेडी के अफेयर्स के किस्से व्हाइट हाउस में काम करने वाली ट्रैनी से लेकर मरलिन मुनरो जैसी हॉलीवुड की सबसे हसीन अदाकारों के साथ चर्चित रहे।

इसके अलावा जूडिथ कैम्पबेल एक्सनर से भी कैनेडी का रिश्ता काफी विवादों में रहा। बताया जाता है कि इस रिश्ते से कैनेडी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा क्योंकि कैम्पबेल का नाम माफ़िया जगत से जुड़े लोगों के साथ लिया जाता रहा था।

कैनेडी पूरी जिंदगी भर मीडिया में एक आदतन आशिकमिज़ाज की छवि के रूप में छाए रहे। वहीं उनका असंतुलित बचपन, पिता के अवैध संबध, घर के झगड़े भी काफी उछाले गए।

कैनेडी और भारत

देश को आज़ादी मिलने के बाद प्रधानमंत्री नेहरू इंदिरा गांधी के साथ अमरीका यात्रा पर गए थे। एयरपोर्ट पर पकिस्तान के जनरल अयूब खान की अगुवाई कैनेडी ने की लेकिन नेहरू के लिए वे खुद नहीं आए। बताया जाता है कि कैनेडी दंपत्ति इंदिरा को पसंद नहीं करते थे।

इसके बाद कैनेडी ने नेहरु की अमरीका यात्रा को अब तक की सबसे ख़राब यात्रा बताया था। हालांकि 1962 में जब चीन ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया तो कैनेडी ने ना चाहते हुए भी भारत की मदद की और भारत की संप्रभुता छीन जाने से ज़्यादा साम्यावाद की जीत का ख़तरा देखते हुए चीन को धमकाया।

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