बाल गंगाधर तिलक ने अख़बार निकाल जनता में आजादी की अलख जगाने का किया था काम

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‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ यह नारा भारतीय क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दिया था। ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी तिलक की 23 जुलाई को 166वीं जयंती है। उन्होंने ब्रिटिश राज की क्रूरता की अपने समाचार-पत्रों में जमकर निंदा की और देश की जनता को आजादी के लिए प्रेरित किया। इसलिए उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि दी गईं। तिलक एक शिक्षक, वकील, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने सबसे पहले स्वराज की वकालत की और उसे मजबूती से रखा। इस मौके पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन बारे में कुछ ख़ास बातें…

बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय

स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले स्थित चिखली गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम केशव गंगाधर तिलक था। उनके पिता गंगाधर शास्त्री रत्नागिरी में संस्कृत के विद्वान और स्कूल शिक्षक थे। उनकी माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था। तिलक को बचपन से पढ़ाई-लिखाई का माहौल मिला। उनका वर्ष 1871 में तापीबाई नाम की लड़की से विवाह हुआ जो बाद में सत्यभामा बाई के रूप में प्रसिद्ध हुईं।

तिलक ने वर्ष 1877 में पुणे के दक्कन कॉलेज से गणित विषय से प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि हासिल की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1879 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद तिलक ने पुणे के एक निजी स्कूल में गणित विषय पढ़ाना शुरू किया था। बाद में वैचारिक मतभेद के कारण वो एक पत्रकार बन गये। बाद में उन्होंने भारतीय छात्रों के बीच राष्ट्रवादी शिक्षा को प्रेरित करने के उद्देश्य से कॉलेज बैचमैटेट्स, विष्णु शास्त्री चिपलुनकर और गोपाल गणेश आगरकर के साथ डेक्कन एजुकेशनल सोसाइटी की शुरुआत की।

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पत्रकारिता के जरिये लोगों को जागरुक करने का काम किया

बाल गंगाधर तिलक ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जनता में आजादी की अलख जगाने का कार्य किया था। इसके लिए तिलक ने अंग्रेजी में ‘मराठा’ और मराठी में ‘केसरी’ नामक दैनिक समाचार पत्र शुरू किए। इन समाचार-पत्रों को जनता ने भी खूब सराहा था। सत्ता के विरुद्ध पत्रकारिता करने की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

सूरत अधिवेशन में कांग्रेस के गरम दल में गए

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लाल-बाल-पाल की तिकड़ी ने राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाल गंगाधर तिलक वर्ष 1890 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वर्ष 1907 में सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का विभाजन गरम दल और नरम दल में हो गया था। इस दौरान तिलक गरम दल में शामिल हो गए। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल भी शामिल थे। वर्ष 1908 में उन्हें प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन करने पर बर्मा स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। वर्ष 1916 में तिलक ने होम रूल लीग का गठन किया। तिलक को सम्मान देने के लिए भारतीय ‘लोकमान्य’ के नाम से पुकारते हैं, वहीं वेलेन्टाइन शिरोल ने उन्हें ‘भारतीय अशांति का जनक’ कहा था।

बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई

बाल गंगाधर तिलक ने सामाजिक सुधार के कई कार्य भी किए थे। उन्होंने बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध आवाज उठाई और इसे प्रतिबंधित करने की मांग कीं। यही नहीं उन्होंने महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन भी किया था। आंदोलन के दौरान विभिन्न पत्रों और भाषणों के द्वारा उन्होंने देश की जनता को एकजुट होने का आवाहन किया। तिलक ने गणेश उत्सव और शिवाजी का जन्मोत्सव जैसे सामाजिक उत्सव शुरू करने का काम किया।

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बाल गंगाधर तिलक द्वारा लिखी गई पुस्तकें

बाल गंगाधर तिलक ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें भी लिखीं, उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीता-रहस्य’ है। उन्होंने इस पुस्तक की रचना मांडले जेल में बंदी जीवन के दौरान कीं। इस पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। तिलक की अन्य प्रमुख पुस्तकें- ‘वेद काल का निर्णय’, ‘श्रीमद भगवत गीता रहस्य’ या ‘कर्मयोग शास्त्र’, ‘आर्यों का मूल निवास स्थान’, ‘हिंदुत्व’, ‘श्यामजी कृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र’, ‘वेदों का काल-निर्णय’ और ‘वेदांग ज्योतिष’ आदि हैं।

लोकमान्य तिलक का निधन

डायबिटीज का शिकार हो जाने से बाल गंगाधर तिलक का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा और 1 अगस्त, 1920 को मुबंई में उनका निधन हो गया। तिलक को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा और जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें ‘भारतीय क्रांति का जनक’ बताया था।

बारह साल की उम्र में संस्कृत की पढ़ाई करने के लिए काशी पहुंच गए थे चंद्रशेखर आज़ाद

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