वो मामला जिसके लिए CBI अधिकारी राव को पूरे दिन कोर्ट में बैठने की सजा सुनाई गई!

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7 फरवरी को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने बिहार आश्रय गृह दुरुपयोग के मामलों की सीबीआई जांच के प्रभारी अधिकारी के ट्रांसफर की कड़ी आलोचना की थी।

अधिकारी, सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक ए के शर्मा को अदालत की अनुमति के बिना 17 जनवरी को एडीजीपी, सीआरपीएफ के रूप में स्थानांतरित किया गया था। बेंच ने एम नागेश्वर राव को अवमानना का नोटिस जारी किया था जो सीबीआई के तत्कालीन अंतरिम निदेशक थे और उन्हें 12 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया था।

बेंच ने CBI के वकील से कहा था कि हम इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश से खेल रहे हैं। भगवान आपकी मदद करें। कभी भी, अदालत के आदेश के साथ खिलवाड़ ना करें।

31 अक्टूबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि ए के शर्मा जांच दल के वरिष्ठतम अधिकारी बने रहेंगे। एक महीने बाद 28 नवंबर को कोर्ट ने अपने निर्देशों को दोहराया भी था और कहा था कि “हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि सीबीआई के अधिकारी जो इन आरोपों की जांच कर रहे हैं उन्हें अदालत की छुट्टी के बिना स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। हम अनुमति देते हैं कि निदेशक टीम का विस्तार कर सकते हैं लेकिन हम यह पूरी तरह स्पष्ट करते हैं कि जांच के प्रभारी श्री एके शर्मा बने रहेंगे”

अदालत ने कहा कि 18 जनवरी को शर्मा को बाहर करने के अगले दिन सीबीआई के अतिरिक्त कानूनी सलाहकार एस भसुरन ने सलाह दी थी कि शर्मा का ट्रांसफर एक सही फैसला है और अधिकारी को राहत देने के लिए किसी भी कानूनी बाधा का सामना नहीं करना पड़ेगा। हम इसे “अदालत” के संज्ञान में ला सकते हैं। राव ने उसी दिन इस नोट को मंजूरी दी थी।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस नोटशीट से ऐसा नहीं लगता है कि मंत्रीमंडल की नियुक्ति समिति को न्यायालय के आदेशों से अवगत कराया गया था। नोट में सुझाव के अनुसार न तो इसके लिए अदालत की मंजूरी ली गई थी, न ही ली जा सकती थी। जैसा कि 18.1.2019 को हुआ था। जब नोट पर हस्ताक्षर किए गए थे और अनुमोदित किए गए थे। ट्रांसफर का आदेश पहले ही बना और लागू किया गया था।

ऐसे में नागेश्वर ने इस पर सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी थी और अपने लेटर में कहा कि वह अपनी गलतीमान रहे हैं कि अदालत के आदेश के बिना मुख्य जांच अधिकारी ट्रांसफर नहीं करना चाहिए था। कोर्ट में एक अनोखी सजा सामने आई। कोर्ट ने अदालत की अवमानना पर एक लाख का जुर्माना लगाया और पूरे दिन कोर्ट चलने तक वहीं एक कोने में बैठे रहने की सजा सुनाई।

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