आचार संहिता: क्योंं राजनैतिक पार्टियों पर चुनाव से पहले कस दी जाती है लगाम?

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भारत निर्वाचन आयोग ने 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा की है और 23 मई को परिणाम आएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) आज से ही प्रभाव में आ गई है और सभी पक्षों और पार्टियों से उसका सख्ती से पालन करने का आह्वान किया। आदर्श आचार संहिता लगने का मतलब है कि राजनीतिक पार्टियों के लिए कुछ नियम निर्धारित होते हैं जिनका उन्हें ध्यान रखने की जरूरत होती है। वर्तमान सरकार अब किसी तरह की नई योजना की घोषणा भी नहीं कर सकती है।

आदर्श आचार संहिता क्या है?

चुनाव आयोग का आदर्श आचार संहिता चुनावों से पहले राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को कंट्रोल करने के लिए कुछ नियम लगाते हैं। नियम भाषणों, मतदान दिवस, मतदान केंद्रों, विभागों, चुनाव घोषणापत्रों, जुलूसों या रैलियों से संबंधित मुद्दों से लेकर होते हैं ताकि चुनावों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बरकरार रह सकें।

आदर्श आचार संहिता कब से लागू हुई?

प्रेस सूचना ब्यूरो के अनुसार MCC या आदर्श आचार संहिता को पहली बार 1960 में केरल में राज्य विधानसभा चुनावों में लगाया गया था। 1962 के चुनावों में सभी दलों द्वारा इसका बड़े पैमाने पर पालन किया गया था और बाद के आम चुनावों में इसको लगाया जाने लगा। अक्टूबर 1979 में चुनाव आयोग ने सत्ताधारी पार्टी को कंट्रोल में रखने के लिए अलग से एक और खंड खंड को शामिल किया गया। आदर्श आचार संहिता चुनावों की तारीखों की घोषणा से लेकर रिजल्ट वाले दिन तक लगी होती है।

आदर्श आचार संहिता में क्या प्रतिबंध लगाए जाते हैं?

इसमें सामान्य आचरण, मीटिंग्स, रैली, मतदान दिवस, मतदान केंद्र, पर्यवेक्षक, सत्ताधारी पार्टी और चुनाव घोषणापत्र से जुड़े आठ प्रावधान हैं। जैसे ही आचार संहिता लगती है सरकार चाहे राज्य की हो या केंद्र की दोनों को ही यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वे चुनाव प्रचार के लिए अपनी आधिकारिक स्थिति का उपयोग न करे।

इसलिए किसी भी नीति, परियोजना या योजना की घोषणा नहीं की जा सकती है जो मतदान को प्रभावित कर सकती है। चुनाव में जीत की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए पार्टी को सरकारी खजाने की कीमत पर विज्ञापन देने या प्रचार के लिए आधिकारिक जन माध्यमों का इस्तेमाल करने से भी बचना चाहिए।

कोड में यह भी कहा गया है कि मंत्री चुनाव कार्यों के साथ आधिकारिक ट्रेवल को मिला नहीं सकते हैं या इसके लिए आधिकारिक मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकते। सत्ता पक्ष भी चुनाव प्रचार के लिए सरकारी परिवहन या मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकता है।

यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनावी सभाओं के आयोजन के लिए सार्वजनिक स्थानों जैसे कि मैदान और हेलीपैड आदि के उपयोग की सुविधा विपक्षी दलों को भी उन्हीं नियमों और शर्तों पर प्रदान की जाए जिन पर सत्ताधारी पार्टी को उपयोग के लिए दिए जाते हैं। समाचार पत्रों और अन्य मीडिया में सरकारी खजाने की कीमत पर विज्ञापन जारी करना भी अपराध माना जाता है। सत्ता धारी पार्टी किसी भी तरह की नई नियुक्तियां नहीं निकाल सकती हैं।

राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों की आलोचना उनके काम के रिकॉर्ड के आधार पर की जा सकती है और मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी भी जाति और सांप्रदायिक भावनाओं का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों या किसी अन्य पूजा स्थलों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

मतदाताओं को रिश्वत देना, डराना या धमकाना भी मना है। मतदान के समापन के लिए निर्धारित घंटे से पहले 48-घंटे की अवधि के दौरान सार्वजनिक मीटिंग्स भी नहीं बुलाई जा सकती हैं। 48 घंटे की अवधि को “इलेक्शन साइलेंस” के रूप में जाना जाता है। इस घंटों के दौरान मतदाताओं को एक कैंपेन फ्री माहौल देने के लिए ऐसा किया जाता है।

तथ्य यह है कि आदर्श आचार संहिता फ्री और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए इलेक्शन कमीशन के अभियान के रूप में विकसित हुआ है और सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति से इसका गठन किया गया। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। सीधे शब्दों में कहें तो इसका मतलब यह है कि MCC को भंग करने वाले को कोड के किसी भी खंड के तहत आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। सब कुछ स्वैच्छिक है।

इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया किसी राजनेता या किसी पार्टी द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन करने पर नोटिस जारी कर सकता है। इसके लिए शिकायत किसी व्यक्ति या दूसरी पार्टी द्वारा भी की जा सकती है। एक नोटिस जारी होने के बाद व्यक्ति या पार्टी को लिखित रूप में जवाब देना होगा। जिसमें गलती स्वीकार करना और बिना शर्त माफी मांगना या आरोप को खारिज करना हो सकता है। यदि व्यक्ति या पार्टी को बाद में दोषी पाया जाता है तो उस पार्टी या व्यक्ति विशेष की निंदा खुद इलेक्शन कमीशन द्वारा लिखित में की जाती है।

आदर्श आचार संहिता का ‘उल्लंघन’

2017 के गुजरात चुनावों के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने एक दूसरे पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया। भाजपा ने मतदान से 48 घंटे पहले राहुल गांधी के टीवी चैनलों को दिए गए इंटरव्यू की ओर इशारा किया जबकि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोट डालने के बाद अहमदाबाद में “रोड शो” करके प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।

गोवा चुनावों के दौरान, चुनाव आयोग ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को नोटिस भेजा जिसमें केजरीवाल मतदाताओं से कह रहे थे कि कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों से पैसे ले लेना लेकिन वोट AAP को देना।

आदर्श आचार संहिता को लागू करने के लिए आयोग शायद ही कभी दंडात्मक कार्रवाई का समर्थन करता है लेकिन पिछले चुनावों में कुछ सामने आया जहां 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान, चुनाव आयोग ने भाजपा नेता और अब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और सपा नेता आज़म खान के चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी थी ताकि वे अपने भाषणों से मतदान के माहौल को और अधिक खराब न कर सकें।

आयोग ने प्रतिबंध लगाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का सहारा लिया। नेताओं द्वारा माफी मांगने और कोड के भीतर काम करने का वादा करने के बाद ही इसे हटाया गया था।

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