बॉलीवुड की ‘जुबली गर्ल’ बनने तक कुछ इस तरह रहा आशा पारेख का फिल्मी सफर

Views : 6712  |  0 minutes read

फिल्मी पर्दे पर अपनी रुमानी अदाओं का जादू चलाने वाली आशा पारेख गुजरे जमाने की मशहूर अदाकाराओं में से एक थीं। अपने सिने करियर में आशा ने एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दी हैं। अपने दमदार अभिनय से आशा कई दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया। आशा पारेख 2 अक्टूबर को अपना 76वां जन्मदिन मना रहीं हैं। उनके जन्मदिन के मौके पर आइए एक नजर डालते उनकी जिंदगी से जुड़े कई दिलचस्प किस्सों पर।

2 अक्टूबर 1942 को आशा का जन्म मुंबई के एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ। आशा के पिता प्रनालाल पारेख हिंदू और माता सुधा पारेख मुसलमान थी। आशा अपने माता-पिता की इकलौती संतान और बेहद लाड़ली थी। अभिनेत्री होने के साथ साथ आशा एक बहुत अच्छी क्लासिकल डांसर भी थी। मां आशा को एक बहुत अच्छी डांसर बनाना चाहती थी। जिसके लिए उन्हें बचपन से ही कई बड़े-बड़े डांसरो के यहां डांस की तालीम हासिल करने भेजा गया।

फिल्मी सफर की शुरुआत

आशा पारेख ने एक्टिंग की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में साल 1952 में आई फिल्म ‘आसमान’ से की। आशा ने बतौर एक्ट्रेस साल 1959 में आई निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म ‘दिल देके देखो’ से बॉलीवुड में कदम रखा। फिल्म को मिली जबरदस्त कामयाबी ने आशा को फिल्म इंडस्ट्री में एक हद तक पहचान दिलाई। एक बार फिर साल 1960 में आशा पारेख नासिर हुसैन की फिल्म ‘जब प्यार किसी से होता है’ में नजर आईँ। यह फिल्म आशा के सिने करियर में मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म को मिली जबरदस्त सफलता ने आशा को बॉलीवुड में बतौर सफल अभिनेत्री के रूप में पहचाने जाने लगा।

आशा पारेख की बेहतरीन फिल्में

आशा ने तकरीबन 3 दशकों तक दर्शकों का मनोरंजन किया। इस दौरान आशा ने लगभग 80 से ज्यादा फिल्में बॉलीवुड को दी हैं। जिनमें ‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘बहारो के सपने’, ‘प्यार का मौसम’, ‘कारवां’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘कटी पतंग’, ‘दो बदन’, ‘आये दिन बहार के’, ‘उपकार’, ‘शिकार’, ‘कन्यादान’, ‘साजन’, ‘चिराग’, ‘आन मिलो सजना’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, जैसी फिल्में शामिल हैं। उनकी फिल्मों को मिली जबरदस्त कामयाबी से आशा हिंदी सिनेमा में जुबली गर्ल के नाम से पहचाने जानें लगी।

छोटे पर्दे पर भी चलाया अभिनय का जादू

बढ़ती उम्र के कारण आशा ने धीरे-धीरे फिल्मों से दूरी बढ़ा ली। अभिनय के अलावा आशा ने निर्देशन की दुनिया में भी कदम रखा। आशा ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी आकृति की शुरुआत की। जिसके बैनर तले ‘पलाश के फूल’, ‘बाजे पायल’, ‘कोरा कागज’ और ‘दाल में काला’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिक बनाए।

सेंसर बोर्ड की रहीं अध्यक्ष

आशा पारेख भारतीय सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष भी रहीं। आशा भारतीय सेंसर बोर्ड की पहली अध्यक्ष बनी। इस दौरान उन्होंने कई ऐसी फिल्मों की रिलीज पर रोक लगाई जो साफ–सुथरी नहीं थी। शेखर कपूर की फिल्म ‘एलिजाबेथ’ भी बैन की गई फिल्मों में से एक हैं। आशा सिने आर्टिस्ट एसोसियेशन की अध्यक्ष की भी रहीं। उन्होंने साल 1994 से 2000 तक इस पद के लिए काम किया। आशा ने जिंदगी में कभी शादी नहीं की। फिल्म इंडस्ट्री में आशा के बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें साल 1992 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

खलीद मोहम्मद ने आशा पारेख की जिंदगी पर ऑटोबायोग्राफी लिखी है। जिसे साल 2017 में अभिनेता सलमान खान ने लॉन्च किया था।

COMMENT