क़ानून के मुताबिक़ इन किताबों को अपने पास रखना भी अपराध है!

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किताबों को दुनिया में सबसे अच्छी दोस्त माना जाता है। कहा जाता है कि एक जीवन में सब-कुछ अनुभव करना आसान नहीं है, लेकिन जिसकी किताबों से दोस्ती है वह कुछ विषयों पर बिना अनुभव के भी महत्वपूर्ण जानकारी का ज्ञाता होता है। क्योंकि अधिकांश किताबें किसी के अनुभव का प्रिंटेड रूप ही होती है। इसलिए किताबों को ज्ञान का अनमोल ख़जाना भी कहा जाता है। किसी लेखक की सबसे बेहतरीन अभिव्यक्ति उसकी किताबों को माना जाता है, लेकिन कई ऐसी किताबें भी लिख दी जाती हैं जो समाज के लिए नुकसानदायक होती हैं, जिसके चलते उन पर प्रतिबंध तक लगाना पड़ता है। कई बार ऐसी किताबों को अपने पास रखना भी अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए सजा का प्रावधान किया गया है।

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लगभग हर देश में कुछ किताबें होती हैं बैन

अगर बात करें किताबों पर प्रतिबंध की तो यह सिर्फ़ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के लगभग हर देश में होता है। इनदिनों रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय की किताब ‘वॉर एंड पीस’ चर्चा में है। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी वेरनॉन गोंजाल्विस की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट में इस किताब का जिक्र किया गया। सवाल यह है कि आखिर किताबों पर बैन क्यों लगाया जाता है? भारत में किताबों पर बैन लगाने का कानून क्या है? क्या किसी किताब को अपने पास रखना भी अपराध माना जाता है? इन सब बातों का जवाब हम नीचे जानेंगे।

कई किताबों को पास रखना, बेचना या बांटना भी जुर्म

कानून जानकारों के अनुसार, जिन किताबों से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को किसी भी तरह का ख़तरा पैदा हो या किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती हो तो ऐसी किताबों पर सरकार प्रतिबंध लगाने का अधिकार रखती है।सरकार हिंसा को भड़काने वाली, जातीय भेदभाव को बढ़ावा देने वाली, कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने वाली और राजद्रोह को उकसाने वाली किताबों पर सरकार बैन लगा सकती है। यहां तक कि कई किताबों को अपने पास रखना, बेचना या किसी को बांटना भी अपराध की श्रेणी में आता है।

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भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 292 के तहत ऐसी अश्लील किताबें रखने पर दो साल की सज़ा और जुर्माना का प्रावधान किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 95 के तहत पुलिस को बैन किताबों को जब्त करने का भी अधिकार दिया गया है। किताब लिखना और उनको बांटना संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है। हालांकि इस अधिकार पर कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में एक सीमा तक प्रतिबंध लगाया जा सकता है। कानून के नियम अनुसार किसी को अपमानित करने या नीचा दिखाने के लिए भी कोई पुस्तक या लेख नहीं लिखा जा सकता है। किसी को अपने अधिकार की आड़ में दूसरे के अधिकार का हनन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

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अब तक ये किताबें रही हैं भारत में प्रतिबंधित

अगर भारत में किताबों पर प्रतिबंध की बात करें तो यहां वर्षों पहले से कई किताबों को बैन किया गया है। इनमें सलमान रुश्दी की ‘द सैटनिक वर्सेज’, ‘द हिंदूजः एन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री’, माइकल ब्रीचर की किताब ‘नेहरूः अ पॉलिटिकल बॉयोग्राफी’, अमेरिकी लेखक स्टैनले वोलपर्ट की किताब ‘नाइन ऑवर्स टू रामा’, वीएस नॉयपॉल की किताब ‘एन एरिया ऑफ डॉर्कनेस’, आर्थर कोस्टलर की किताब ‘द लोटस एंड द रोबोट’ और अमरीकी हिस्ट्रीशियन कैथरीन मायो की किताब ‘द फेस ऑफ मदर इंडिया’ समेत ऐसी ही कई अन्य किताबें हैं, जो भारत में अभी तक प्रतिबंधित है।

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