गडकरी का यूरीन से यूरिया बनाने का आइडिया: प्रयोग और मुसीबतें!

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केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को नागपुर महानगर पालिका के मेयर इनोवेशन अवार्ड्स समारोह में युवा इनोवेटर्स को बताया कि यदि भारत अपने लोगों के मूत्र को स्टोर कर सकता है और यूरिया के निर्माण में इसका उपयोग कर सकता है तो उसे अब रासायनिक यौगिक आयात करने की आवश्यकता नहीं होगी।

उर्वरक बनाने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।  इसके बारे में गडकरी ने पहले भी कहा था। 2015 में उन्होंने कहा था कि वह अपने बगीचे में उपयोग के लिए 50 लीटर में मूत्र एकत्र करते हैं। उन्होंने कहा कि “मूत्र चिकित्सा” प्राप्त करने वाले पौधों ने “सादे पानी” की तुलना में बेहतर विकास दिखाया। और 2017 में मंत्री ने यूरिया का उत्पादन करने के लिए हर तहसील में मूत्र बैंक स्थापित करने का सुझाव दिया था।

रविवार को गडकरी ने इसी के बारे में दुबारा कहा है। गडकरी ने कहा कि मैंने हवाई अड्डों पर मूत्र के स्टोरेज के लिए कहा है। हम यूरिया का आयात करते हैं लेकिन अगर हम पूरे देश में मूत्र का स्टोरेज शुरू करते हैं तो हमें यूरिया आयात करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसमें इतनी क्षमता है और कुछ भी बर्बाद नहीं होगा।

भारत को यूरिया की जरूरत

भारत में सालाना लगभग 30 मिलियन टन यूरिया की खपत होती है जिसमें से 24 मिलियन टन का उत्पादन स्वदेशी तौर पर होता है और 6 मिलियन टन का आयात होता है। नवंबर 2017 में मन की बात संबोधन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक यूरिया की खपत में आधी कटौती करने का आह्वान किया था। भारत में यूरिया की कीमतें दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के पड़ोसी देशों और चीन के मुकाबले कम हैं।

मूत्र से यूरिया

दुनिया भर में, वैज्ञानिकों ने मूत्र से यूरिया के बनने और इसके नाइट्रोजन सामग्री के लिए उर्वरक के रूप में मूत्र के उपयोग का अध्ययन किया है। दक्षिण अफ्रीका में 2011 में, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वाज़ुलु-नटाल के पॉल्यूशन रिसर्च ग्रुप को 400,000 डॉलर का अनुदान देने की घोषणा की जिसमें एक टॉयलेट सिस्टम की खोज की गई जिसमें सेफली स्टोरेज और उसमें से जरूरी चीजों को बाहर निकाला जा सकता था।

परियोजना का एक हिस्सा यही था कि मूत्र और पानी को फील्टर किया जा सके और हाई क्वालिटी वाटर स्ट्रीम बनाई जा सके। जिसमें यूरीन स्ट्रीम में से यूरिया व अन्य लवणों को अलग किया जाता था। इस पर रिसर्च अभी जारी है।

1990 के दशक की शुरुआत में स्वीडन ने एक मूत्र पृथक्करण परियोजना शुरू की जिसके एक हिस्से के रूप में विशेष शौचालय और स्टोरेज टैंक लोगों के घरों में फिट किए गए थे और मूत्र स्थानीय रूप से उपयोग किया जाता था।

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मूत्र स्टोरेज शौचालय के पहले चरण में 1990 के दशक की शुरुआत में एकल घरों और ईकोविलेजेस को टारगेट किया गया था जो कि अपने सेनिटेशन सिस्टम के लिए जाने जाते थे। इन जगहों से यूरीन को दुबारा यूज किया जाता था और खेतों में इसका उपयोग किया जाता।

2000 और 2005 के बीच, इस परियोजना को नगरपालिका समर्थन की कमी के कारण पीछे हटना पड़ा। चौथे चरण में, नगरपालिका निकायों ने स्वच्छता नीतियों को अपनाया जिसने पुन: उपयोग को प्रोत्साहित किया।

अनुमानों के मुताबिक, 2006 में, स्वीडन में घरों में चीनी मिटटी के 10,000 से अधिक यूरीन डायवर्जन टॉयलेट लगाए गए थे साथ ही कुछ 15 बड़े सिस्टम भी थे।

भारत में यह अनिश्चित

हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि यूरिया को मूत्र से इकट्ठा करने, भंडारण, परिवहन और अलग करने की प्रक्रिया मुसीबतों से भरी है।

सबसे पहले, हमें अपने टॉयलेट सिस्टम को पूरी तरह से बदलना होगा जैसा कि स्वीडन ने किया था और विशेष शौचालय स्थापित करना होगा जहां मूत्र और ठोस अपशिष्ट को अलग-अलग स्टोर किया जा सके। विशेष भूमिगत टैंक भी स्थापित करने होंगे। यूरिया को कई रासायनिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके मूत्र से निकाला जा सकता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा कि समस्या बढ़ रही है और इस परियोजना को संभव बनाया जा रहा है।

रविवार को, गडकरी ने शिकायत की कि अन्य लोग मेरेा साथ और सहयोग नहीं करते हैं क्योंकि मेरे सभी विचार शानदार हैं। यहां तक कि नगर निगम भी मदद नहीं करेगा क्योंकि सरकार में, लोगों को ऐसे (निमिष) बैल की तरह प्रशिक्षित किया जाता है जो बस एक रट में चलते हैं। इधर-उधर नहीं देखाते।

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