2019 के लोकसभा चुनाव को “व्हाट्सएप इलेक्शन” क्यों ना कहा जाए ?

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भारत के 2019 में होने वाले आम चुनाव को “व्हाट्सएप इलेक्शन” कहा जा रहा है। इंटरनेट कनेक्टिविटी में आती भयंकर तेजी और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग की वजह से निजी मैसेजिंग सर्विस व्हाट्सएप का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या 2010 में इसके लॉन्च होने के बाद 200 मिलियन तक बढ़ी है जो किसी भी अन्य लोकतांत्रिक देश की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी है। चुनाव को नजदीक देखते हुए अब देश के राजनीतिक दल इस चैनल का अपने हिसाब से उपयोग करने का सोच रहे हैं।

पिछले कुछ समय से भारत में व्हाट्सएप का गलत जानकारी देने और “फेक न्यूज” फैलाने के लिए उपयोग किए जाने की चर्चा गरम हैं ऐसे में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए यह एक नया खतरा भी पैदा कर सकता है।

2014 में जुटाए गए सोशल मीडिया समर्थन का सत्तारूढ़ दल भाजपा ने काफी अच्छे से उपयोग किया था। ठीक वैसे ही आने वाले चुनावों में भाजपा का लक्ष्य स्मार्टफोन वोटर्स पर है। 900,000 से अधिक वॉलियंटर “सेल फोन प्रामुख” भाजपा के विकास की उपलब्धियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभियान गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बना रहे हैं।

इस बीच, विपक्षी दल कांग्रेस ने भी “डिजिटल साथी” ऐप लॉन्च करने के साथ ही अपने डिजिटल अभियानों के लिए वॉलियंटर लगा दिए हैं।

लेकिन भारत में बढ़ती व्हाट्सएप की लोकप्रियता चुनाव पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है। 2018 के ब्राजील में हुए चुनाव और भारत में हाल ही में विधानसभाओं के चुनावों के बाद यह पता चलता है कि व्हाट्सएप का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए मतदाताओं को गलत तरीके से मैसेज भेजने के लिए किया जा रहा है।

भयंकर टूल

भारत में राजनीतिक स्पेक्ट्रम के साथ-साथ सामाजिक तौर पर भी फर्जी खबरों से लाभ उठाने के मामले देखे गए हैं। जैसे कई हिंदूवादी संगठनों ने व्हाट्सएप जैसे मीडिया के माध्यम से अपनी एक आम सामाजिक-राजनीतिक पहचान बनाई है। कोई वायरल वीडियो या मैसेज के जरिए इन संगठनों को एक मजबूत राष्ट्रवादी पहचान बनाने में काफी मदद मिली है।

कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ हालिया तनाव की चुनाव में एक प्रभावशाली भूमिका दिखने की संभावना है। इस दौरान भी व्हाट्सएप पर कई ऐसी सामग्री वायरल हुई जनता के बीच आक्रोश काफी बढ़ा और गलत सूचनाओं की बाढ़ सी आ गई। कुछ मामलों में, जब गलत सूचना के अधिक भयावह रूप वायरल हो गए हैं, तो भारत में रोजमर्रा के सामाजिक जीवन पर प्रभाव पड़ा, जैसे व्हाट्सएप पर वायरल होने वाले वीडियो और फोटो हत्या और लिंचिंग की कम से कम 30 घटनाओं से जुड़े हुए हैं।

व्हाट्सएप पर वायरल होने वाले फेक मैसेज को लेकर व्हाट्सएप ने पहले से ही भारत में अपना सार्वजनिक शिक्षा अभियान शुरू किया है जो यूजर्स को “अफवाहें नहीं खुशी फैलाने” के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके अलावा एक बार में आप कुछ सीमित लोगों को ही मैसेज भेज सकते हैं।

लेकिन यह कदम अभी बहुत शुरूआती हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं है। मैसेज फॉरवर्ड करने की लिमिट के बावजूद भी आप अभी भी एक साथ 256 लोगों को मैसेज भेज सकते हैं और उन्हें पांच बार आगे भेज सकते हैं जिसका मतलब हुआ कि आप एक सैकेंडो में 1,280 लोगों के साथ कुछ शेयर कर सकते हैं।

दूसरी तरफ एक चुनौती यह भी है कि भारत जैसे देश में लोगों को मैसेज को स्रोत और मैसेज की वैधता के बारे जानने की कम रूचि रहती है। इसलिए, व्हाट्सएप पर फैलने वाले मैसेजों की जांच के लिए आजकल मीडिया संस्थानों को प्रयास करने पड़ रहे हैं।

अंततः, भारतीय राजनीति में व्हाट्सएप की भूमिका को सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों के साथ तेजी से बढ़ती हुई तकनीक के माध्यम से समझने की आवश्यकता है। व्हाट्सएप एक ऐसा टूल है जो कुछ प्रवृत्तियों को बढ़ाता है जो पहले से ही हमारे भारतीय समाज में मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, लिंचिंग की घटनाएं, हिंसा। इसी तरह धार्मिक, जातिगत और लैंगिक घृणा को बढ़ावा देने वाले मैसेज वायरल होना।

हमें डिजिटल राजनीति और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच उभरती हुई इन कड़ियों को और अधिक अच्छी तरह से समझने की जरूरत है। चुनावों में होने वाले डोर टू डोर कैंपेनिंग, रैलियों और भाषण इस मैसेजिंग ऐप द्वारा कैसे (गलत) सूचनाओं में वायरल किए जाते हैं। ये अलग-अलग क्षेत्रों को विभिन्न तरीकों से राजनीतिक भागीदारी और निष्ठा को कैसे प्रभावित करते हैं?

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