बड़े बजट का मतलब क्रिएटिविटी नहीं होती, ये बात बड़े स्टार्स को कब समझ आएगी?

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ठग्स ऑफ हिंदोस्तान 250 करोड़ रुपये के साथ यशराज फिल्म्स की सबसे महंगी फिल्म थी। टाइगर ज़िंदा है (210 करोड़ रुपये) और धूम 3 (175 करोड़ रुपये) के साथ तीसरे नबंर पर है। सबसे महंगी तो थी ही साथ ही यशराज बैनर की सबसे बुरी फिल्मों में से भी एक है।

अब बात करते हैं कलंक की। 150 करोड़ के बजट वाली फिल्म। बुरी तरह पिटी। शाहरूख खान कहां पीछे रहते। जीरो का बजट था 200 करोड़। शाहरूख और आनंद राय ने इससे पहले इतने बड़े बजट की कोई फिल्म नहीं की थी।

कहा जा सकता है कि सलमान खान की भारत इन फिल्मों से बेहतर कर रही हो लेकिन फिलहाल तो भारत भी अपनी लागत वसूलने में हांफ रही है।

इन सब फिल्मों और स्टार्स का जिक्र क्यों किया गया? सवाल यही उठता है कि इन बड़े डायरेक्टर्स और एक्टर्स को क्यों लगता है कि जितना बड़ा बजट होगा उतनी ही बढ़िया क्रिएटिविटी होगी?

आर्टिकल 15 जिसमें आयुष्मान खुराना लीड रोल कर रहे हैं फिल्म रिलीज के लिए बिलकुल तैयार है। अब यहां ध्यान दिया जाना चाहिए डायरेक्टर अनुभव सिन्हा पर। डायरेक्टर अनुभव सिन्हा वही शख्स थे जिन्होंने 2011 में शाहरुख की रा.वन को डायरेक्ट किया था।

इसकी लागत 130 करोड़ रुपये थी (जो आज 200 करोड़ रुपये से अधिक होगी) और ये अब तक की सबसे महंगी भारतीय फिल्म में से एक थी। शाहरूख खान ने फिल्म के डिस्ट्रिब्यूशन में 50-करोड़ रुपये अलग से खर्च किए थे जो रजनीकांत की रोबोट की तुलना में काफी महंगी साबित हुई। लेकिन हुआ क्या लोगों ने फिल्म को नकार दिया। फिल्म की स्क्रिप्ट और टेक्निकल स्किल्स मैच नहीं कर पाए। फिल्म फ्लॉप साबित हुई।

2018 की बात करते हैं। इस साल अनुभव सिन्हा ने ही “मुल्क” जैसी एक उम्दा फिल्म बनाई जिसमें एक मुस्लिम परिवार की कहानी को बयां किया गया। ऋषि कपूर और तापसी पन्नू लीड रोल में नजर आए। लोगों ने फिल्म को काफी पसंद किया। क्रिटिक्स ने भी फिल्म को सराहा। अनुभव सिन्हा ने फिल्म में 13 करोड़ रूपए का खर्च किया और सिनेमाघरों में जब ये लगी तब लागत से तीन गुना ज्यादा कमा गई।

अनुभव सिन्हा और विवेक अग्निहोत्री दोनों डायरेक्टर्स की तुलना की जाती है। दोनों की विचारधारा में भी बड़ा अंतर देखने को मिलता है। लेकिन एक बात ध्यान रखने वाली यही है कि दोनों ने ही फिल्मों के लिए एक अलग रास्ता चुना है।

एक वक्त हुआ करता था जब वे पड़ोसी और अच्छे दोस्त थे। एक फिल्म आई थी ‘जिद’ जिसका निर्देशन विवेक ने किया था और अनुभव उसको प्रोड्यूस करने वाले थे लेकिन लास्ट टाइम में अनुभव ने अपना हाथ फिल्म से खींच लिया। विवेक को मोदी भक्त और अनुभव को मोदी हेटर के रूप में देखा जाता है लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में दोनों को एक जगह रखकर देखा जा सकता है। विवेक की 5 करोड़ की लागत वाली ताशकंद फाइल्स की ही बात कर लेते हैं जो अपनी लागत से चार गुना ज्यादा कमा लेती है। नेटफ्लिक्स से भी तो अभी कमाना बाकी है।

इसी कड़ी में आर्टिकल 15 भी शामिल है जिसमें अनुभव सिन्हा एक बार फिर एक सामाजिक समस्या को सामने रख रहे हैं। मान लिया वे टाइट बजट में काम करते हैं लेकिन क्रिएटिविटी भी वहां मौजूद होती है।

शाहरूख खान की सबसे बड़ी सफलता ‘चक दे इंडिया’ के साथ थी। उस वक्त ये सबसे कम बजट वाली फिल्मों में से थी। मात्र 24 करोड़ की लागत के साथ बनी इस फिल्म ने 125 करोड़ रुपये कमाए थे और शाहरूख को इस फिल्म के लिए काफी सराहा भी गया था। फिर चीजें इतनी बदल क्यों गई हैं? शाहरूख या सलमान खान के नाम से ही फिल्म का बजट बड़ा हो ये क्यों जरूरी है? बड़े बजट का क्रिएटिविटी से तो कोई लेना देना नजर आता नहीं है।

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