ऐसा क्या है इस पेड़ में खास, जो सुरक्षा के लिए 24 घंटे तैनात है सुरक्षाकर्मी

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अगर बात किसी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की हो तो सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम बहुत ही जरूरी हो जाते हैं। पर बात एक पेड़ की हो और उसकी सुरक्षा के चौबीसों घंटे सुरक्षा के तौर पर पुलिसकर्मी तैनात रहे समझ से परे है। पर यह पेड़ खास है क्यों? जानते हैं आखिर इस पेड़ के लिए सुरक्षा की जरूरत क्यों पड़ी –

यह किस्सा है मध्यप्रदेश के भोपाल और विदिशा के मध्य स्थित सलामतपुरा की पहाड़ी पर लगे पेड़ की। यह एक पीपल के पेड़ है जिसे किसी वीआईपी या किसी महानायक जैसी सुरक्षा का बंदोबस्त करना पड़ रहा है।


इस पेड़ को वर्ष 2012 में 21 सितंबर को श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने भारत आने के दौरान लगाया था। दरअसल यह एक बोधि वृक्ष है, जिसके नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। इसी कारण बौद्ध धर्म में बोधि वृक्ष का खास महत्त्व होता है।
तीसरी शताब्दी में बोधि वृक्ष की एक टहनी को भारत से श्रीलंका ले जाया गया था और उस टहनी को श्रीलंका के अनुराधापुरा में लगाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि ये उसी बोधि वृक्ष की टहनी थी, जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इस बोधि वृक्ष के महत्त्व को देखते हुए सरकार ने इसकी सुरक्षा के पूरे इंतजाम किये हैं। ताकि ये प्राचीन वृक्ष पूरी तरह से सुरक्षित रह सके।
इस बोधि वृक्ष के पेड़ की सुरक्षा के खर्च पर आपको जानकर हैरानी होगी कि एक पेड़ की सुरक्षा पर लाखों रुपये खर्च किये जा रहे हैं। इस पेड़ की पर प्रतिवर्ष 12 से 15 लाख रूपये ख़र्च होते हैं। इस पेड़ की सुरक्षा में चार गार्ड लगे हुए है जो सातों दिन और आठों पहर यानि 24 घंटे इस पेड़ की देखभाल में खड़े रहते हैं। इस पेड़ के लिए विशेष तौर पर पानी के टैंकर की व्यवस्था भी की गई है।

क्या बौद्ध धर्म –
छठीं शताब्दी ईसा पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।
जन्म: 563 ई.पू. में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के लुम्बिनी ग्राम में हुआ था।
बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता शुद्धोधन और माता महामाया था।
पत्नी: यशोधरा और उनके एक पुत्र राहुल था।
उन्होंने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।
उन्हें गया के निकट निरंजना नदी के किनारे एक पीपल के पेड़ के नीचे 49वें दिन पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्त हुआ और वे बुद्ध कहलाए।
उन्होंने अपने मत का प्रचार किया।
उनकी मृत्यु कुशीनगर में 483 ई. पू. में हुई, बौद्ध धर्म में इसे महापरिनिर्वाण कहते हैं।
यह धर्म विश्व के कई देशों में फैला, इसकी दो शाखाएं है जिसमें हीनयान सम्प्रदाय श्रीलंका, म्यांमार और जावा में और महायान सम्प्रदाय तिब्बत, चीन, कोरिया, मंगोलिया और जापान में में भी इस धर्म के अनुयायी है।

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