कन्हैया कुमार को नहीं मिला टिकट, क्या तेजस्वी यादव का डर बना टिकट में रोड़ा?

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कन्हैया कुमार इस लोकसभा चुनाव से सक्रिय राजनीति में एंट्री मारने की ​कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अभी तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। जेएनयू विवाद से देशभर के लोगों के निशाने पर रहे कन्हैया कुमार बिहार राज्य की बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन यहां से उतर पाना उनके लिए आसान नहीं रह गया है। बिहार में गठबंधन का पेंच करीब-करीब सुलझा माना जा रहा है लेकिन बेगूसराय और कन्हैया कुमार को लेकर सीपीआई गठबंधन से बाहर जा सकती है। बेगूसराय लोकसभा सीट को लेकर पेंच फंसा है। यहां गठबंधन के साथी चाह कर भी मामले का हल नहीं निकाल पा रहे हैं। आइये जानते हैं कन्हैया कुमार को बेगूसराय से क्यों नहीं मिल रहा टिकट और क्या है तेजस्वी यादव का डर?

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बेगूसराय सीट सीपीआई को देने को तैयार नहीं हैं तेजस्वी

राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, तेजस्वी यादव किसी भी हाल में राज्य की बेगूसराय सीट सीपीआई को देने को तैयार नहीं हो रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि तेजस्वी यादव को बेगूसराय सीट से नहीं, बल्कि कन्हैया कुमार से दिक्क़त है। इसके पीछे की राजनीति यह है कि तेजस्वी बिहार की राजनीति में सबसे युवा और उभरते हुए चेहरे हैं। ऐसे में वह बिल्कुल भी ऐसा नहीं चाहते हैं कि बिहार की राजनीति में कोई ऐसा दूसरा युवा चेहरा एंट्री मारे जो उनकी भविष्य की राजनीति के लिए संकट पैदा कर सकते हो। तेजस्वी को यह डर सता रहा है।

दोनों युवा चेहरे बिहार की राजनीति के लिए तैयार

तेजस्वी यादव जहां पिछले दो साल में बिहार की राजनीति के क्षितिज पर सबसे बड़े नेता के रूप में उभर रहे हैं। वहीं कन्हैया कुमार ने भी देश भर में एक युवा नेता की छवि इन्हीं सालों में बनाई है। ये दोनों ही बीजेपी के कट्टर विरोधी चेहरे हैं। संयोग से दोनों ही बिहार से हैं। अब तक ये साफ हो चुका है कि कन्हैया की राजनीतिक कर्मभूमि भी बिहार ही रहने वाली है। ऐसे में तेजस्वी अपने बराबर किसी दूसरे दल के नेता के उभार को अपनी मौजूदगी से और मजबूत नहीं कर सकते, यहीं डर तेजस्वी को खा रहा है। इसलिए वे कन्हैया को रोकने चाहते हैं।

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महागठबंधन ने बेगूसराय से रोकी कन्हैया की एंट्री

दरअसल, आज भले ही तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार दोनों ही बीजेपी विरोधी चेहरे के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। लेकिन बिहार की राजनीति में आने वाले वक़्त में दोनों की महत्वाकांक्षाएं एक दूसरे को असहज भी कर सकती हैं। ऐसे में साफ है कि तेजस्वी बिहार में गठबंधन तो चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर। तेजस्वी यादव अपने राजनीतिक सहयोगियों को जगह तो देने के लिए तैयार हैं, लेकिन अपने कद के बराबर किसी दूसरे नेता को तैयार नहीं होते देखना चाहते। उन्हें इस बात का डर है कि बिहार की राजनीति में आगे उनके लिए कोई चुनौती खड़ी करने वाला पैदा ना हो। फिलहाल के लिए तो कन्हैया कुमार की राजनीतिक एंट्री रूक गई है लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि वे इस बार चुनाव लड़ते हैं या नहीं।

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वहीं, इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं कि पप्पू यादव जिस तरह से राजद के अंदर पैठ बना रहे थे, वो पार्टी के नेतृत्व को खटक रहा था। कोई भी पार्टी अपने पसंद का नेतृत्व देखना चाहती है। कन्हैया के आने के बाद मामला ‘कन्हैया बनाम तेजस्वी’ का भी बन सकता था। राजनीति में यह भी देखा जाता है कि आप किसको साथ लेकर चल रहे हैं और आने वाले समय में उसका क्या परिणाम होगा। राजद के मन में यह भी बात होगी कि कन्हैया की छवि जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त प्रतिरोध की बनी है, उसके सामने तेजस्वी का क़द कहीं छोटा न पड़ जाए।

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