मोदी को जिताने की अपील कर राज्यपाल कल्याण सिंह फंसे, चुनाव आयोग कसेगा शिकंजा

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हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर पद पर बैठे व्यक्ति को कुछ संवैधानिक नियम कायदे बनाए गए हैं, जिनके अंदर रहकर उन्हें पद की गरिमा बनाए रखनी होती है। आज संवैधानिक पद का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह की वजह से देश के चुनाव आयोग कायदे-कानून वाले रजिस्टर को फिर खोला है।

जी हां, अपने पद की मर्यादा का ख्याल भूलकर कल्याण सिंह चुनावी मौसम में कुछ ऐसा कह गए कि उन्होंने चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन कर दिया। चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए आपत्तिजनक माना और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से इस बारे में फैसला लेने का आग्रह किया है।

क्या कह गए राजस्थान के राज्यपाल ?

बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद अपनी राजनीतिक पहचान बनाने वाले कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के जूझारू काडर माने जाते थे। फिलहाल वो राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर हैं लेकिन लगता है उनकी रगों में पार्टी के प्रति कर्तव्य निष्ठा अभी भी बह रही है।

अलीगढ़ में बोलते हुएक कल्याण सिंह ने कहा ‘हम सभी लोग बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और यह चाहते हैं कि बीजेपी चुनाव जीते। सब यही चाहते हैं कि केंद्र में मोदी जी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनें। मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश और समाज के लिए आवश्यक है।’

कल्याण सिंह ने ये बात अपने अलीगढ़ आवास पर गुस्साए भाजपा कार्यकर्ताओं को समझाते हुए कही। दरअसल अलीगढ़ के मौजूदा सांसद सतीश गौतम को दुबारा टिकट देने से भाजपा के कार्यकर्ता नाराज हैं।

इससे पहले ऐसा कभी हुआ है ?

इतिहास में झांक कर देखें तो 90 के दशक के दौरान हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद पर भी चुनाव आचार संहिता तोड़ने के आरोप तय हुए थे जिसके बाद उन्हें अपना पद गंवाना पड़ा। राज्यपाल गुलशेर अहमद ने पद पर रहते हुए अपने बेटे सईद अहमद के साथ चुनाव प्रचार में शामिल हुए थे।

संविधान में राज्यपाल की स्थिति क्या है?

किसी भी राज्य की सरकार संविधान के अनुच्छेद 156 के तहत राज्यपाल की नियुक्ति करती है। हमारे संविधान में राज्यपाल संवैधानिक नियमों का पालन करने का बाध्य तो नहीं है लेकिन उनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही संविधान के प्रति ही है।

साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कुछ लोगों के राजनीतिक बैकग्राउंड से आने के कारण स्वाभाविक है उनका रूख पार्टी की तरफ रहता है लेकिन राज्यपाल बनने के बाद उनकी जवाबदेही संविधान के प्रति तय हो जाती है। उनका दायित्व है कि वो संविधान की हमेशा रक्षा करें।

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