दो विवाद, दो एनकाउंटर्स, जानिए क्यों राजपूत वसुंधरा और बीजेपी से गुस्सा हैं?

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झालरपाटन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का निर्वाचन क्षेत्र है। राजे के साथ मतभेदों के बाद मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए। ध्यान देने वाली बात यह है कि वे वसुंधरा के सामने इसी सीट पर चुनाव भी लड़ने जा रहे हैं।

राजस्थान में राजे का कार्यकाल राजपूतों के साथ टकराव से भरा हुआ है। ज्यादातर पश्चिमी राजस्थान में जहां राजपूतों का शासन जारी है।

राजपूत राज्य की आबादी का 8-10% हिस्सा हैं। मानवेंद्र का कहना है कि यह एक स्पष्ट क्रोध है और इसकी शुरूआत 2014 में हुई थी। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिससे ये क्रोध पश्चिम से बढ़ रहा है और अब पूरे राज्य में फैल चुका है। दरअसल राजपूत संगठन इसे राजपूत बनाम नॉन राजपूत भी कह रहे हैं।

mavendra singh
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करनी सेना के नेता लोकेन्द्र सिंह कलवी का कहना है कि निश्चित रूप से यह है। 1998 में जयभान सिंह पावया ने ग्वालियर में माधवराव सिंधिया को इस मुद्दे पर पूरी तरह से चुनौती दी थी और सिंधिया ने मुश्किल से उस प्रतियोगिता को जीता था। तब से सिंधिया ने ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ा है। झालरापाटन में भी यह मुद्दा असली राजपूत बनाम गैर-राजपूत है।

राजे के खिलाफ राजपूत असंतोष के बीज 2014 के संसदीय चुनावों में बोए गए थे जब मानवेंद्र के पिता जसवंत सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री और अनुभवी बीजेपी नेता को उनके गृह जिले के बाड़मेर से टिकट से इंकार कर दिया गया था।

यह टिकट जाट नेता सोनराम चौधरी के पास गया जो कांग्रेस से आए थे। सिंह एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े लेकिन हार गए थे।

दो एनकाउंटर

दो साल बाद जून 2016 में, जैसलमेर में हीस्ट्री-शीटर चतुर सिंह के कथित फर्जी एनकाउंटर के विरोध में राजपूत सरकार के खिलाफ सड़क पर आ गए और इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की। विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों में जैसलमेर के भाजपा विधायक चट्टू सिंह शामिल थे। लेकिन इसके एक साल बाद वो एनकाउंटर हुआ जिसके चलते वसुंधरा को सबसे ज्यादा विरोध सहना पड़ा।

ANANDPAL
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गैंगस्टर आनंद पाल सिंह जो जून 2017 में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था वो राजपूत नहीं था। आपको बता दें कि रावण राजपूत सिंह समुदाय, सांस्कृतिक रूप से राजपूतों के समान हैं लेकिन ऐतिहासिक रूप से जाति भेदभाव का सामना कर रहे हैं।

आनंद पाल की मौत के खिलाफ कई दिनों तक हिंसक विरोधों का नेतृत्व कर्णी सेना जैसे राजपूत संगठनों ने किया था।

हालांकि, इस मुद्दे ने उन सभी को एक साथ लाया जो राजे से मतभेद रखते थे। उनमें विपक्षी कांग्रेस और बागी बीजेपी के विधायक घनश्याम तिवाड़ी शामिल थे।

इस मुद्दे को हवा तब ज्यादा मिली जब सड़कों पर और सोशल मीडिया पर विरोध के साथ साथ मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए वसुंधरा राजे को घेर लिया।

जब तक राजे ने सीबीआई जांच के लिए इस मामले में हां कही, तब तक लोगों ने धारणाएं बना ली थीं और राजपूत वोटों का असर आगमी चुनावों पर पड़ना निश्चित ही था।

एक और अपमान

आनंद पाल की मौत से एक साल पहले एक और घटना ने राजे के लिए चीजों को मुश्किल बनाया था। सितंबर 2016 में जयपुर विकास प्राधिकरण ने जयपुर के पूर्व शाही परिवार के स्वामित्व वाले कुलीन राज महल पैलेस होटल के गेट को बंद कर दिया।

इस घटना से राजस्थान की राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ी उस समय परिवार की सदस्य दीया कुमारी भाजपा विधायक थीं।

परिवार ने जेडीए के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी। जयपुर की पूर्व राजमाता, पद्मिनी देवी ने करणी सेना सहित कई राजपूत समूहों के सदस्यों के साथ सार्वजनिक विरोध भी किया।

अब, बीजेपी के विधानसभा चुनावों में दीया को टिकट नहीं मिली हालांकि दीया ने खुद स्पष्ट किया है कि वह चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं।

गजेंद्र सिंह

gajendra singh shekhawat
gajendra singh shekhawat

फरवरी में विधानसभा और संसदीय उपचुनाव में पार्टी की हार के बाद बीजेपी के राज्य अध्यक्ष अशोक पारनामी को इस्तीफा देना पड़ा था जिससे वसुंधरा की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ती हुई दिखीं।

पारनामी की जगह सजेस्ट किए गए नामों में राज्य मंत्री और जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह का मामला सबसे मजबूत था। पार्टी सूत्रों ने कहा कि उनके पास भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का वोट था।

आखिर में राजे के आदेश पर अपेक्षाकृत अज्ञात चेहरे मदन लाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया। रिपोर्टों में कहा गया है कि इसके कारण राजपूत समाज और वसुंधरा के बीच अलगाव पैदा हुआ।

कलवी ने कहा कि अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपनी सरकार के लिए एक युवा सदस्य चाहते थे जो सीमावर्ती जिलों में राज्य अध्यक्ष बनने के लिए काम कर रहे थे। केवल शेखावत उस विवरण में फिट बैठते हैं लेकिन राजे ने इसका विरोध किया।

हालांकि, समुदाय के कई सदस्य हैं जो महसूस करते हैं कि राजपूत भावना अब राजे या बीजेपी के खिलाफ नहीं है।

राजपूत नेता और वसुंधरा के कैबिनेट के कोर मेंम्बर गजेन्द्र सिंह का कहना है कि ऐसी कई तरह की चीजें हुई हैं जिससे कई लोगों को लग रहा है कि वसुंधरा एंटी राजपूत है। इसकी शुरूआत बाड़मेर में मानवेंद्र को टिकट न देने से हुई और वहां पर एक जाट उम्मीदवार को उतारा गया।

Gajendra-Singh
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उनके अनुसार, वह धारणा पूरी तरह से बदल गई है। उन्होंने आगे बताया कि धारणा इसलिए बदल गई है क्योंकि चुनावों में बीजेपी ने 28 राजपूत उम्मीदवारों को चुना है जबकि कांग्रेस ने केवल 13 राजपूतों को टिकट दिए हैं। पेंडुलम वापस आ गया है। उनका मानना है कि बीजेपी वास्तव में राजपूतों के लिए पार्टी है। गजेन्द्र ने आगे कहा कि मानवेंद्र को कांग्रेस द्वारा बहकाया जा रहा है और वह बुरी तरह से चुनाव हारेंगे।

सवाल यह है कि राजस्थान में मतदान निरीक्षकों के मन में सवाल है कि राजपूत राजे की वजह से बीजेपी की चुनाव संभावनाओं को नुकसान पहुंचाएंगे वैसे ही जैसे जाटों ने 2013 में अशोक गहलोत के साथ अपने क्रोध के कारण कांग्रेस को चोट पहुंचाई थी।

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