क्या होता है महंगाई भत्ता, जिसके बढ़ने पर केंद्रीय कर्मचारी खुश होकर उछल रहे हैं !

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लोकसभा चुनाव 2019 की हवा चलने के साथ ही सरकारी ऐलानों की गूंज भी सुनाई देने लगी है। इसी बीच कल मोदी सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों को एक बड़ा गिफ्ट देकर खुश कर दिया। सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 3 फीसदी और बढ़ा दिया है। जिसके बाद सीधे तौर पर केंद्र के 1.1 करोड़ कर्मचारियों और पेंशन लेने वालों को फायदा होगा।

फिलहाल केंद्र की नौकरियों में काम करने वालों का महंगाई भत्ता 9 प्रतिशत है जो अब 1 जनवरी 2019 से 12 प्रतिशत हो जाएगा। ये तो हुई वो खबर जो सभी केंद्रीय कर्मचारियों को खुश कर गई अब हम आपको समझाते हैं महंगाई भत्ते के पीछे का पूरा गणित जिसको जानना भी आपके लिए बेहद जरूरी है। अगर जानते हैं तो बधाई और नहीं जानते तो आखिर तक पढ़िए।

महंगाई भत्ता यानि डियरनेस अलाउंस

सरकारी कर्मचारियों को सरकार सैलरी के साथ उनके रहन-सहन और खाने-पीने के स्तर को बेहतर बनाए रखने के लिए पैसे देती है। अगर मान लीजिए महंगाई बढ़ने लगी तो सरकारी कर्मचारियों के रहन-सहन में पैसे की कमी के कारण कोई परेशानी ना हों। पूरी दुनिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ये तीन देश ही अपने कर्मचारियों को यह भत्ता देते हैं।

कब से दिया जाने लगा?

महंगाई भत्ते की नींव द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रखी गई थी। अंग्रेज भारत के हजारों सैनिकों को दूसरे देशों में मिशन पर भेजते थे। मिशन के दौरान सैनिकों को खाने-पीने के एकस्ट्रा पैसे दिए जाते थे। अंग्रेज उस समय इसे खाद्य महंगाई भत्ता कहते थे। आजादी के बाद फिर 1972 में मुंबई के कपड़ा उद्योग क्षेत्र से इसकी शुरूआत हुई। सरकार फिर इसके लिए कानून लेकर आई जिसमें ऑल इंडिया सर्विस एक्ट 1951 के तहत परमानेंट महंगाई भत्ता मिलना शुरू हुआ।

महंगाई भत्ता देने का आधार क्या होता है ?

सरकार किसी भी कर्मचारी की सैलरी को आधार मानकर महंगाई भत्ते की केल्कुलेशन करती है। लगभग हर 6 महीने बाद सरकार महंगाई भत्ते में कमी या बढ़ोतरी करती है। जैसे पिछली बार सरकार ने 29 अगस्त 2018 को महंगाई भत्ते में 2 फीसदी की बढ़ोतरी की थी जिसके बाद अब फरवरी में नया ऐलान हुआ है। शहरों में और गावों में काम करने वाले कर्मचारियों को अलग-अलग महंगाई भत्ता दिया जाता है।

महंगाई भत्ता कैसे निकाला जाता रहा है ?

केंद्र सरकार किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी और ग्रेड पे को जोड़कर जो कुल पैसा बनता था, उसका एक निश्चित हिस्सा महंगाई भत्ते में देती है, लेकिन यह काम वह 2006 तक ही करती थी। इसके बाद सरकार ने भत्ते की केल्कुलेशन के नियम बदल दिए।

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