12 घंटे की नौकरी, कम सैलरी और रोज बुनियादी अधिकारों की लड़ाई, ऐसी है असली “चौकीदार” की जिंदगी

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देश की चुनावी गहमागहमी में इन दिनों “चौकीदार” शब्द का इस्तेमाल जमकर हो रहा है। जहां विपक्षी दल कांग्रेस सरकार को “चौकीदार चोर है” कहकर घेर रही है वहीं पीएम मोदी ने खुद को चौकीदार बताते हुए एक “मैं भी चौकीदार” एक नया अभियान शुरू किया जिसके बाद राजनीतिक माहौल और गरमा गया है।

लेकिन इस चुनावी राजनीति के बीच क्या आप जानते हैं एक वास्तविक चौकीदार की जिंदगी कैसी होती है, क्या होता है उसका रहन-सहन, कितनी मिलती है उसे सैलरी और किन बुनियादी अधिकारों के लिए वो हर दिन संघर्ष करता हैं। आइए जानने की कोशिश करते हैं।

वर्तमान में देश में प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियों की भरमार है जिनके तहत करीब 50 लाख से अधिक सुरक्षाकर्मी यानि चौकीदार काम करते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में, 1,368 पंजीकृत सिक्योरिटी एजेंसियां हैं वहीं एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में 250 से अधिक हैं।

दिल्ली-एनसीआर में रिहायशी सोसाइटी, फ्लैट्स और कई घरों में चोरी और लूट की घटनाओं और सुरक्षित माहौल बनाए रखने के लिए प्राइवेट एजेंसिया चौकीदार भेजती है। हालांकि, तथ्य यह है कि इन सोसाइटी में जो आपको गेट पर खड़े गार्ड दिखाई देते हैं उनकी नौकरी कम सुरक्षित और सैलरी काफी कम होती है। इसके अलावा हफ्ते के आखिर में एक छुट्टी भगवान भरोसे होती है।

प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियां बड़े पैमाने पर छोटे और एक असंगठित क्षेत्र के तौर पर काम करती है। चौकीदार, सुरक्षा गार्डों की सैलरी को लेकर आए दिन घटनाएं सामने आती रहती है। श्रम विभाग के पास कोई शिकायत नहीं पहुंच पाती जिससे इनका शोषण अनवरत जारी रहता है। दरअसल प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी रेगुलेशन एक्ट (PSARA) 2005 होने के बावजूद भी सिक्योरिटी गार्ड के हर तरह की परेशानियों का सबब बना रहता है।

प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड

निजी सुरक्षा गार्ड न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत इन गार्डों के लिए काम के घंटे और हफ्ते की एक छुट्टी तय की गई है।

इन गार्ड को अनस्किल्ड, सेमी-स्किल्ड और स्किल्ड में बांटा जाता है। अगर हम यूपी की बात करें तो, वहां अनस्किल्ड गार्ड (जिसके पास एक डंडा होता है और बिना हथियारों के होता है) को रू 5,750 + महंगाई भत्ता सैलरी के नाम पर मिलते हैं। जबकि सेमी-स्किल्ड (बिना हथियारों के सुरक्षा गार्ड) रू 6,325 + डीए मिलता है और वहीं स्किल्ड गार्ड (हथियारों के साथ सुरक्षा गार्ड (आर्म लाइसेंस के साथ) को 7,085 + डीए दिया जाता है। उनके लिए हर महीने चार छुट्टियों का भी प्रावधान है।

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम एक केंद्रीय कानून है लेकिन सरकार ने राज्यों को इन गार्डों की सैलरी तय करने का अधिकार दे रखा है। हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में एक सलाहकार बोर्ड होता है जो इन गार्डों की सैलरी तय करता है। इस बोर्ड की सिफारिश के आधार पर राज्य सरकार न्यूनतम सैलरी तय करती है।

इसके अलावा राज्य अपनी वेतन क्षमता के अनुसार सैलरी देते हैं। जैसे दिल्ली में एक गार्ड को 15000 रुपये तक सैलरी मिल जाती है वहीं झारखंड या सिक्किम में इसी काम को करने के लिए कम पैसे मिलते हैं।

एजेंसियां गार्डों को मिलने वाली सुविधाओं में घपला करती है तो भी मामले दबे ही रह जाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि निजी सुरक्षा गार्ड के पास कोई यूनियन नहीं है जो उनकी ओर से आवाज उठा सके। ऐसे में अगर देश के प्रधानमंत्री चौकीदार शब्द और इस काम को करने वाले लोगों की आम जिंदगी से रूबरू हैं और अब जब वो और उनका मंत्रीमंडल ही चौकीदार हो गया है तो इन चौकीदारों की तरफ देखा जाना तो बनता है।

(यह स्टोरी द इंडियन एक्सप्रेस की ग्राउंड रिपोर्ट का संशोधित और अनुवादित वर्जन है।)

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