भारत गर्म लहरों का सामना कर पा रहा है या इससे विनाश के पिछले रिकॉर्ड भी टूट जाएंगे?

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गर्म हवाओं ने फिलहाल पूरे देश का बुरा हाल कर रखा है। गर्मी की वजह से कुछ ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनसे पता लगाया जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन कितना खतरनाक होता जा रहा है। आगरा से कोयम्बटूर जाने वाले चार पर्यटक ट्रेन में बैठे बैठे गर्मी की वजह से मर गए। बुंदेलखंड में पानी की कमी से मारा मारी देखने को मिली। कई शहरों में तापमान 50 डिग्री से भी ज्यादा ऊपर पहुंच गया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार पहले ही गर्मी ने इस बार 36 लोगों की जान ले ली है। इससे पहले 2015 में ऐसी गर्म लहरों का सामना करना पड़ा था तब इसमें 9 लोगों की जान गई थी।

भारत ने 1988 में सबसे लंबी गर्म लहरों का सामना किया था। साल 2019 13 जून तक ये रिकॉर्ड भी छू लेगा। इस साल, हीटवेव या गर्म लहरों ने 23 राज्यों को झुलसा दिया है। चक्रवात वायु गुरुवार को तटीय गुजरात पर होगा वहीं देश के बाकी हिस्सों में अभी भी उबाल जारी है।

वैज्ञानिकों का इस पर कहना है कि यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक चरम मौसम की घटनाओं और रिकॉर्ड-तोड़ने वाले तापमान का सामना हमें करना होगा। 2014 ग्लोबल तापमान रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल था। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल स्तर पर गर्मी से होने वाली मौतें साल 1991-2000 के बीच 6000 थीं जो साल 2001-2010 में बढ़कर 136000 हो चुकी हैं।

इस दशक में भी पारा अपने जानलेवा स्तर पर पहुंच चुका है। उत्तरी गोलार्ध में फैले 2010 के हीटवेव( गर्म लहरों) ने भारत में सैकड़ों लोगों की जान ले ली। 2015 में जब सड़कें धधकते सूरज के कारण पिघल गईं तो लगभग 2,400 लोगों की मौत हो गई। इस साल जनवरी में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2010 से अब तक 6,000 से अधिक लोग गर्मी से मर चुके हैं। बहरहाल ये आंकड़े असल में बढ़े ही होंगे।

इन आपदाओं के लिए सरकार की प्रतिक्रिया अहम होती है जो कि कहीं ना कहीं इसको लेकर सजग नहीं हो सकी। समस्या की शुरुआत परिभाषाओं से होती है। न तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और न ही आपदा प्रबंधन पर 2009 की राष्ट्रीय नीति प्राकृतिक आपदा के रूप में गर्मी की लहरों को पहचानता है और ना ही इसकी गंभीरता को समझता है।

इसके विपरीत सरकार ने नियमित रूप से गर्म लहरों के प्रकोप को नजरअंदाज किया। सरकार सिर्फ हीट स्ट्रोक और हीट वेव की वजह से मौतों का आंकड़ा रखती है लेकिन इनमें कई मामलों की ठीक से रिपोर्टिंग भी नहीं होती।

सरकार गर्मी की वजह से तनाव और उससे पैदा होने वाले घातक शारीरिक लक्षणों को भी अनदेखा करती है। कुछ बेहतर नीतियों को भी लागू किया गया है जैसे कि प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और सार्वजनिक स्वास्थ्य तैयारियों का विकास।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार साल 2010 एक तरह से विभिन्न देशों की सरकारों के लिए एक तरह का वेक अप कॉल था और 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर एक नई कार्य योजना तैयार की गई थी। इसने कई ऐसे क्षेत्रों की सही पहचान की जिन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता थी। इसमें बेहतर डेटा कलेक्शन, चेतावनी देना, सबसे ज्यादा प्रभावित जगहों पर नजर रखना, पब्लिक कूलिंग स्पेस लगाना जैसी चीजें शामिल थीं।

कुछ सर्वे के अनुसार हीटवेव या गर्म लहरों के कारण मौतें पिछले साल कुछ प्रभावी उपायों की बदौलत नीचे चली गईं जिसमें सार्वजनिक अभियान, सड़कों पर पानी डालना, पूरे दिन पार्क के गेट खुले रखना ताकि लोग वहां आराम कर सकें जैसी चीजें शामिल हैं लेकिन समस्या और भविष्यवाणियों के परिणाम को देखते हुए कि हालत बदतर ही होने वाली है और बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

गरीब और बेघर, जो बाहर काम करते हैं या सोते हैं, सबसे ज्यादा इन गर्म हवाओं से प्रभावित होते हैं। किसान, ट्रैफिक पुलिसकर्मी और कंस्ट्रक्शन मजदूर लगातार गर्मी के संपर्क में रहते हैं और व्यावसायिक स्वास्थ्य मानकों पर इनकी समीक्षा की जानी चाहिए। शहरों में जल निकायों और हरे भरे स्थानों को संरक्षित करने, गर्मी में शरण के लिए और बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की आवश्यकता है जो गर्मी का सामना कर सकते हैं। बेशक, समस्या के पैमाने को पहचानना एक अच्छी शुरुआत होगी।

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