क्रांतिकारी अर्जुनलाल सेठी ने तैयार की थी लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की रूपरेखा

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राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों में जागृति लाने वाले व अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले क्रांतिकारी अर्जुनलाल सेठी की आज 23 दिसंबर को 81वीं पुण्यतिथि है। अर्जुनलाल सेठी एक लेखक, कवि, शिक्षक, क्रांतिकारी और राजनीति के प्रकाण्ड पंडित थे। उन्हें अनेक धर्मों और भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए जिलाधीश के पद पर राज्य की नौकरी को अस्वीकार कर दिया था। सेठी ने लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की रूपरेखा भी तैयार की थी। इस मौके पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…

अर्जुनलाल सेठी का जीवन परिचय

अर्जुनलाल सेठी का जन्म 9 सितम्बर, 1880 को राजस्थान की राजधानी जयपुर के जैन परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जवाहरलाल सेठी था। उन्होंने वर्ष 1902 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा फारसी में उत्तीर्ण की। वह अंग्रेजी, फारसी, अरबी, संस्कृत, पाली और जैन दर्शन के बहुत अच्छे ज्ञाता थे। इसके बाद सेठीजी चौमू (जयपुर) के ठाकुर देवीसिंह जी के निजी सचिव रहे। उन्होंने जिलाधीश के पद को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ‘मैं राज्य की नौकरी करूंगा तो अंग्रेजों को भारत से बाहर कौन निकालेगा।’

उन्होंने वर्ष 1905 में जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की। शिक्षक पद पर कार्य करते हुए उन्होंने वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध करते हुए स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया। वर्ष 1907 में जैन शिक्षा सोसाइटी नामक विद्यालय की अजमेर में स्थापना की, जो बाद में वर्ष 1908 में जैन वर्धमान पाठशाला के नाम से जयपुर स्थानांतरित कर दिया गया। इसका उद्देश्य राज्य के युवकों को क्रांतिकारी प्रशिक्षण देना था।

लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की रूपरेखा तैयार की

राजस्थान में सशस्त्र क्रांति के कर्णधार सेठी जी ने वर्ष 1907 में सूरत कांग्रेस में भाग लिया था। उनका संपर्क रासबिहारी बोस, शचीन्द्र नाथ सान्याल और अमीरचंद से हुआ। जो देश में सशस्त्र क्रांति करना चाहते थे। उन्होंने ही 12 दिसंबर, 1912 को दिल्ली में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग के जूलूस पर बम फेंकने की योजना की रूपरेखा तैयार की थी। इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले क्रांतिकारी प्रतापसिंह और जोरावरसिंह बारहठ उनकी ही पाठशाला में प्रशिक्षित किए गए।

माना जाता है कि इस बम कांड में बम क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने फेंका था, लेकिन बम जोरावर सिंह बारहठ ने बुर्का ओढ़कर चांदनी चौक में स्थित मारवाड़ी लाइब्रेरी से फेंका था। इस बम कांड के दौरान हुई गिरफ्तारियों में राजस्थान के प्रमुख क्रांतिकारी बालमुकुंद, मोतीचंद और विष्णु दत्त भी शामिल थे। इस मुकदमे के मुखबिर अमीरचंद ने अपनी गवाही देते समय यह रहस्य उद्घाटन किया कि षड्यंत्र की योजना अर्जुन लाल सेठी के द्वारा तैयार की गई थी। शासन विरोधी प्रचार तथा हत्या के आरोप में सेठी को गिरफ्तार कर दिया गया। किंतु उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया, मगर उन पर मुकदमा चलता रहा।

महंत हत्याकांड में सबूत न होने पर भी दी गई सजा

क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन की आवश्यकता की वजह से अर्जुन लाल सेठी ने मुग़लसराय स्थित एक धनी महंत की हत्या कर वहां से धन प्राप्त करने की योजना बनाई। सेठी ने वर्धमान पाठशाला के शिक्षक विष्णु दत्त के नेतृत्व में 4 विद्यार्थियों को बनारस भेजा। इस क्रांतिकारी दल ने 20 मार्च, 1913 को महंत और उसके नौकर की हत्या कर दी, लेकिन दुर्भाग्य से उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। हत्याकांड में में शामिल सभी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चला। उनमें से एक छात्र मोतीचंद को फांसी दे दी गई और विष्णु दत्त को आजीवन कारावास की सजा दी गई।

सेठी को बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखा गया

अर्जुन लाल सेठी के खिलाफ इस हत्याकांड के कोई सबूत नहीं मिले। उन्हें सजा तो नहीं मिली, लेकिन बिना मुकदमा चलाए सेठी को जेल में बंद रखा गया। बाद में 5 अगस्त, 1914 में जयपुर के महाराज के आदेश पर उन्हें पांच साल की सजा दी गई। इस नजरबंदी का विरोध होने पर उन्हें जयपुर जेल से मद्रास प्रेसीडेन्सी के अधीन वैलूर जेल में भेज दिया गया। इस जेल में उन्होंने अंग्रेज सरकार का कैदियों के साथ दुर्व्यवहार का विरोध किया और अनशन किया। उन्हें बाद में वर्ष 1920 में रिहा कर दिया गया । सेठीजी ने अजमेर को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया।

उन्होंने वर्ष 1921 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अजमेर में हिंदू-मुस्लिम एकता और शराब के ठेकों पर धरने दिए। उन्होंने वर्ष 1922-23 में राजस्थान में अजमेर-मेरवाड़ा प्रान्तीय कांग्रेस की बागडोर संभाली। अर्जुन लाल सेठी ने शूद्र मुक्ति, स्त्री मुक्ति और महेंद्र कुमार नामक पुस्तकें लिखी।

क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी का निधन

23 दिसंबर, 1941 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उन्हें जलाया नहीं जाए, बल्कि दफनाया जाए।

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