जयंती: हरिवंश राय बच्चन को उनकी रचना ‘मधुशाला’ के बाद लोग समझने लगे थे शराबी

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जब हिंदी साहित्य की बात आती है, तो वहां एक जाना-पहचाना नाम जरूर सामने आता है। हरिवंश राय बच्चन यानि हरिवंश राय श्रीवास्तव, हिंदी की सबसे अधिक लोकप्रिय रचना ‘मधुशाला’ के रचयिता। हरिवंश हिंदी के सबसे लोकप्रिय कवियों में एक हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उनके बारे में केवल इतना ही जानते हैं कि वह बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता थे। 27 नवंबर को हरिवंश राय बच्चन की 115वीं जयंती है। उनका जन्म वर्ष 1907 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था। इस मौके पर जानिए मशहूर हिंदी साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

हरिवंश ऐसे बने श्रीवास्तव से बच्चन

सच कहें तो उनकी शख्सियत कभी किसी परिचय के लिए निर्भर नहीं रही। उनकी दिल छू जाने वाली रचनाएं, खुद हर कदम पर उनकी शख्सियत को बयां करती हैं। इलाहाबाद के पास बसे प्रतापगढ़ के एक गांव बाबूपट्टी में जन्मे हरिवंश का पूरा नाम ‘हरिवंश राय श्रीवास्तव’ था, लेकिन बचपन में गांव वाले उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ कहकर बुलाते थे, क्योंकि गांव में ‘बच्चन’ का मतलब ‘बच्चा’ होता था और फिर बाद में हरिवंश ‘बच्चन’ के नाम से ही मशहूर हुए।

तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में,
अंतरिक्ष में खग एकाकी,  तारा है, अंबर में
भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला,
नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला!

पत्नी की मौत के बाद पहली रचना में दिखा दर्द

हरिवंश राय बच्चन ने प्रयाग यूनिवर्सिटी से एमए इंग्लिश और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इंग्लिश के प्रसिद्ध कवि डब्लू. बी. यीट्स की कविताओं पर शोध किया। वर्ष 1926 में महज 19 साल की उम्र में उनका विवाह 14 साल की श्यामा बच्चन से हुआ, मगर शादी के 10 साल बाद ही साल 1936 में टीबी की बीमारी के चलते श्यामा बच्चन की मौत हो गई। जीवन में अचानक आए इस दुख और अकेलेपन को बयान करने हुए उन्होने वर्ष 1939 में ‘एकांत संगीत’ के नाम से अपनी एक रचना प्रकाशित की।

श्यामा बच्चन के गुजर जाने के 5 साल बाद वर्ष 1941 में हरिवंश राय बच्चन ने तेजी सूरी से दूसरी शादी की। तेजी रंगमंच और गायकी की दुनिया से ताल्लुक रखती थीं। बाद में हरिवंश और तेजी के दो बेटे हुए जिन्हें आज पूरी दुनिया अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन के नाम से जानती है। हरिवंश राय बच्चन का सबसे पहला कविता संग्रह ‘तेरा हार’ वर्ष 1929 में आया था, लेकिन उन्हें पहचान वर्ष 1935 में प्रकाशित हुए लोकप्रिय कविता संग्रह ‘मधुशाला’ से मिली थी।

सबसे मशहूर रचना ने भी देखा था बुरा दौर

मधुशाला पढ़ने वालों को लगता था कि इसके रचयिता शराब के बहुत शौकीन होंगे, लेकिन हकीकत तो यह थी कि हरिवंश राय बच्चन ने अपने जीवन में कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया। इसकी सबसे चर्चित और शुरुआती लाइन यह है…

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला,
पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला

‘मधुशाला’ उस दौर का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला कविता संग्रह था। इसे पसंद करने वालों में खास तौर पर वह लोग शामिल थे, जो कविता के साथ-साथ शराब का भी शौक रखते थे। ऐसे में बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव को लगता था कि इस कविता संग्रह से देश के युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है और वह शराब की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके चलते वो हरिवंश राय बच्चन से काफी नाराज़ भी हो गए थे। उस दौर में मधुशाला का और भी कई जगह विरोध हुआ था।

भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से किया सम्मानित

मधुशाला के बाद वर्ष 1936 में हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह ‘मधुबाला’ और वर्ष 1937 में ‘मधुकलश’ आया। उनकी यह रचनाएं भी खूब प्रसिद्ध हुईं। उनके सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रहों में ‘निशा निमंत्रण’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अंतर’ और ‘सतरंगिनी’ जैसे कुछ नाम शामिल हैं। वहीं, उनकी रचना ‘दो चट्टाने’ को साल 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए बच्चन को वर्ष 1976 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी, जिसे चार खंडों में प्रकाशित किया गया था। इनका नाम, ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’ है। 18 जनवरी, 2003 को 95 साल की उम्र में हिंदी साहित्य के इस महान फनकार ने मुंबई में अलविदा कह दिया। लेकिन उनकी रचनाएं आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल में धड़कती हैं और वो अपने चाहने वालों को कभी अलविदा नहीं कहेंगीं।

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