लालू की RJD और बेटे तेजस्वी पर क्यों मंडरा रहे हैं काले बादल !

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नेताओं के बेटे राजनीतिक पिच पर पिता के आउट ना होने तक ही पारी संभाल पाते हैं, हां कुछ अपवादों को छोड़कर। लेकिन नेता एक बार जनता के बीच से जैसे ही गायब होता है, उनके बेटों को राजनीतिक बिसात बिछाने में और अधिक मशक्कत करनी पड़ती है।

अब बिहार में लालू प्रसाद यादव की ही बात करें, तो एक समय पूरे बिहार पर राज करने वाले लालू के जेल-जमानती चक्करों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का भविष्य आज अधर में लटक गया है।

छोटे बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में कमान है, जो इस महीने की शुरुआत में बिहार विधानसभा से गायब थे, इससे पहले कुछ हफ्तों के लिए वो छुट्टी पर थे, जबकि तेजस्वी ही बिहार में विपक्ष के नेता हैं।

लालू की पार्टी का भविष्य अधर में !

2019 में लोकसभा में राजद अपना खाता भी नहीं खोल पाई। 1997 में राजद के बनने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है। 2014 के आम चुनावों में भी पार्टी ने चार सीटों पर ही जीत हासिल की थी।

243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में राजद के पास 79 सीटें हैं। नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) की 73 सीटें और भारतीय जनता पार्टी की 54 सीटों को मिलाकर गठबंधन की सरकार चला रही है।

राजद की नाव पर कभी भी पत्थरबाजी हो सकती है, क्योंकि पिछले कुछ समय से पार्टी में असंतोष पनप रहा है, पर हां अभी पूरी तरह से किसी ने बगावत नहीं की है।

उधर तेजस्वी के बड़े भाई और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप भी अपने अलग ही रंग में रहते हैं, उनकी काफी समय से एक ही शिकायत है कि पार्टी में उनकी कोई सुनता नहीं है। लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने लालू राबड़ी मोर्चा भी बनाया था।

हालाँकि उनके पास राजद के किसी विधायक का समर्थन नहीं है, फिर भी बिहार युवाओं में तेजू भईया नाम से वो फेमस है। भाई का साथ ना होना, पिता का जेल काटना, इन सारी बातों से साफ है कि तेजस्वी यादव और राजद के क्षितिज पर काले बादल मंडरा रहे हैं।

नीतीश कोई भी चाल चल सकते हैं !

बीते 21 जुलाई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद नेता और पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी से मुलाकात की। लालू प्रसाद के वफादार रहे सिद्दीकी को काफी राजद विधायकों का समर्थन हासिल है। इससे क्या अंदाजा लगाया जाए कि क्या नीतीश कुमार राजद को तोड़ना चाहते हैं या वह भाजपा छोड़ने का मन बना चुके हैं, जिसके लिए पहले से ही राजद का समर्थन तैयार करने में जुटे हैं।

हालांकि, तेजस्वी यादव के लिए यह खतरे की घंटी ही है। ऐसे समय में उन्हें पार्टी का फिर से कायाकल्प करने की जरूरत है, क्योंकि बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव भी होने है।

तेजस्वी को पिच पर फिर से वापसी करनी होगी !

तेजस्वी को तेजस्वी यादव बनकर वापस अपनी जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। यह उनके राजनीतिक करियर के लिए सही समय है। बिहार में बाढ़ की स्थिति बिगड़ती जा रही है। 100 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। सरकार बचाव और राहत के कामों से लड़ रही है।

वहीं इसी साल 150 से अधिक बच्चों की मौत एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हुई है, ऐसे में राजद को विपक्ष की लड़ाई को सीधे सरकारी खेमे में ले जाना चाहिए था, किसी राजद नेता को पीड़ित परिवारों से मिलने जाना था।

आसान और राजनीतिक शब्दों में कहें मौके की नजाकत का फायदा जिसने नहीं उठाया वो बाद में बहुत पछताया। फिर सवाल तो उठेगा ही कि उस समय तेजस्वी यादव कहां थे? सरकारी अस्पतालों की हालत खराब है, डॉक्टरों की कमी है। वहीं मनरेगा के तहत बिहार 140 मिलियन टन के लक्ष्य से अभी बहुत दूर है।

कोई भी समझदार विपक्ष बिहार को बदलाव के लिए उपजाऊ जमीन दे सकता है। इन सब के बावजूद एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर भी है। ऐसे में तेजस्वी यादव को अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दिन-रात एक कर देने चाहिए।

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