इंडिया में TikTok के दिवाने हैं लोग फिर भी क्यों बैन के लिए आवाजें उठ रही हैं?

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सुप्रीम कोर्ट में TikTok की किस्मत का फैसला होना बाकी है। TikTok, जिसे पहले musical.ly के रूप में जाना जाता था एक ऐप है जहां लोग शोर्ट वीडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं और उन्हें शेयर कर सकते हैं।

ये ऐप अपने विवादित कंटेट के लिए भारतीय न्यायपालिका के दायरे में आया है। आइए उन याचिकाओं पर चर्चा करते हैं, जो TikTok ऐप पर बैन की डिमांड कर रही हैं और यदि प्रतिबंध लगाया जाता है, तो यह कैसे प्रभावी होगा।  TikTok का मार्केट भारत में कुछ ज्यादा ही बड़ा है। भारत में लोग टिकटॉक पर ऐसे ही लगे हुए हैं जैसे मधुमक्खियां शहद पर।

मोबाइल ऐप इंटेलिजेंस फर्म सेंसर टॉवर की एक रिपोर्ट के अनुसार इस ऐप के ग्लोबल स्तर पर 18.8 करोड़ नए ग्राहकों में से 2019 की पहले तीन महीनों में 8.8 करोड़ लोग भारत से थे। यह लगभग 48 प्रतिशत है। सोचिए, अगर किसी ऐप के लिए सभी यूजर्स का HALF सिर्फ एक देश से आया हो।

स्पष्ट रूप से, TikTok बड़े पैमाने पर है, और यह तेजी से बढ़ रहा है। जिसका मतलब क्या है? इस पर बहुत सारी संभावित अवैध चीजें हो सकती हैं। कानूनी रूप से यह कहाँ तक ठीक है।

मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी ताकि भारत में इस ऐप पर प्रतिबंध लगाया जा सके। लेकिन याचिका का बेस क्या था? याचिकाकर्ता ने कहा कि मुख्य मुद्दे जो ऐप के साथ उठाए गए हैं, वे नाबालिगों के लिए प्राइवेसी सिक्योरिटी की कमी हैं वे इस ऐप के जरिए उस व्यवहार में ज्यादा पड़ जाते हैं और पोर्नोग्राफी जैसी चीजों की ओर उनका झुकाव बढ़ता है। और एक समस्या यह भी है कि इस उम्र में ही उनका ध्यान पढ़ाई से भटक जाता है।

आगे उन्होंने बताया कि TikTok पर अक्सर ऐसे कमेंट्स देखे जाते हैं जिसमें यौन संबंध, मौत की धमकी और यहां तक कि कुछ मामलों में बलात्कार की धमकियों का सामना करना पड़ता है। यह सब, बच्चों पर गलत असर ही छोड़ता है।

परिणामस्वरूप, मद्रास उच्च न्यायालय ने 3 अप्रैल को केंद्र सरकार को एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें पहले भारत में ऐप को डाउनलोड करने पर प्रतिबंध लगाय जाए और दूसरा मीडिया को TikTok ऐप के साथ बनाए गए वीडियो को प्रसारित करने से प्रतिबंधित करता है क्योंकि अदालत इस चीज से सहमत था कि टिकटोक ऐप “अश्लील कंटेट को प्रोत्साहित करता है” और बच्चों के व्यवहार को बिगाड़ रहा है।

न्यायालय ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या वे बच्चों को ऑनलाइन शिकार बनने से रोकने के लिए अमेरिकी सरकार द्वारा लागू बच्चों के ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट की तरह एक क़ानून बना पाएंगे।

वास्तव में, याचिकाकर्ताओं ने बच्चों को होने वाले मनोवैज्ञानिक नुकसान के अलावा फीजिकल डेमेज के खतरे को भी हाईलाइट किया है।  14 अप्रैल को, पुलिस ने बताया कि दिल्ली में एक 19 वर्षीय व्यक्ति की उसके दोस्त ने कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी, जबकि वे एक टिकटॉक वीडियो बनाने का प्रयास कर रहे थे जिसमें एक पिस्तौल शामिल थी।

लेकिन यह तथ्य कि टिकटोक एक ऐसा ऐप है जिसे निजी व्यक्ति अपने फोन पर एक्सेस कर सकते हैं, कानून कैसे इस ऐप को प्रतिबंधित कर सकता है और प्रतिबंध की निगरानी कर सकता है, भारत की आबादी जितनी बड़ी है, यह सुनिश्चित कैसे होगा कि कोई भी व्यक्ति टिकटोक का उपयोग नहीं कर रहा है?

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के डायरेक्टर अपार गुप्ता का कहना है कि सबसे आम तरीका यह है कि वे Google Play स्टोर और iOS स्टोर से ऐप के डाउनलोड को ब्लॉक करते हैं। दूसरा तरीका यह है कि ऐप द्वारा बायरडेंस के सर्वर से क्वेरी किए गए आईपी पते को ब्लॉक करें।

इसलिए, ऐप पर मद्रास उच्च न्यायालय के प्रतिबंध के जवाब में बाईटांसेंस नामक एक चीनी फर्म जो टिकटॉक बनाने वाली कंपनी है उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश ने अभिव्यक्ति की आजादी और फ्री स्पीच के अधिकार को रोका है।

सुप्रीम कोर्ट ने दलील की अनुमति देने के बाद कहा कि वह 22 अप्रैल को टिक्कॉक पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगी, क्योंकि मद्रास उच्च न्यायालय 16 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई करने वाला है।

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