गुर्जर आरक्षण बिल की हार्डकॉपी पढ़ने के बाद ही समाप्त होगा आंदोलन, जानें आंदोलन की पूरी कहानी

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आरक्षण बड़ी उलझन बना हुआ है भारत में। पर उन लोगों के लिए सही भी है जो समाज की मुख्यधारा में पिछड़े हुए हैं। 70 साल से भी अधिक समय हो गये देश को आरक्षण दिए, कभी चिंतन नहीं किया कि आने वाले समय में यह कितनी उलझनें पैदा करेगा। कभी मंथन नहीं किया कि अब इस आगे कैसे और किस आधार पर लागू किया जाए?

हां उसी का नतीजा है राजस्थान में चल रहा गुर्जर आरक्षण आंदोलन। एक बार निष्पक्ष होकर सोचें कि क्या कारण है जो उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर रहा है। यही एकमात्र जाति नहीं है जो ऐसा कर रही है। समय-समय पर विभिन्न जातियों ने आरक्षण को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलन किए हैं। इनमें प्रमुख हैं ओबीसी में आरक्षण की मांग को लेकर जाटों ने हरियाणा में कोहराम मचाया, वहीं गुजरात राज्य में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार ने आंदोलन किया। ये सब कहीं न कहीं आरक्षण पर मंथन की ओर इशारा कर रहे हैं।

गुर्जर आरक्षण आंदोलन इस वर्ष 8 फरवरी से शुरू हुआ और अब भी जारी है। इस बार गुर्जरों ने जयपुर-सवाईमाधोपुर रेलवे ट्रैक पर चौथ का बरवाड़ा के समीप कब्जा किया जिससे कई रेलें प्रभावति हुई और लोगों को भी काफी परेशानी हुईं।

13 फरवरी को राज्य सरकार ने गुर्जर सहित पांच जातियों के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया। अब प्रदेश में कुल आरक्षण 54 प्रतिशत हो गया है। राज्यपाल से मंजूरी के बाद इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई।

बिल की कॉपी का इंतजार में जारी है आंदोलन

गुर्जर आंदोलन अब समाप्ति की ओर है क्योंकि सरकार ने आरक्षण बिल पास कर दिया है। जिसकी हार्डकॉपी के इंतजार में आंदोलन जारी था। लोकसभा चुनाव लड़ चुके किरोड़ी सिंह बैंसला ने कहा, जब तक हम बिल का अध्ययन नहीं कर लेते ट्रैक नहीं छोड़ेंगे।

ये पांच जातियां हैं शामिल

  1. गुर्जर, गूजर
  2. बंजारा, बालदिया, लबाना
  3. गाडिया लोहार, गाडोलिया
  4. राइका, रैबारी, देबासी
  5. गडरिया, गाडरी, गायरी

संशोधन विधेयक में बताया गया कि हाल में संसद ने आर्थिक कमजोर वर्ग के लिए इंद्रा साहनी मामले में अधिकतम 50 फीसदी की सीमा बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन किया है।

गुर्जर आरक्षण आंदोलन का इतिहास

राजस्थान के इतिहास में आरक्षण को लेकर हुए गुर्जर आंदोलन ज्यादा पुराना नहीं है पर यह आंदोलन अपनी मांग पूरी न होने पर सुलगता रहता है। यह एक बार फिर चर्चा में है तो आइए जानते हैं इसका इतिहास —

इस आंदोलन के इतिहास में झांके तो हम पाएंगे कि यह आंदोलन 13 साल पहले शुरू हुआ और 13 फरवरी 2019 को आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित होने के बाद भी जारी है।

इस आंदोलन की शुरूआत वर्ष 2006 में गुर्जर समुदाय को एसटी में शामिल करने की मांग पर हुई थी। तब से लेकर अब तक राजस्थान में आरक्षण की आग बुझने का नाम ही नहीं ले रही है।
अब तक सरकार ने गुर्जरों को आरक्षण देने की कोशिश तो की, लेकिन मामला कोर्ट में अटकता चला गया।

वर्ष 2006 में गुर्जर जाति को एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर पहली बार आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया और पटरियां तक उखाड़ी गईं। आंदोलन का शांत करने के लिए भाजपा सरकार ने कमेटी बनाई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

इसके बाद यह आंदोलन 21 मई 2007 को पीपलखेड़ा पाटोल में फिर शुरू हुआ। जिसमें पुलिस फायरिंग हुई और 28 लोगों की जाने गईं। मामला बढ़ने के बाद भाजपा सरकार से समझौता हुआ और चौपड़ा कमेटी बनाई गई लेकिन कमेटी ने गुर्जरों को एसटी आरक्षण के दर्जें के योग्य नहीं माना।

23 मई 2008 को तीसरी बार आरक्षण के लिए आंदोलन हुआ। पीलुकापुरा ट्रेक पर बयाना मे रेले रोको आंदोलन की फिर से शुरूआत हुई। जिसमें एक बार फिर से पुलिस फायरिंग में 7 लोग मारे गए। इसके बाद गुर्जरों द्वारा सिंकदरा में हाईवे जाम किया गया, जिसमें 23 लोगों की जाने गईं। इसके बाद भाजपा सरकार गुर्जरों के लिए एसबीसी आरक्षण लेकर आई, जिसमें गुर्जर समाज को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया, लेकिन इस बार मामला हाईकोर्ट में अटक गया।

इसके बाद एक बार फिर 24 दिसंबर 2010 को पीलुकापुरा में रेल रोक कर आंदोलन को तूल दिया गया। इस बार राज्य में कांग्रेस सरकार से 5 फीसदी आरक्षण को लेकर समझौता हुआ। लेकिन मामला अभी भी कोर्ट में ही अटका हुआ था, इस बार भी यही पेंच फंसा हुआ था कि आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से ऊपर जा रहा है।

कोर्ट की रोक के पांच साल बाद 21 मई 2015 को पीलुकापुरा में आंदोलन हुआ। जिसके बाद भाजपा सरकार ने गुर्जर समेत 5 जातियों को 5 प्रतिशत एसबीसी आरक्षण दिया, जिसके बाद एक बार फिर से हाईकोर्ट ने ये कहते हुए रोक लगा दी कि आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बाहर चला गया पर इस बार गुर्जरों को 1 फीसदी आरक्षण का लाभ मिला। पर इससे संतुष्ट न होने वाले गुर्जरों ने एक बार फिर से आरक्षण के लिए आंदोलन जारी है।

13 साल में गुर्जर आरक्षण आंदोलन में 754 केस दर्ज हुए। इनमें से 105 कोर्ट में हैं। 35 मामलों की पुलिस जांच कर रही है। 614 केसों में या तो एफआईआर लग गई या केस वापस लिए गए। अभी चल रहे आंदोलन में अब तक तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया गया है। इस आंदोलन में 72 गुर्जरों की जान जा चुकी है।

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