केसरी : जब 21 सिखों ने 10,000 पठानों के छुड़ा दिए पसीने, उस फिल्म का ट्रेलर आ गया

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अक्षय कुमार और करण जौहर ने फिल्म “केसरी” के लिए हाथ मिलाया है, जो शायद धर्मा प्रोडक्शन की अब तक की सबसे बड़ी फिल्म होगी। अक्षय कुमार करण जौहर के साथ फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं। केसरी फिल्म सारागढ़ी के प्रसिद्ध युद्ध पर आधारित है जिसे अनुराग सिंह डायरेक्ट कर रहे हैं। फिल्म को होली 2019 में रिलीज़ किया जाना है। ये तो थी वो सब जानकारी जो आपको हर फिल्म स्टोरी के इंट्रो में मिलती है।

अब आइए जानते हैं कुछ रोचक बातें कि क्यों रखा गया फिल्म का यह नाम, किस पर आधारित है वगैरह-वगैरह। हम फिल्म के बारे में 5 बातें आपको बताने जा रहे हैं जो आपकी फिल्म देखने की दिलचस्पी बढ़ा सकती है।

# सारागढ़ी की लड़ाई जिस पर फिल्म केसरी बनाई जा रही है जिसे इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा युद्ध बताया जाता है। जिसमें 21 सिखों की एक टुकड़ी 10000 अफगान सैनिकों से भिड़ गई थी। जी हां, ऐसा ही हुआ था और इसमें कोई फिक्शन नहीं है।

# सारागढ़ी की लड़ाई 12 सितंबर, 1897 को उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के तिराह क्षेत्र के सारागढ़ी में हुई थी। थोड़ा सारागढ़ी को भी जान लो। सारागढ़ी हिंदुकुश पर्वतमाला पर एक छोटा सा गांव है और हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत है। हिंदुकुश उत्तरी पाकिस्तान से मध्य अफगानिस्तान को भी साथ में जोड़ता है।

वर्तमान में यह इलाका पाकिस्तान में आता है। 21 सिख ब्रिटिश भारत रेजिमेंट का हिस्सा थे, जो अफगानिस्तान के बॉर्डर वाले इलाकों पर लॉकहार्ट और गुलिस्तान के किलों की रक्षा में तैनात थे। ये किले हमेशा से ही अफगानिस्तान के पठानों के आतंक में रहे थे।

# युद्ध वाले दिन, 10,000 अफगान सैनिकों ने सारागढ़ी पर हमला किया। सरदार गुरमुख सिंह ने हमले की सूचना ब्रिटिश कमांडर को फोन पर दी और सेना भेजने के लिए कहा। दूसरी ओर कमांडर ने कहा कि इतने कम समय में सेना नहीं भेजी जा सकतीहै और कमांडर ने बटालियन को पीछे हटने के लिए कहा।

# अब बटालियन कहां पीछे हटने वाला था, बटालियन के सिक्खों ने अफगान सैनिकों की भारी भीड़ का सामना किया और अपनी पोस्ट को बचाने के लिए वहां टिक गए। “जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल” की आवाजों से वहां की जमीन हिल उठी। गुरमुख सिंह ने अकेले लगभग 20 अफ़गानों को मार गिराया और वह मरने वाले अंतिम लोगों में से एक थे।

आखिरकार सिख जवानों के आगे अफगानी पठान थक गए। करीब 600 पठान मारे गए और बाकी भाग खड़े हुए। हालाँकि अफगान सैनिकों का आखिरी हमला बहुत शक्तिशाली था, क्योंकि उसमें बटालियन की पोस्ट ध्वस्त हो गई लेकिन सिखों की इस छोटी सी बटालियन ने दुश्मनों को आखिरी सांस तक रोक कर रखा।

# सभी सम्मानित सैनिकों को मरणोपरांत उस समय के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया । उनकी याद में एक महाकाव्य कविता खालसा बहादुर भी रची गई थी, वहीं सारागढ़ी में शहीद होने वाले सिक्खों के जज्बे की कहानी पंजाब की स्कूलों में किताबों में भी पढ़ाई जाती है। हर साल सारागढ़ी दिवस इन सिखों की याद में 12 सितंबर को मनाया जाता है। इसके अलावा सिख रेजीमेंट आज भी इस दिन को रेजीमेंटल बैटल आनर्स डे के रूप में मनाती है।

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