स्कूल के दिनों से ही मेधावी छात्र रहे थे देश के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा

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भारत के नौवें राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की आज 19 अगस्त को 104वीं जयंती है। देश के राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997 के बीच अपना कार्यकाल पूरा किया था। इससे पहले उन्होंने भारत के आठवें उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था। शंकर दयाल वर्ष 1952 से 1956 के बीच भोपाल के मध्य प्रदेश में शामिल होने तक भोपाल के पहले मुख्यमंत्री रहे थे।

शर्मा ने वर्ष 1956 से 1967 तक मध्य प्रदेश सरकार में शिक्षा, कानून, लोक निर्माण, उद्योग और वाणिज्य, राष्ट्रीय संसाधन और राजस्व जैसे विभागों के कैबिनेट मंत्री के तौर पर काम किया था। डाॅ. शंकर दयाल शर्मा वर्ष 1972 से 1974 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इसके अलावा वे तीन राज्यों आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल भी रहे थे। इस खास मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में…

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हॉवर्ड लॉ कॉलेज द्वारा फेलोशिप से सम्मानित किए गए

पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त, 1918 को भोपाल रियासत में हुआ था। उन्होंने सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा कॉलेज, पंजाब विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। शर्मा फिट्जविलियम कॉलेज के एक मेधावी लॉ छात्र रहे थे। उनको लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा समाज सेवा के लिए चक्रवर्ती स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में काम किया था।

इस दौरान वे हॉवर्ड लॉ कॉलेज द्वारा फेलोशिप से सम्मानित किए गए और उन्हें कैम्ब्रिज के फिट्जविलियम कॉलेज के ऑनरेरी बेनचर और लिंकन इन के मास्टर व मानद फेलो चुना गया। कैम्ब्रिज में रहते हुए शर्मा टैगोर सोसायटी और कैम्ब्रिज मजिलिस के कोषाध्यक्ष थे। शर्मा ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में भी भाग लिया। बाद में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता लीं।

प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के लिए जेल जाना पड़ा

राजनीतिक जीवन के दौरान बतौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सक्रिय सदस्य डाॅ. शर्मा ने भोपाल के नवाब के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया, जिन्होंने रियासत को बनाए रखने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्हें वर्ष 1948 में नवाब के खिलाफ एक सार्वजनिक आंदोलन का नेतृत्व करने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था। उन्होंने सार्वजनिक बैठकों के प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के लिए भी जेल जाना पड़ा था।

बाद में उन्हें सार्वजनिक दबाव में छोड़ दिया गया और नवाब को 30 अप्रैल, 1949 को भारतीय संघ के साथ विलय के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। महाराष्ट्र और पंजाब में विभिन्न राजनीतिक पदों को प्राप्त करने के बाद, उन्हें 5 साल के लिए उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया।

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वाइस प्रेसीडेंट बनने के बाद बने प्रेसीडेंट

शंकर दयाल शर्मा ने 3 सितंबर, 1987 से 25 जुलाई वर्ष 1992 तक उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। इसके बाद डाॅ. शर्मा देश के 9वें राष्ट्रपति के रूप में चुने गए। उन्होंने 25 जुलाई, 1992 से 25 जुलाई, 1997 तक इस पद को सुशोभित किया। जीवन के अंतिम पांच वर्षों में उनकी तबियत काफी खराब रहती थीं। 26 दिसंबर, 1999 को उन्हें दिल का बड़ा दौरा पड़ा। उन्हें नई दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस लीं।

डाॅ. शर्मा की बेटी और दामाद को आतंकवादियों ने मारा

शंकर दयाल शर्मा की एक बेटी गीतांजलि और उनके पति ललित माकन को आतंकवादियों ने मार दिया था। ललित माकन युवा कांग्रेस नेता और साउथ दिल्ली सीट से सांसद भी थे। उन पर सिक्ख दंगों के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप लगा था। उन्हें आतंकवादियों ने मार दिया था। इसके बाद वर्ष 1985 में तीनों आतंकियों को गोलियों से छलनी कर बदला लिया गया।

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