किरोड़ी सिंह बैंसला : गुर्जर समाज का वो चेहरा जिसकी एक हुंकार से हिल जाती है सरकारों की चूलें

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राजस्थान में पिछले करीब 10 सालों से गुर्जर समाज के लोग आरक्षण को लेकर आंदोलन करते आ रहे हैं जिससे हर सरकारें हिल जाती है। एक बार फिर राजस्थान की सड़कों पर आंदोलन की आग फैल गई है ऐसे में सालों से आंदोलन की अगुवाई करने वाला एक चेहरा फिर एक बार चर्चा में है। जी हां, हम बात कर रहे हैं कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला, जिनकी एक हुंकार भर से गुर्जरों में एकजुटता का जोश दौड़ पड़ता है। आइए जानते हैं कौन है कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला

फौजी परिवार में जन्मे बैंसला पहले थे टीचर

राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म हुआ। पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने करियर की शुरूआत टीचर के तौर पर काम करके की। पिता के फौज में होने से परवरिश से ही बैंसला का देश सेवा की तरफ रूझान रहा। आखिरकार कुछ समय बाद टीचर की नौकरी छोड़ बैंसला सिपाही बन सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए।

सेना में रहने के दौरान बैंसला 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े। सेना में बैंसला के हुनर और जांबाजी की बतौलत एक मामूली सिपाही से शुरूआत करने वाले बैंसला कर्नल रैंक तक पहुंचे।

सेना के जवान कहते थे इंडियन रेम्बो

कहा जाता है कि सेना के अन्य जवान बैंसला का जज्बा देखकर हमेशा हैरान हो जाते थे। सेना में अपने कार्यकाल के दौरान बैंसला को पाकिस्तान का युद्धबंदी भी बनाया गया। सेना के जवान या उनके सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर का चट्टान’ या फिर कमांडो ‘इंडियन रेम्बो’ कहते थे।

मुगल शासक बाबर से हैं काफी प्रभावित

बैंसला के पारिवारिक जीवन की बात करें तो उनके चार संतान हैं जिनमें से दो बेटे सेना में भर्ती हैं तो बेटी रेवेन्यु सर्विस में काम करती है। बैंसला की पत्नी का कुछ साल पहले निधन हो गया जिसके बाद वो अपने परिवार के साथ राज्य के हिंडौन जिले में रहते हैं। बैंसला अपने जीवन में मुगल शासक बाबर और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन इन दो लोगों को प्रेरणास्त्रोत मानते हैं।

क्या है गुर्जर आरक्षण आंदोलन ?

सेना से रिटायर होने के बाद बैंसला ने गुर्जरों को आरक्षण दिलाने का जिम्मा उठाया जिसके लिए उन्होंने गुर्जर आरक्षण समिति का गठन किया। इस समिति के बैनर तले वो हर सरकारों के सामने अपनी मांगों को मनवाने के लिए प्रदर्शन करते आए हैं। पिछले 10 साल से चल रहे इस तरह के आंदोलन में 70 से अधिक लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है।

तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण देने के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी किया लेकिन आरक्षण का आंकड़ा 50 फीसदी से बाहर जाने की वजह से कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।

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