प्रियंका के “खाकी निकर” पहनने पर क्यों बिलख पड़े ट्रोलर्स, जानिए इस निकर के पीछे की पूरी कहानी

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बॉलीवुड और हॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा सोशल मीडिया पर ट्रोल हो गई। अब आप इस बात को बड़ा नॉर्मल ले रहे होंगे क्योंकि प्रियंका चोपड़ा इतना ट्रोल हो चुकी है कि अब मीडिया के लिए कोई बड़ी बात नहीं रही।

प्रियंका चोपड़ा आजकल हर दूसरे दिन अपने कपड़ों या स्टाइल को लेकर ट्रोलर्स के हत्थे चढ़ जाती हैं, ठीक कुछ वैसा ही इस बार हुआ। दरअसल हाल में प्रियंका अपने पति निक जोनस के साथ दिखाई दी जिस दौरान उन्होंने खाकी रंग की निकर पहन रखी थी।

अब आप सोच रहे होंगे कि इस बात पर किसी को कैसे ट्रोल किया जा सकता है, तो आप गलत जगह दिमाग लगा रहे हैं। फिलहाल ट्रोल कैसे हुई ये पढ़िए…

लोगों ने कहा प्रियंका ने शाखा ज्वॉइन कर ली !

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि खाकी रंग का मतलब सीधा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है, जो दुनिया का सबसे बड़ा कथित गैर-राजनीतिक संगठन है। आरएसएस की ड्रेस भी ऐसी ही होती है, हालांकि आरएसएस वाले निकर की जगह फुल पैंट पहनने लग गए हैं।

एक ट्रोलर्स ने लिखा कि प्रियंका आरएसएस की मीटिंग से आ रही है, तो किसी ने उनकी तुलना निकर पहने केंद्रीय़ मंत्री गडकरी से कर दी। अब प्रियंका का ट्रोल होना तो आपके लिए आम खबर होगी पर इसी मौके पर आरएसएस के बारे में भी थोड़ा जान लेते हैं।

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से 27 सितंबर 1925 को दशहरे के दिन केशव बलराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की।

संघ के प्रथम सरसंघचालक हेडगेवार ने अपने घर पर 17 लोगों के साथ मिलकर संघ का गठन किया, नागपुर के अखाड़ों से निकला यह संगठन आज दुनिया भर में सबसे बड़ा संगठन है।

आरएसएस नाम कैसे पड़ा ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, इस नाम को तय करने से पहले कई दिनों तक मंथन चला। कई नाम सामने रखे गए। शुरूआती सदस्यों के बीच हर नाम के लिए बाकायदा वोटिंग हुई और वहीं से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम फाइनल किया गया।

कितना बड़ा संघ ?

आरएसएस यह दावा करता है कि संघ दुनिया के करीब 40 देशों में फैला हुआ है जहां एक करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। वहीं संघ परिवार में 80 से ज्यादा छोटे-मोटे संगठन और हैं। आंकड़ों में देखें तो संघ की 56 हजार 569 शाखाएं रोज पूरे देश भर में लगती हैं।

तीन बार लगा संघ पर बैन

संघ ने इतने सालों में जितने भी गैर राजनीतिक काम किए उतने ही विवाद भी इस नाम के साथ जुड़े। आपको बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में संघ के तार बताए गए थे जिसके लिए उस समय के गृहमंत्री सरदार पटेल ने संघ पर बैन लगा दिया था। हालांकि बाद में कोई ठोस सबूत ना मिलने और गैर-राजनीतिक तौर पर संगठन चलाने का वादा करने पर बैन हटा।

वहीं आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक संघ पर बैन लगा तो तीसरी बार 6 महीने के लिए संघ पर बैन लगा जब 1992 के दिसंबर में अयोध्या में बाबरी मस्जिद (विवादित ढ़ांचा) गिराई गई थी।

संघ ने अपनाया अपना अलग रास्ता

आरएसएस सालों पुराना संगठन है लेकिन भारत में हुए किसी भी ऐतिहासिक काम में संघ का कोई योगदान नहीं दिखाई देता है। गांधी की अगुवाई में चले आंदोलन हों या नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आंदोलन हों कहीं भी संघ की भागीदारी दिखाई नहीं देती है।

इसके अलावा ना ही कभी भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों से संघ ने कोई वास्ता रखा। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी आरएसएस पूरी तरह गायब रहा।

तिरंगे का करते हैं विरोध

आरएसएस सालों से कहता आ रहा है कि भगवा ध्वज को भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाया जाए। तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज बनाए जाने पर आरएसएस ने इसका खूब विरोध किया। काफी लंबे समय तक संघ ने अपनी शाखाओं में तिरंगा नहीं फहराया।

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